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Jabalpur High Court: कुलगुरु की नियुक्ति को खुली चुनौती, कोर्ट ने एमपी सरकार और आयोग को थमाया नोटिस

Jabalpur Kulguru Appointment: रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी के कुलगुरु की नियुक्ति को लेकर एमपी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. मामले में कोर्ट ने एमपी सरकार और आयोग को नोटिस जारी किया है. आइए आपको पूरे मामले की जानकारी देते हैं.

Jabalpur High Court: कुलगुरु की नियुक्ति को खुली चुनौती, कोर्ट ने एमपी सरकार और आयोग को थमाया नोटिस
Jabalpur High Court: रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी के कुलगुरु के खिलाफ एमपी हाईकोर्ट में केस

Jabalpur News in Hindi: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के जबलपुर (Jabalpur) के रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी (Rani Durgawati University) के कुलगुरु डॉ. राजेश वर्मा की प्रोफेसर के रूप में मूल नियुक्ति और कुलगुरु (Vice Chancellor) के पद पर नियुक्ति को एमपी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. मामले पर प्रारंभिक सुनवाई के बाद जस्टिस विवेक जैन की एकलपीठ ने कहा कि इस याचिका में विशुद्ध कानूनी मुद्दा उठाया गया है. कोर्ट ने राज्य सरकार, एमपी लोक सेवा आयोग, उच्च शिक्षा विभाग और यूनिवर्सिटी के कुलगुरु को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

छात्र संगठन ने लगाया आरोप

भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन, जबलपुर के जिला अध्यक्ष सचिन रजक और अभिषेक तिवारी ने याचिका दायर कर आरोप लगाया कि डॉ. वर्मा की नियम के खिलाफ प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति हुई थी. यूजीसी गाइडलाइन के अनुसार, प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के लिए पीएचडी डिग्री मिलने के बाद 10 साल अध्यापन का अनुभव 
जरूरी है.

याचिकाकर्ता ने दी ये दलील

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता उत्कर्ष अग्रवाल ने दलील दी कि डॉ. वर्मा को पीएचडी 25 नवंबर 2008 को प्रदान की गई थी. इसके बाद 19 जनवरी 2009 को एमपीपीएससी ने प्राध्यापक पद पर नियुक्ति का विज्ञापन जारी किया था. इस पद के लिए पीएचडी डिग्री मिलने के बाद 10 साल पढ़ाने का अनुभव जरूरी था. आवेदन करने वालों के पास यह अनुभव विज्ञापन की अंतिम तारीख, यानी 20 फरवरी 2009 तक होनी चाहिए थी. 

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कुलगुरु की प्रथम नियुक्ति, जो प्रोफेसर के पद पर हुई है, वह नियम के खिलाफ है. दलील दी गई कि पूर्व में संगीता बारूकर के केस में एमपीपीएससी ने शपथ पत्र में कहा था कि प्रोफेसर में नियुक्ति के लिए पीएचडी के बाद कम से कम 10 साल टीचिंग का अनुभव होना चाहिए, जो डॉक्टर राजेश वर्मा के केस में नहीं है. तर्क दिया गया कि जब मूल नियुक्ति नियम विरुद्ध है, तो कुलगुरु के पद पर नियुक्ति वैधानिक कैसे मानी जा सकती है.

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