Beggar Free Bhopal: मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (GIS) के पहले भिक्षावृत्ति पर रोक लगाई गई,कहा गया भीख मांगना और भीख देना दोनों अपराध है. CCTV से निगरानी का दावा भी किया गया, लेकिन तस्वीर नहीं बदली आज भी भोपाल के ट्रैफिक सिग्नल्स पर सैकड़ों चेहरे हाथ फैलाये खड़ें हैं, कुछ ने मजबूरी में भीख मांगना शुरू किया तो कुछ ने भिक्षावृत्ति को धंधा बना लिया है. देश कि सबसे साफ राजधानी में जहां एक ओर ऊंची इमारतें, चमचमाती सड़कें और मेट्रो के सपने पलते हैं, वहीं दूसरी ओर, फुटपाथों पर सपनों का भीख में बदल जाना भी उतना ही आम है. सड़क के एक कोने पर जिंदगी पड़ी है ,हाथ में कटोरी, आंखों में उम्मीद, और जुबान पर 'कुछ दे दो मालिक'.
क्या कहते हैं भिखारी?
भोपाल की 80 साल की भगवती बीते 15 सालों से लालघाटी चौराहे पर रोज़ सुबह की शुरुआत भीख मांगकर करती हैं. बेटे की मौत के बाद ज़िंदगी ने करवट बदली और उसी दिन से उन्होंने अपने बेटे के बच्चों की जिम्मेदारी उठाई. सरकार की ओर से 600 रुपये की वृद्धावस्था पेंशन मिलती है, लेकिन यह तो जैसे ऊंट के मुंह में जीरा है. फटे-पुराने नोटों और सिक्कों की थैली संभालते हुए मुस्कराकर भगवती बताती हैं कि कई लोग ऐसे भी होते हैं जो फटे हुए नोट पकड़ाकर चले जाते हैं और कभी तो पूरा दिन बीत जाता है, 100 रुपये भी नहीं मिलते. भीड़ से भरे चौराहे पर खड़ी ये बूढ़ी मां, खुद से बड़ी जिम्मेदारियों को ढो रही है.
भोपाल के ट्रैफिक सिग्नल अब सिर्फ गाड़ियों के रुकने की जगह नहीं रहे, यहां हर लाल बत्ती पर कुछ बच्चे जिंदगी की हरी बत्ती मांगते हैं, हाथों में डिटर्जेंट पाऊडर की घोल से भरी बोतल और वाईपर से मंहगी गाडियों के शीशे साफ करते हैं. गुब्बारे बेचते और भीख मांगते हैं. शहर स्मार्ट बन रहा है, पर बच्चों का बचपन सड़क किनारे गिरवी पड़ा है. भोपाल में भिखारियों पर और सड़क पर बच्चों से सामान बिकवाने पर रोक तो है, लेकिन रोक सिर्फ कागज़ पर है सिग्नलों पर बच्चों का बचपन अब भी भीख मांगती है.
भीख मांगना अब शौक नहीं, उद्योग भी है, कुछ गिरोह बाकायदा इन चेहरों के पीछे काम कर रहे हैं. रोज का टारगेट फिक्स है. प्रॉफिट-मार्जिन भी तय है. देश के सबसे साफ शहर इंदौर में एक ऐसी गैंग को पकड़ा गया, जो दिन भर सड़कों पर भीख मांगता थे और रात में होटल में जाकर आराम फरमाते थे. भवरकुंआ इलाके में एक 70 साल की भिखारी महिला ब्याज पर लोगों को पैसे देती थी. भोपाल के मंगलवारा थाना क्षेत्र में भीख मंगवाने के लिए महिला ने दिन दहाड़े दो साल के बच्चे का अपहरण कर लिया.
भिक्षावृत्ति से मुक्ति कब?
