Deendayal Kitchen Scheme: महाकवि निराला की मशहूर कविता है-
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को- भूख मिटाने को, मुंह फटी पुरानी झोली का फैलाता-
दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता।
ये कविता गरीबों-बेसहारों की स्थिति बखूबी बयां करती है लेकिन मध्यप्रदेश में गरीबों को इसी स्थिति से निकालने के लिए शुरू की गई दीन दयाल रसोई योजना...ये योजना पूरे मध्यप्रदेश में संचालित होती है और इससे हर दिन 15 हजार लोगों की भूख मिटती है. लेकिन इन दिनों इस योजना को लेकर कुछ जरूरी सवाल उठ रहे हैं जिनके जवाब भूखे पेट रहने वाले हजारों जरूरतमंद मांग रहे हैं.
दरअसल राज्य सरकार की तरफ से संचालित इस रसोई में इन दिनों गरीबों से मोबाइल नंबर मांगे जा रहे हैं, तभी उन्हें पांच रुपये में खाना दिया जा रहा है..इस परेशानी के चलते कई गरीब और मजदूर भूखे ही लौट जा रहे हैं.इसके अलावा पूरे प्रदेश में ही रविवार को ये रसोई बंद रहती है. जिसको लेकर जरूरतमंद पूछ रहे हैं कि क्या रविवार को भूख की भी छुट्टी होती है?
प्रदेश भर के गरीबों मजदूरों और बेसहारा के लिए दो वक्त की रोटी बड़ी चुनौती भरी होती है. महंगाई के इस दौर में कोई गरीब भूखा ना सोए इसी को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार के नगरीय प्रशासन विभाग ने प्रदेश भर में दीन दयाल रसोई की शुरुआत की. लेकिन अब यही गरीब लोग परेशान हैं क्योंकि ऐसे लोगों की संख्या काफी बड़ी है जिनके पास मोबाइल है ही नहीं. रसोई का संचालन करने वाले लोग मोबाइल नंबर पर ओटीपी आने के बाद ही खाना देते हैं.
लिखित में फरमान नहीं है पर अधिकारी मजबूर हैं
गजब ये है कि गरीबी का ऐसा मजाक उड़ाने को लेकर कोई फरमान लिखित में तो जारी नहीं हुआ है लेकिन अधिकारियों ने मौखिक निर्देश इतने प्रभावी अंदाज में व्यवस्थापकों को दिए हैं कि वो जरुरतमंदों के लिए मुसीबत बन गया है. अकेले भोपाल में हालत ये है कि यहां एक दिन में 400 से 500 ऐसे लोग रसोई तक पहुंच कर भी बैरंग वापस जा रहे हैं जिनके पास मोबाइल नहीं है. संचालकों का कहना है कि सभी खाने वालों की रजिस्टर में एंट्री होती है, नाम से लेकर आने जाने का समय और मोबाइल नंबर, तभी खाना दिया जाता है. हालत और भी ज्यादा तब खराब हो जा रहे हैं जब ये रसोई रविवार को बंद रहती है. रविवार को दिन भी यहां कई जरूरतमंद इस आस में पहुंचते हैं कि क्या पता जुगाड़ से खाना मिल ही जाए.
गुणवत्ता तो अच्छी पर अब व्यवस्थापक भी परेशान
दीनदयाल रसोई सेंटर में गरीबों को भोजन तो भरपेट दिया जाता है. भोजन की गुणवत्ता भी बेहतर दिखाई देती है इन सबके बीच रोजाना मोबाइल नंबर को लेकर होने वाली बहसबाजी झगड़े से व्यवस्थापक भी परेशान हैं. जहांगीराबाद दीनदयाल रसोई-रेनबसेरा चलाने वाले व्यवस्थापक पंकज राही बताते हैं कि मोबाइल नंबर बहुत बड़ी बाधा है. हम परेशान हो रहे हैं 400 से ज्यादा गरीब मजदूर भूखे लौट रहे हैं. हालत सुधारने के लिए सरकार को काम करना चाहिए. रविवार को बंद रहने से गरीब गेट पर खड़े होकर खाना मांगते हैं लेकिन हम मजबूर हैं, क्या करें?
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