Environment News: सागर शहर में प्रशासन के एक फैसले ने पर्यावरण प्रेमियों और आम नागरिकों को गंभीर चिंता में डाल दिया है. कलेक्ट्रेट परिसर में बीते दिनों करीब एक हजार पेड़ों को काटकर वह मियावाकी जंगल पूरी तरह खत्म कर दिया गया, जिसे शहर का ‘ऑक्सीजन बैंक' कहा जाता था. यह वही जंगल था, जिसे वर्ष 2020 में कोरोना काल के दौरान तत्कालीन कलेक्टर दीपक सिंह ने राम आस्था मिशन के सहयोग से तैयार कराया था. लगभग डेढ़ हजार पौधों से शुरू हुआ यह हरा-भरा क्षेत्र अब पक्षियों और जीव-जंतुओं का आश्रय स्थल बन चुका था.
क्यों काटा जा रहा है जंगल?
जंगल को काटने का कारण बताया गया है कि निर्वाचन कार्यों के लिए दो नए कक्षों का निर्माण. मगर सवाल यह उठ रहा है कि क्या कलेक्ट्रेट परिसर में अन्य उपलब्ध जगहों पर निर्माण संभव नहीं था? क्योंकि हाल ही में इसी परिसर में इंडियन कॉफी हाउस के लिए लगभग 15 हजार वर्गफुट जमीन आवंटित की गई है, साथ ही कई स्थान खाली भी मौजूद हैं. ऐसे में हरियाली को ही निशाने पर लेना कई सवाल खड़े करता है.
किसने क्या कहा?
राम आस्था मिशन फाउंडेशन के संरक्षक तन्मय जैन ने पेड़ कटने पर गहरा दुख व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि यदि लगाए गए जंगलों को भविष्य में काटना ही है, तो ऐसे पौधारोपण का क्या अर्थ रह जाता है? जैन ने इस मसले पर प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा है.
दूसरी ओर, सागर कलेक्टर संदीप जी.आर. ने दावा किया है कि निर्माण के लिए वही स्थान आवश्यक था और वहां हजार पेड़ होने की बात सही नहीं है.
यह पूरा मामला शहर में प्रशासनिक संवेदनशीलता, पर्यावरण संरक्षण और विकास कार्यों की प्राथमिकता पर व्यापक चर्चा खड़ी कर रहा है. एक कलेक्टर ने जहां जंगल बसाया, वहीं दूसरे के आदेश ने उसे मिटा दिया, यह विरोधाभास शहरवासियों के बीच गहरी नाराजगी और हैरानी का विषय बना हुआ है.
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