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This Article is From Oct 09, 2023

हो चुका है शंखनाद! मध्य प्रदेश चुनाव में इन 29 विधानसभा सीटों पर होगी कांटे की टक्कर

प्रदेश में 17 नवंबर को मतदान होंगे और 3 दिसंबर को नतीजों का ऐलान किया जाएगा. सभी की निगाहें कुल 230 में से 29 प्रमुख विधानसभा सीटों पर होंगी, जहां मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा.

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हो चुका है शंखनाद! मध्य प्रदेश चुनाव में इन 29 विधानसभा सीटों पर होगी कांटे की टक्कर
मध्य प्रदेश की प्रमुख 29 सीटों पर होगी सभी की नजरें

MP Assembly Seats : मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है. भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीदवारों की तीन सूचियां भी जारी कर दी हैं जबकि कांग्रेस में अभी इस पर विचार विमर्श चल रहा है. प्रदेश में 17 नवंबर को मतदान होंगे और 3 दिसंबर को नतीजों का ऐलान किया जाएगा. सभी की निगाहें कुल 230 में से 29 प्रमुख विधानसभा सीटों पर होंगी, जहां मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा. इन 29 सीटों में भाजपा के चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की सीटें भी शामिल हैं. मध्य प्रदेश चुनाव में जिन 29 प्रमुख विधानसभा सीटों पर लोगों की नजरें होंगी, वे इस प्रकार हैं,

1. बुधनी : 2006 से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. इस सीट पर उन्होंने पहली बार उप चुनाव में जीत हासिल की थी. नर्मदा नदी के तट पर स्थित, सीहोर जिले की बुधनी सीट चौहान का गढ़ है. भाजपा के दिग्गज नेता ने 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी के लिए यह सीट जीती. चौहान ने इस सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता अरुण यादव को 58,999 वोटों के अंतर से हराया था.

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2. छिंदवाड़ा : नौ बार के कांग्रेस सांसद कमलनाथ ने दिसंबर 2018 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मई 2019 में उपचुनाव में अपने गृह क्षेत्र छिंदवाड़ा से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता. मुख्यमंत्री बने रहने के लिए नाथ ने अपनी पार्टी के सहयोगी दीपक सक्सेना द्वारा खाली की गई छिंदवाड़ा सीट 25,800 से अधिक वोटों के अंतर से जीती थी. 2013 में छिंदवाड़ा विधानसभा सीट भाजपा ने जीती थी, जबकि 2008 में यह सीट कांग्रेस के लिए सक्सेना ने जीती थी. यह विधानसभा क्षेत्र छिंदवाड़ा लोकसभा सीट का हिस्सा है, जिसे नाथ ने अपने दशकों लंबे राजनीतिक करियर में रिकॉर्ड नौ बार जीता है.

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3. दिमनी : मुरैना जिले के दिमनी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा द्वारा केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को मैदान में उतारने से इस सीट पर चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है क्योंकि तोमर को मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार के रूप में देखा जा रहा है. 2018 के विधानसभा चुनाव में गिर्राज दंडोतिया ने दिमनी से 18,000 से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी. बाद में वह भाजपा में शामिल हो गए और भगवा पार्टी के टिकट पर दिमनी सीट से 2020 का उपचुनाव लड़ा, लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार रविंद्र सिंह तोमर भिडौसा से वह हार गए.

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4. नरसिंहपुर : भाजपा ने मौजूदा विधायक जालम सिंह पटेल के स्थान पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के मजबूत नेता और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल को नरसिंहपुर जिले के नरसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा है, जिन्होंने 2013 और 2018 में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था. जालम सिंह केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के छोटे भाई हैं. जालम सिंह ने 2013 का चुनाव 48,000 से अधिक वोटों के अंतर से जीता था। 2018 में, उन्होंने 14,000 से अधिक वोटों के कम अंतर के साथ सीट बरकरार रखी.

5. निवास : मंडला जिले की निवास विधानसभा सीट से केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते भाजपा के उम्मीदवार हैं. कुलस्ते भाजपा के जाने-माने आदिवासी नेता हैं और उन्हें मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी देखा जा रहा है. निवास का प्रतिनिधित्व वर्तमान में कांग्रेस के डॉ. अशोक मार्सकोले कर रहे हैं, जिन्होंने 2018 का चुनाव 28,000 से अधिक मतों के अंतर से जीता था.

