
साग़र-नदियों और तालाबों में जमने वाली शैवाल को लोग हमेशा कचरा समझते है, लेकिन इसका नैनो माइक्रो फिंगरप्रिंट डायटम पाउडर तैयार करने में काफी अहम भूमिका है. दरअसल, डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय की क्रिमिनोलॉजी एंड फॉरेंसिक साइंस डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. वदना विनायक ने इस शैवाल से खास पाउडर तैयार किया है. बता दें कि ये पाउडर विदेश से मंगवाया जाता है.
डॉ हरिसिंह गौर जब हरियाणा स्टेट फॉरेनर्स क्लब में थी तो उस समय भी डायटम पाउडर यूके, यूएसए और फ्रांस जैसे देशों से मंगवाया जाता था. ये पाउडर बहुत महंगा मिलता था. उसी समय से उनके मन में ये विचार चल रहा था कि फिंगरप्रिंट जांच के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पाउडर को कैसे देश में ही कम खर्चे में बनाकर तैयार किया जाए.
10 साल में बनकर तैयार हुआ डायटम पाउडर
हालांकि उस समय डॉ हरिसिंह गौर अपने इस प्रयोग पर काम नहीं कर पाई, क्योंकि फॉरेंसिक लैब में होने की वजह से टाइम की कमी थी, लेकिन साल 2013 में जब सागर विश्वविद्यालय में डॉ हरिसिंह गौर का ट्रांसफर हुआ तो उन्होंने इस विचार पर काम करना शुरू किया और इस पाउडर को देश में हीं बनाया. बता दें कि ये स्वदेशी डायटम पाउडर विदेशी पाउडर के मुकाबले 90 फीसदी सस्ता है और अब ये भारत में ही बनकर तैयार हो रहा है.
क्या उपयोग है इस डायटम पाउडर का
माइक्रो फिंगरप्रिंट डायटम पाउडर का उपयोग फॉरेंसिक जांच में किया जाता है. दरअसल, इस पाउडर का उपयोग फिंगर प्रिंट लेने के लिए होता है. वहीं ये पाउडर विदेश से मंगवाया जाता रहा है. बता दें कि 30 ग्राम इस पाउडर की कीमत 3 से 5 हजार रुपये तक होती है, लेकिन अब मध्य प्रदेश के सागर में ये स्वदेशी डायटम पाउडर 200 रुपये में मिल रहा है. साथ ही इस पाउडर को दोबारा उपयोग कर सकेंगे. इसके अलावा इस पाउडर से पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचता है.
डॉक्टर वंदना विनायक बताती है कि 10 साल की मेहनत के बाद इस पाउडर को तैयार किया गया है. इस डायटम पाउडर को रिकवर भी किया जाता है, जबकि विदेशों से मंगवाये गए पाउडर को रिकवर नहीं किया जाता है.
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