- देशभर में 4 लाख 13 हज़ार 670 भिखारी हैं
- मध्यप्रदेश में इनकी तादाद 28695 है
- पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा 81244 भिखारी हैं
- देशभर में 21% भिखारी 12वीं पास हैं
- भिखारियों में ग्रेजुएट,पोस्ट ग्रेजुएट औऱ डिप्लोमा धारी भी शामिल हैं.
आदेश हवा-हवाई
भोपाल में भिक्षावृत्ति रोकने के आदेश सिर्फ कागज़ों में रह गए. जिला प्रशासन ने घोषणा की थी. भीख देने और लेने वाले दोनों CCTV में रिकॉर्ड होंगे. कार्रवाई होगी लेकिन कैमरे और भीख देने वाले दोनों चालू हैं. सड़कों पर जिला प्रशासन की निगरानी टीमों की बात हुई थी जो रेस्क्यू करेंगी, काउंसलिंग देंगी, आश्रय गृह में पहुंचाएंगी लेकिन ज़मीनी हालात बता रहे हैं, ये टीमें या तो हैं ही नहीं या फिर हैं, लेकिन दिखती नहीं.
महिला बाल विकास विभाग के परियोजना अधिकारी दिनेश मिश्रा कहते हैं कि "ऐसे कई भिखारी हमने पकड़े हैं जब उनकी हम रिपोर्ट तैयार करते हैं तब पता चलता है कि किसी के पक्के मकान है किसी के बहु और बेटी बैंक में सर्विस कर रहे हैं, एक भिखारी के पास हमें मौके पर 29000 रुपए मिले, एक ब्याज पर भी पैसा चला रही है ऐसे बहुत सारे भिखारी हैं जो सक्षम है लेकिन आदतन भिक्षावृत्ति करते हैं, राजस्थान से बहुत सारे लोग छोटे-छोटे बच्चे लेकर आते हैं उनसे भिक्षावृत्ति करवाते हैं, ऐसे 22 लोगों को एक होटल से रेस्क्यू किया था.. इसके अलावा एक पूरा गांव दो-तीन सालों से बसा था जो भिक्षावृत्ति का काम करते हैं उनका भी रेस्क्यू किया गया."
स्माइल योजना के तहत मध्यप्रदेश के इंदौर, उज्जैन खजुराहो और ओंकारेश्वर को भिक्षावृत्ति से मुक्त करने के लिए चयन किया गया, लेकिन काम सिर्फ इंदौर में शुरू हो हो सका. सरकार के मंत्री का दावा हैं कि भिक्षावृत्ति से लोगों को छुटकारा दिलाने के लिये सरकार लगातार काम कर रही है.
जिम्मेदारों का क्या कहना है?
कलेक्टर भोपाल कौशलेंद्र विक्रम सिंह कहते हैं कि भिखारी कम हुए हैं. जिला पंचायत सीईओ ने बैठक भी ली है, हम लगतार कार्रवाई कर रहे हैं. हो सकता है कुछ एक-दो भिखारी आ जाते हो, टीम तो लिमिटेड है. जहां ज्यादा भिखारी दिखते हैं, हम वहां पर ज्यादा फोकस करेंगे.
भिखारियों की भीड़, आदेशों से नहीं हटती,इसे हटाना है तो रोटी का इंतज़ाम करना पड़ेगा, रोजगार देना पड़ेगा, उन्हें समझाना पड़ेगा और मुख्य धारा से भी जोड़ना होगा. भोपाल के चौराहों पर गाड़ियां रुकती हैं, हॉर्न बजते हैं. हर सिग्नल पर कोई न कोई हाथ फैलाए खड़ा मिल जाता है. आदेश तो ये हैं कि भिखारियों पर रोक लगी है, लेकिन हकीकत देखिए. भूख अभी भी हर सिग्नल पर लाइन में लगी है, भिक्षावृत्ति पर पूरी तरह रोक कब लगेगी? यह अब भी एक बड़ा सवाल है.
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