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6. इंदौर-1 : भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर-1 विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है. इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व वर्तमान में कांग्रेस के संजय शुक्ला कर रहे हैं, जिन्होंने 2018 का चुनाव 8,000 से अधिक मतों के अंतर से जीता था. भाजपा ने 2008 और 2013 के चुनावों में यह सीट जीती थी और अब पार्टी का लक्ष्य मालवा-निमाड़ क्षेत्र के कद्दावर नेता विजयवर्गीय को मैदान में उतारकर इसे कांग्रेस से छीनना है.

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7. दतिया : मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और वर्तमान गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा 2008 से विधानसभा में दतिया का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. हालांकि, उन्होंने 2018 का चुनाव केवल 2,600 से कुछ अधिक वोटों के मामूली अंतर से जीता, जिसमें पूर्व विधायक और वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेंद्र भारती ने उन्हें कड़ी टक्कर दी. भाजपा के लाल तिलकधारी नेता और तेजतर्रार मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा अक्सर अपने विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं.

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8. लहार : विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, कांग्रेस के डॉ. गोविंद सिंह चंबल संभाग के भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट का 1990 से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के वफादार गोविंद सिंह ने 2018 में सातवीं बार 9,000 से अधिक वोटों के अंतर से लहार सीट जीती थी.

9. हरसूद : 2008 से राज्य के वन मंत्री और लोकप्रिय आदिवासी नेता विजय शाह विधानसभा में हरसूद सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. खंडवा जिले के हरसूद को नर्मदा नदी पर इंदिरा सागर बांध के निर्माण के कारण अपने मूल स्थान से विस्थापित होने की पीड़ा का सामना करना पड़ा. लेकिन बांध के बैकवाटर ने कई सुंदर द्वीपों का निर्माण किया, जिससे क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिला. भाजपा नेता विजय शाह ने 2018 के चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित यह सीट 18,900 से अधिक मतों के अंतर से जीती.

10. सांवेर : विधानसभा में इंदौर जिले की सांवेर सीट का प्रतिनिधित्व वर्तमान में राज्य के सिंचाई मंत्री तुलसी सिलावट कर रहे हैं, जो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के वफादार हैं. सिलावट ने 2020 में कांग्रेस के विधायक का और कमलनाथ सरकार में मंत्री का पद छोड़ दिया और सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे. सिलावट ने 2008 और 2018 के चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में सांवेर से जीत हासिल की. पाला बदलने के बाद, उन्होंने 2020 के उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार के रूप में 53,264 से अधिक मतों के अंतर से इस सीट पर जीत हासिल की.

11. सांची : रायसेन जिले का एक प्रसिद्ध बौद्ध पर्यटन स्थल, सांची राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी का विधानसभा क्षेत्र है, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के वफादार हैं. चौधरी ने 2020 में कांग्रेस सरकार में विधायक और मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे. उन्होंने 2018 की तुलना में 2020 का उपचुनाव 63,809 वोटों के बड़े अंतर से जीता, जो उस साल हुए उप-चुनावों में किसी भी उम्मीदवार की जीत का सर्वाधिक अंतर था. चौधरी ने 2008 और 2018 में कांग्रेस के टिकट पर सांची से जीत हासिल की थी.

12. ग्वालियर : वर्तमान में विधानसभा में भाजपा के राज्य ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ग्वालियर सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं जो मार्च 2020 में पाला बदलने वाले कांग्रेस के बागी विधायकों और ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के सदस्यों में से एक थे. तोमर ने 2020 में कांग्रेस विधायक और मंत्री का पद छोड़ दिया और भाजपा में शामिल हो गए. इसके बाद उन्होंने ग्वालियर सीट पर हुए उपचुनाव में 33,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की. उन्होंने 2018 और 2008 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में ग्वालियर से जीत हासिल की थी.

