Live-in Relationship: बिना शादी लिव-इन रिलेशन में रह सकते हैं कपल, MP हाईकोर्ट का फैसला, जज ने क्या कहा?

MP High Court: युवती और युवक ने परिवार की नाराजगी के कारण अदालत में याचिका दायर की थी. सुनवाई के दौरान अदालत ने दोनों को साथ रहने की अनुमति दी. लेकिन इतनी कम उम्र में इस तरह का निर्णय लेने के सामाजिक और व्यक्तिगत प्रभावों पर भी विचार करने की बात कही. युवती ने कहा कि वह घर के तनावपूर्ण माहौल से बचने के लिए युवक के साथ रह रही है. अदालत ने युवती की स्थिति को समझते हुए फैसला सुनाया.

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MP High court on live-in relationship

MP High Court on Live-in Relationship: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) की इंदौर बेंच (MP High Court Indore Bench) ने लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है. अदालत ने बालिग जोड़ों को विवाह के बिना साथ रहने की अनुमति प्रदान की है. जस्टिस सुबोध अभ्यंकर (Justice Subodh Abhyankar) की एकल पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि यदि याचिकाकर्ता 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके हैं, तो उन्हें अपनी पसंद से जीवन जीने का अधिकार है, और यह अधिकार बाहरी हस्तक्षेप से संरक्षित होना चाहिए.

क्या है मामला?

इंदौर के हाईकोर्ट खण्डपीठ के समक्ष एक अनोखा मामला सामने आया जिसमें एक अविवाहित 18 साल के युवक युवती ने कोर्ट से साथ रहने की इजाज़त मांगी. पूरे मामले पर गौर किया जाए तो मामले में याचिकाकर्ता लड़की ने बताया था कि उसकी मां के देहांत के बाद घर का माहौल उसके पक्ष में नहीं था, असहनीय वातावरण के चलते उसने अपने साथी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का निर्णय लिया.

कोर्ट ने उनकी बात सुनते हुए यह स्पष्ट किया कि लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करने के लिए 18 साल की उम्र का होना पर्याप्त नहीं होता इस प्रकार के रिश्ते में मेच्योरिटी और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने की आवश्यकता होती है. यह संदेश देते हुए जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने कहा यह निर्णय भविष्य में कोई कठिनाई न पैदा करे इसका ध्यान रखा जाना होगा. हालांकि कोर्ट ने इस जोड़े की परिस्थितियों को समझते हुए उनका समर्थन किया और कहा कि युवा होने के बावजूद इस फैसले को उनके व्यक्तिगत अधिकार के रूप में लिया जाना चाहिए.

सिर्फ इतना हो नहीं बल्कि कोर्ट ने इस जोड़े के अधिकारों की रक्षा करने का भी आदेश दिया और कहा कि पुलिस अधिकारियों को सुनिश्चित करना होगा कि इस जोड़े को किसी भी प्रकार का बाहरी हस्तक्षेप न हो.

व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार : कोर्ट

न्यायालय ने अपने आदेश में इस मुद्दे को व्यापक सामाजिक संदर्भ में देखा और कहा कि यह निर्णय व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को मजबूत करता है. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी का निर्वहन करना भी उतना ही आवश्यक है. इस प्रकार के फैसले से यह स्पष्ट होता है कि समाज में व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए.

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कोर्ट के सामने आए इस अनोखे मामले के जरिए जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने समाज में बदलाव का संदेश दिया और कहा- " यह फैसला व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को बल देगा और समाज में एक नई मिसाल स्थापित करेगा. कोर्ट ने यह भी बताया कि स्वतंत्रता का प्रयोग जिम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में कोई. कठिनाई उत्पन्न न हो.

युवा पीढ़ी के लिए संदेश

अदालत ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि युवा पीढ़ी को अपने जीवन के निर्णय सोच-समझकर और जिम्मेदारी के साथ लेने चाहिए. आर्थिक और मानसिक परिपक्वता के बिना ऐसे कदम उठाने से जीवन में कठिनाइयां आ सकती हैं. हाई कोर्ट के इस फैसले को समाज में व्यक्तिगत अधिकारों और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन स्थापित करने के एक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

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