गोबर की मूर्तियों से हरियाली की राह, घर की चौखट से ही रोजगार की शुरुआत, प्रकृति बचाने के लिए चुना अनोखा अंदाज

Ganesh Ji Gobar Murti: आगर मालवा जिले में श्रद्धा और पर्यावरण को एक साथ सांचे में ढाला जाता है. यहां गणेशोत्सव के लिए गाय के गोबर से भगवान गणेश की मूर्ति गढ़ी जा रही है. आइए आपको इसके बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं.

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आगर मालवा में गोबर से बनाई जा रही भगवान गणेश की मूर्ति (File Photo)

Aagar Malwa News: प्रकृति को बचाने और बढ़ावा देने के विषय पर मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) और यहां के लोग हमेशा से ही पूरे भारत में जाने जाते रहे हैं. चाहे बात बाघों की संख्या बचाने की हो, जंगलों की रक्षा की हो या स्वच्छता में अव्वल इंदौर शहर की हो, एमपी में पर्यावरण को बचाने के लिए हर स्तर पर काम हो रहा है. इसी क्रम में, गोबर की मूर्तियां भी प्रकृति के प्रति एक सकारात्मक प्रयास है. आगर मालवा जिले की ग्रामीण महिलाओं ने गणेशोत्सव की तैयारी पहले ही शुरू कर दी है. शहर के बड़े मॉल और ऑनलाइन ब्रांड्स से मुकाबले की ये कहानी एक मूर्तिकार की नजर से आज आपको हम बताने जा रहे हैं. गाय के गोबर से गणेश जी की मूर्ति गढ़ते हुई ये महिलाएं अपने परिवार की आजीविका भी चला रही हैं.

गांव की महिलाएं बना रही गोबर से मूर्ति

50 की उम्र में धरती के लिए चिंता

एमपी की राजधानी भोपाल से 200 किलोमीटर दूर लाडवन गांव में महिलाएं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अपनी भूमिका से बदलाव लाने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं. इसी गांव की 50 साल की रम्भा बाई की आंखों में उनके बेटों के लिए नहीं, बल्कि धरती के लिए चिंता नजर आती है. उनके हाथ मूर्ति की बारीकियों को संवारते हैं, ताकि विसर्जन के बाद ये मूर्ति पानी में घुलकर, धरती को जीवन लौटाए और जहर नहीं.

गांव की महिलाओं की खास ट्रेनिंग

रम्भा बाई ने कहा कि गांव में कुल 35 महिलाओं की ट्रेनिंग हुई थी. रम्भा बाई ने एनडीटीवी से कहा कि मेरे दो बेटे हैं. मैं बस दोनों बेटों के लिए नहीं सोच रही, बल्कि देश के सभी बेटों के लिए सोच रही हूं. गाय के गोबर से मूर्ति बनाने का ख्याल ऐसे आया कि प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति को नदी-नाले में डूबा देते हैं, तो उससे जानवर भी मरता है और गलता भी नहीं है. इसी पानी को पशु-पक्षी और मनुष्य भी पीते हैं.

मूर्ति के लिए पैसे देने से कर दिया था मना

रम्भा बाई आत्मविश्वास से भरे चेहरे के साथ एक बार फिर अपनी कहानी कहती हैं कि उन्होंने अपने घरवालों से गणपति जी की शुरुआत करने के लिए पैसे मांगे थे. लेकिन, परिवार ने जवाब दिया था कि 300 रुपये की मजदूरी मिलती है, इसमें घर ग्रहस्ती कैसे चल सकती है. इसके बाद उन्होंने लाडली बहना के पैसे खाते से निकाले और आजीविका मिशन के अधिकारियों से बात करके पहले सांचे मंगवाए, फिर गाय का सुखा गोबर और प्रीमिक्स पाउडर मंगवाया और शुरुआत कर दी.

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मूर्तियों में रंग भरती हुई 19 साल की सुहानी

महिलाओं को आजाद और आत्मनिर्भर बनाना चाहती हैं 19 साल की सुहानी

इसी गांव में सुहानी सक्सेना भी रहती हैं, जिनकी सिर्फ 19 साल की उम्र है. लेकिन, जब उनकी उंगलियां रंगों से मूर्तियों को सजातीं हैं, तो लगता है कि प्रतिमाएं सांस लेने लगती हैं. सुहानी का सपना सिर्फ रंग भरना नहीं, बल्कि इन औरतों के जीवन में भी रोशनी भरना है. सुहानी सक्सेना कहती है कि गणेश जी की मूर्ति सीधे रियल मार्केट में देने के लायक नहीं होती है. इसलिए इसका थोड़ा लेवल बढ़ाकर और उसमें रंग करके रियल मार्केट में जाने लायक बनाती है.

आजीविका मिशन से हौसलों को उड़ान

एमपी सरकार भी महिलाओं के इस हौसले को पहचान रही है. आजीविका मिशन से उन्हें प्रेरित किया जा रहा है. माना बाई जैसी और भी औरतें कह रही हैं कि ये घर की चारदीवारी अब रोजगार का केंद्र बन चुकी है. इस गांव में गोबर से मूर्ति बनाई जा रही है. ये काम कुल आठ औरतें मिलकर कर रही है. कोई घोल तैयार करता है और कोई रंग भरता है.

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आजीविका मिशन के जिला प्रबंधक संजय सक्सेना कहते है कि आजीविका मिशन से जुड़ी महिलाओं ने अपनी लाइवलीहुड से हट कर भी पर्यावरण और अन्य क्षेत्रों में भी कार्य शुरू कर दिया है. गोबर से बनी मूर्ति इसी का परिणाम है. ये महिलाएं सिर्फ मूर्ति नहीं बना रही है, बल्कि देश को संदेश देने की कोशिश कर रही है कि पर्यावरण को बचाया भी जा सकता है.

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जिला पंचायत सीईओ नन्दा भलावे कुशरे ने एनडीटीवी से कहा कि हम अभी इसको लोकल मार्केट में एक्सप्लोर कर रहे हैं. आने वाले दिनों में त्योहारी सीजन स्टॉल लगा कर शुरुआत यहां से करेंगे. भोपाल हाट में हमारा आजीविका मिशन का स्थाई मार्केट है. इसके अतिरिक्त, हमने जितनी महिलाओं को ट्रेनिंग दिलवाई थी, उसके अलावा हमारा लक्ष्य है कि हमारी 300 महिलाएं इससे जुड़ जाए.

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