13. सुरखी : सागर जिले की सुरखी सीट का प्रतिनिधित्व विधानसभा में राज्य के परिवहन और राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत करते हैं, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के प्रमुख सदस्य हैं. कांग्रेस के बागी विधायकों में से एक, राजपूत ने 2020 में मंत्री पद छोड़ दिया और भाजपा में शामिल हो गए थे. इसके बाद हुए उपचुनाव में उन्होंने सुरखी से 40,900 से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की. राजपूत 2018, 2008 और 2003 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में सुरखी से विजयी हुए थे.

14. बदनावर : धार जिले की यह विधानसभा सीट वर्तमान में ज्योतिरादित्य सिंधिया के एक और वफादार और उद्योग मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव के पास है, जो 2020 में कांग्रेस छोड़कर बागी विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे. इसके बाद हुए उपचुनाव में दत्तीगांव ने भाजपा के टिकट पर 32,100 से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की. उनके भाजपा में प्रवेश के कारण दिग्गज भगवा नेता और पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत भाजपा छोड़ कर हाल ही में कांग्रेस में शामिल हो गए. दत्तीगांव 2003, 2008 और 2018 में कांग्रेस के टिकट पर बदनावर से जीते थे.

15. बमोरी : गुना जिले की बमोरी सीट का विधानसभा में प्रतिनिधित्व राज्य के पंचायती राज और ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया करते हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के अन्य वफादारों की तरह, उन्होंने भी कांग्रेस विधायक का पद छोड़ दिया और करीब तीन साल पहले भाजपा में शामिल हो गए. सिसोदिया ने 2020 का उपचुनाव 53,100 से अधिक वोटों के अंतर से जीता, जो कि 2018 में कांग्रेस को मिली जीत के मतों के अंतर से दोगुना था. सिसोदिया ने 2013 में भी कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर यह सीट जीती थी.

16. राघोगढ़ : गुना जिले का एक छोटा सा पूर्व रियासती शहर, राघौगढ़, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का पारिवारिक क्षेत्र है. वर्तमान में, राघौगढ़ सीट का प्रतिनिधित्व विधानसभा में दिग्विजय सिंह के बेटे और कांग्रेस के पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह कर रहे हैं. यह सीट दिग्विजय सिंह के परिवार या उनके वफादारों तक ही सीमित रह गई है. जयवर्धन सिंह ने राघौगढ़ से 2018 का चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में 46,600 से अधिक मतों के अंतर से जीता. उन्होंने 2013 में अपना पहला विधानसभा चुनाव भी यहीं से जीता था. दिग्विजय सिंह का चुनावी करियर 1977 में इसी सीट से शुरू हुआ था. दो बार के पूर्व मुख्यमंत्री, कांग्रेस के दिग्गज नेता ने राघौगढ़ से चार बार - 1977, 1980, 1998 और 2003 में जीत हासिल की. उनके भाई लक्ष्मण सिंह ने 1990 और 1993 के चुनावों में यह सीट जीती.

17. चुरहट : सीधी जिले के अंतर्गत आने वाली चुरहट सीट कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत अर्जुन सिंह का गढ़ मानी जाती है. उनके बेटे अजय सिंह, जो अपने समर्थकों के बीच राहुल भैया के नाम से लोकप्रिय हैं, ने 2008 और 2013 में इस पारंपरिक पारिवारिक सीट का प्रतिनिधित्व किया. 2018 में भाजपा के शरदेंदु तिवारी ने 6,400 से ज्यादा वोटों के अंतर से कांग्रेस नेता अजय सिंह से यह सीट छीन ली थी.

18. सिहावल : सीधी जिले का एक अन्य महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र सिहावल है, जिसका वर्तमान में विधानसभा में प्रतिनिधित्व कमलेश्वर पटेल करते हैं. पटेल पहली बार कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य बनाए गए हैं. सिहावल पटेल परिवार की पारंपरिक सीट है. कमलेश्वर पटेल पूर्व मंत्री इंद्रजीत पटेल के बेटे हैं, जो दिवंगत अर्जुन सिंह के वफादार थे. कमलेश्वर पटेल 2018 में सिहावल से कांग्रेस के टिकट पर 31,500 से ज्यादा वोटों से जीते थे. उन्होंने 2013 में भी यह सीट हासिल की थी.

