Madhya Pradesh Walking Tree: आज जहां जमीन के एक-एक फीट के लिए रिश्तेदारों में खून-खराबा और मुकदमेबाजी होती है... वहीं मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक किसान ने प्रकृति प्रेम की मिसाल पेश की है. किसान ने अपने खेत की करीब दो एकड़ जमीन सिर्फ इसलिए छोड़ दी, क्योंकि वहां एक प्राचीन बरगद का पेड़ (Banyan Tree) खड़ा है.
सागर जिले के जैसीनगर विकासखंड के पड़रई गांव में स्थित यह बरगद गांव की पहचान बन चुका है. इसकी उम्र का आधिकारिक रिकॉर्ड तो नहीं, लेकिन ग्रामीणों के अनुसार यह पेड़ करीब 200 वर्ष पुराना है. यह बरगद किसान ऋषिराज सिंह ठाकुर के खेत में स्थित है और इसका फैलाव इतना बड़ा है कि अब यह लगभग ढाई एकड़ भूमि पर छा चुका है.
पूर्वजों की निशानी, आस्था का प्रतीक
किसान ऋषिराज सिंह ठाकुर बताते हैं कि यह पेड़ कई पीढ़ियों से उनके परिवार के खेत में है. उनके पूर्वज इस पेड़ को पूजते थे और इसे प्रकृति का गोद लिया हुआ हिस्सा मानते थे. आज भी परिवार के सदस्य इस परंपरा को निभा रहे हैं.
पेड़ की जटाएं और शाखाएं अब पेड़ के भीतर कई और पेड़ों का रूप ले चुकी हैं. धीरे-धीरे फैलते हुए यह बरगद आज एक प्राकृतिक छत्र जैसा स्वरूप ले चुका है, जहां गांव के लोग बैठते हैं, बातचीत करते हैं और पूजा भी करते हैं.
खेती के नुकसान की परवाह नहीं
इतनी बड़ी जमीन खेती योग्य होते हुए भी किसान ने इस पेड़ को कभी काटने या रोकने की कोशिश नहीं की. कृषक ऋषिराज सिंह कहते हैं, 'प्रकृति से बड़ा कोई धन नहीं. खेती कम हो जाए तो भी चलेगा, लेकिन पूर्वजों की निशानी और इस जीवित धरोहर को नुकसान पहुंचाना मेरे लिए पाप है.'
गांव का आकर्षण बना विरासत स्वरूप पेड़
आज यह बरगद सिर्फ खेत का हिस्सा नहीं, बल्कि गांव की पहचान बन चुका है. दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं. बच्चे इसे खेलने का स्थल मानते हैं, तो बुजुर्ग छांव में बैठकर समय बिताते हैं.
ग्रामीण बताते हैं कि एक समय यह पेड़ डकैतों का ठिकाना हुआ करता था. पुलिस से छिपने यहां डकैत अपना डेरा डाले रहते थे, पेड़ घना होने के कारण उन्हें छिपने में सुविधा होती थी.
संरक्षण की मिसाल
तेजी से कटते पेड़ों के दौर में यह घटना समाज को एक संदेश देती है कि प्रकृति हमारे लिए सिर्फ संसाधन नहीं, बल्कि जीवन है. किसान ऋषिराज सिंह ठाकुर का यह कदम निश्चित ही प्रकृति संरक्षण, विरासत और पर्यावरण संतुलन के लिए एक मिसाल है.