MP हाईकोर्ट ने नए कानून BNSS के तहत पुलिस को दिया ये निर्देश, जानें पूरा मामला

MP News: एमपी हाईकोर्ट ने नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत एक मामले पर जांच करने के आदेश दिए हैं. नए कानून लागू होने के बाद संभवत: यह पहला मामला है, जिसमें हाईकोर्ट ने कोई आदेश दिया है.

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फाइल फोटो

MP High Court News: देश में तीन नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) बीते एक जुलाई से लागू हो चुके हैं. इन कानून को लागू हुए अभी एक हफ्ता भी नहीं बीता था कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने नए कानून के तहत एक आदेश भी दे दिया है. हाईकोर्ट (MP High Court) ने एक धर्म गुरु द्वारा अन्य धर्म गुरु और उनके परिवार पर अशोभनीय टिप्पणी करने के मामले में पुलिस को जांच करने के निर्देश दिए हैं. 

जस्टिस विशाल धगट (Justice Vishal Dhagat) की एकलपीठ ने नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की व्याख्या करते हुए पुलिस को निर्देश दिए हैं कि जांच के बाद यदि आरोपी पर संज्ञेय अपराध बनता है तो एफआईआर दर्ज कर आगे की कार्रवाई करें. और यदि संज्ञेय अपराध नहीं बनता है तो उसकी जानकारी शिकायतकर्ता को दें, ताकि वह उचित फोरम की शरण ले सके. बता दें कि एक जुलाई को नए कानून लागू होने के बाद संभवत: यह पहला मामला है, जिसमें हाईकोर्ट ने कोई आदेश दिया है.

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ये है पूरा मामला

याची अमीश तिवारी निवासी गोटेगांव की ओर से अधिवक्ता पंकज दुबे ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा. उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता ने गोटेगांव पुलिस में 7 मई को शिकायत की थी कि दतिया निवासी धर्मगुरू गुरूशरण शर्मा तमाम साधु संतों के खिलाफ टीका टिप्पणियां करते हैं और उन्हें इंटरनेट मीडिया के माध्यम से वायरल करते हैं. कोर्ट को बताया गया कि गुरूशरण शर्मा ने बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के संबंध में अनादर पूर्वक शब्दों और अशोभनीय भाषा का प्रयोग किया. धीरेंद्र शास्त्री और उनके परिवार के लोगों के संबंध में अशोभनीय और लज्जा भंग करने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया. इससे आहत होकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई.

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याची ने रखी ये मांग

अधिवक्ता पंकज दुबे ने दलील दी कि नए कानून भारतीय नागरिक संहिता की धारा 173 के तहत पुलिस का यह दायित्व है कि शिकायत मिलने के 14 दिन के भीतर जांच करे, यदि अपराध असंज्ञेय है तो शिकायतकर्ता को उसकी सूचना दे. ऐसा नहीं होने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई. सुनवाई के बाद कोर्ट ने नए कानून की व्याख्या करते हुए उक्त आदेश जारी किए हैं.

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