MP Judicial Services Result 2025: यह कहानी है उस अटल विश्वास की, जो छोटे शहरों की गलियों से निकलकर देश के न्याय मंदिरों तक पहुंचता है. निवाड़ी जिले के पृथ्वीपुर नगर की अदिति जैन ने यह साबित कर दिखाया है कि सफलता किसी बड़े शहर या महंगे कोचिंग सेंटर की मोहताज नहीं होती. साधारण परिवार की इस बेटी ने मध्यप्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा में 19वीं रैंक हासिल कर न केवल अपने परिवार का नाम रोशन किया है, बल्कि पृथ्वीपुर की पहली सिविल जज बनकर इतिहास रच दिया है. अदिति के पिता, श्री चंद्र कुमार जैन, स्वयं एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं. अदिति कहती भी है कि अपने पिता से ही उसे न्याय के प्रति वह गहरा लगाव मिला और उसने सिविल जज बनने की सोची.
नर्सरी से 12वीं तक की पढ़ाई एक ही स्कूल में
अदिति की सफलता इसलिए भी ख़ास है क्योंकि उनकी पूरी प्रारंभिक शिक्षा एक छोटे से स्कूल से हुई. उन्होंने बताया कि- "मेरी प्रारंभिक शिक्षा नर्सरी से लेकर 12वीं तक गुरुकुल कॉन्वेंट स्कूल, पृथ्वीपुर से हुई. इसके बाद मैंने गवर्नमेंट न्यू लॉ कॉलेज, इंदौर से पांच वर्षीय बी.ए. एलएलबी की डिग्री हासिल की." इंदौर से स्नातक पूरा होते ही अदिति ने न्यायिक सेवा में जाने की गंभीर तरीके तैयारी शुरू कर दी.
ढाई साल की तपस्या और 14 घंटे की पढ़ाई
न्यायिक सेवा की परीक्षा को बेहद कठिन परीक्षाओं में गिना जाता है, जिसके तीन चरण – प्रीलिम्स, मेंस और इंटरव्यू – होते हैं. अदिति ने इस चुनौती को ढाई साल की कठोर मेहनत से पार किया. वह अपनी तैयारी के बारे में बताती हैं कि "मैंने हर दिन 10 से 14 घंटे तक पढ़ाई की. कई बार मानसिक तनाव, बीमारी और घर से दूरी जैसी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन मेरा संकल्प कभी नहीं डगमगाया." उन्होंने 'स्ट्रेस' को मैनेज करने का मंत्र भी हमसे साझा किया. उन्होंने ध्यान (मेडिटेशन) किया, मंदिर जाती थीं, और सबसे ज़्यादा सहारा अपने घर वालों के मोटिवेशन और आशीर्वाद को दिया.
'हर दिन 6 घंटे लिखना पड़ता है'
अदिति को प्रेरणा उनके पिता से मिली, जिन्होंने हमेशा उन्हें सिखाया कि "न्याय सिर्फ कानून नहीं, यह समाज की आत्मा है." इसी विचार ने उनकी राह तय कर दी. अदिति ने परीक्षा की लंबी प्रक्रिया पर बात करते हुए बताया कि मेंस परीक्षा कितनी चुनौतीपूर्ण होती है— "दो दिन में चार पेपर होते हैं, हर दिन 6 घंटे लिखना पड़ता है. सुबह तीन घंटे, फिर एक घंटे का ब्रेक, फिर तीन घंटे. यह आसान नहीं होता." लेकिन उनके लिए सबसे ज़रूरी था अनुशासन और विश्वास. उन्होंने पूरी प्रक्रिया को सीखने की भावना से लिया और कभी खुद पर अनावश्यक दबाव नहीं डाला. अपनी इस बड़ी सफलता का श्रेय वह अपने माता-पिता, गुरुजनों, मित्रों और इष्ट देवों को देती हैं. जाहिर है अदिति जैन की यह कहानी उन सभी युवा, ख़ासकर बेटियों के लिए एक बड़ा संदेश है, जो छोटे शहरों से आते हैं और बड़े सपने देखने का हौसला रखते हैं. निवाड़ी की इस बेटी ने साबित कर दिया है कि इच्छाशक्ति, अनुशासन और माता-पिता के संस्कार — सफलता के सबसे मजबूत आधार होते हैं.