NDTV की स्पेशल रिपोर्ट : कचरे में पड़ी हैं किताबें या बच्चों का भविष्य? शिक्षा व्यवस्था पर जम चुकी है धूल!

ये किताबें मध्य प्रदेश सरकार की ओर से सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को निशुल्क दी जाती हैं. किताबें जुलाई अगस्त तक ही स्कूलों में पहुंचा दी जाती हैं. अधिकारियों की लापरवाही के कारण ये किताबें जिन बच्चों तक पहुंचनी चाहिए उन तक नहीं पहुंच पा रही हैं और कचरे में ही पड़ी हुई हैं.

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कचरे में मिलीं सरकारी स्कूलों की किताबें

Jabalpur News: मध्य प्रदेश विधानसभा में कुछ विधायक कचरे में पड़ी हुई किताबों की फोटो लेकर पहुंच गए. तब से ही यह मामला पूरे प्रदेश की जनता के लिए एक सोचने का विषय बन गया है कि सिर्फ किताबें ही कचरे में पड़ी हैं या जिन बच्चों तक इन किताबों को पहुंचना था उनका भविष्य भी कचरे में पहुंचता जा रहा है. NDTV ने जबलपुर के विकासखंड स्त्रोत समन्वयक कार्यालय में किताबों का ढेर देखा. 

BRC में भी कचरे में पड़ी मिलीं किताबें

जबलपुर के विकासखंड स्त्रोत समन्वयक कार्यालय BRC 1 में टॉयलेट के बगल में किताबें कबाड़ की तरह रखी गई हैं. ये किताबें यहां पिछले 3 साल से पड़ी हैं. वर्ष 2021 में जो किताबें आई हैं वह भी यहां पड़ी मिलीं और कुछ किताबें तो बंडलों से भी बाहर नहीं निकाली गई हैं. अब तो बंडल भी फटने लगे हैं. किताबों पर लगी हुई धूल तो कुछ इस तरह का इशारा कर रही थी जैसे मानों पूरी शिक्षा व्यवस्था पर ही धूल जम चुकी है. NDTV को कई जगह देखने को मिला कि कुछ बच्चों तक पढ़ने के लिए किताबें पहुंच ही नहीं पाती हैं. इस तरह से इन किताबों का ऐसे कार्यालय में पड़ा होना यह इशारा करता है कि अधिकारी अपना काम पूरी ईमानदारी से नहीं कर रहे हैं इसीलिए तो ये किताबें उन बच्चों तक नहीं पहुंच पा रही हैं.

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समय पर वितरित नहीं की जाती हैं किताबें

ये किताबें मध्य प्रदेश सरकार की ओर से सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को निशुल्क दी जाती हैं. किताबें जुलाई अगस्त तक ही स्कूलों में पहुंचा दी जाती हैं. अधिकारियों की लापरवाही के कारण ये किताबें जिन बच्चों तक पहुंचनी चाहिए उन तक नहीं पहुंच पा रही हैं और कचरे में ही पड़ी हुई हैं.

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जबलपुर BRC 1 बी सी अहिरवार ने एनडीटीवी को बताया कि भोपाल से ऐसी किताबें भेज दी जाती हैं जिनका इस्तेमाल नहीं होता है. विज्ञान की किताब मंगाई जाती है तो कई बार हिंदी या अंग्रेजी की भेजी जाती है. कई बार ट्रक में भर कर किसी भी एक विषय की किताब भेज दी जाती है. जो किताबें बचती हैं उनका कारण ड्रॉप आउट बच्चे भी हैं. बी सी अहिरवार का कहना है कि अब उच्च अधिकारियों से निर्देश लेकर इनको कबाड़ में बेचा जाएगा. 

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क्यों धूल खा रही हैं किताबें?

जबलपुर जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम सोनी ने बताया कि पाठ्यपुस्तक निगम से ये किताबें हर साल वितरित करने के लिए आती हैं. पुस्तक बांटने के बाद बची हुई शेष पुस्तकें वहां रखी जाती हैं. पूर्व में ही अनुमानित संख्या के हिसाब से ये पुस्तकें मंगाई जाती हैं लेकिन यह संख्या कम ज्यादा हो जाती है और किसी एक विषय की किताबें ज्यादा हो जाने के कारण उन को रख दिया जाता है.