19. अनूपपुर : वर्तमान में यह सीट प्रमुख आदिवासी नेता और मध्य प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बिसाहूलाल सिंह के पास है, जो 2020 में कांग्रेस छोड़कर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे. बाद में उन्होंने उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर सीट जीती. अनूपपुर एक आदिवासी बहुल जिला है और सिंह 2018 और 2008 में भी कांग्रेस के टिकट पर यहां से विजयी हुए थे.

20. मैहर : वर्तमान में समाजवादी पार्टी नेता से भाजपा सदस्य बने नारायण त्रिपाठी विधानसभा में मैहर सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. त्रिपाठी की लंबे समय से लंबित मांग को पूरा करते हुए, शारदा देवी के मंदिर के लिए प्रसिद्ध इस शहर को हाल ही में चौहान सरकार द्वारा एक नया जिला घोषित किया गया था. त्रिपाठी ने 2018 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में सतना जिले के मैहर से 2,900 से अधिक वोटों के मामूली अंतर से जीत हासिल की. 2003 में सपा उम्मीदवार के रूप में उन्होंने 13,100 से अधिक वोटों के अंतर से यह सीट जीती थी.

21. शिवपुरी: ग्वालियर के पूर्व शाही परिवार के सदस्यों की पारंपरिक सीट, शिवपुरी का विधानसभा में प्रतिनिधित्व वर्तमान में मप्र की खेल और युवा कल्याण और तकनीकी शिक्षा मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया करती हैं. भाजपा नेता ने 2018 में 28,700 से अधिक मतों के अंतर से चुनाव जीता. उन्होंने लंबे समय तक शिवपुरी का प्रतिनिधित्व किया है और 1998, 2003 और 2013 में भी परिवार के गृह क्षेत्र से चुनी गईं. उन्होंने हाल ही में स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अनिच्छा व्यक्त की है.

22. चाचौड़ा: वर्तमान में वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह चाचौड़ा विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. लक्ष्मण सिंह उस समय भाजपा में शामिल हुए थे जब उनके बड़े भाई दिग्विजय सिंह राज्य के मुख्यमंत्री (1993-2003) थे. बाद में लक्ष्मण सिंह कांग्रेस में वापस आ गए. उन्होंने चाचौड़ा से 2018 का चुनाव 9,700 से अधिक वोटों के अंतर से जीता. सिंह 1996, 1998 और 1999 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में और 2004 में भाजपा के टिकट पर राजगढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. हालांकि, 2009 के लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस उम्मीदवार नारायण सिंह आमलाबे से हार गए जिसके बाद वह कांग्रेस में वापस आ गए.

23. नरेला: यह सीट मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के पास है. उन्होंने 2008, 2013 और 2018 में भोपाल जिले के नरेला से जीत हासिल की. सारंग ने राज्य में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या 2003 में पांच से बढ़ाकर 2023 में 24 करने में और हिंदी माध्यम में चिकित्सा शिक्षा शुरू करने में प्रमुख भूमिका निभाई. भाजपा नेता ने नरेला से 2018 का चुनाव 23,100 से अधिक मतों के अंतर से जीता.

24. इंदौर-3: भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय विधानसभा में इंदौर-3 सीट का प्रतिनिधित्व करते है. जूनियर विजयवर्गीय ने 2018 में कांग्रेस उम्मीदवार अश्विन जोशी को हराकर इंदौर-3 से 5,700 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की थी.

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25. इंदौर-2: इंदौर का एक और निर्वाचन क्षेत्र इंदौर-2 है जो भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का गढ़ है. इस सीट का प्रतिनिधित्व वर्तमान में उनके वफादार रमेश मेंदोला कर रहे हैं, जिन्होंने 2018 का चुनाव 71,000 से अधिक वोटों के अंतर से जीता था. यह अंतर उस वर्ष राज्य में जीत का सबसे अधिक अंतर था. मेंदोला 2008 और 2013 में भी इंदौर-2 से जीते थे. कैलाश विजयवर्गीय ने 1993 से 2003 तक विधानसभा में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था.

26. राऊ : पूर्व मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता जीतू पटवारी राऊ विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं. इंदौर जिले में स्थित राऊ अपनी कचौरी और कुल्फी के स्वाद के लिए मशहूर है. पटवारी ने 2013 में राऊ से जीत हासिल की और 2018 में सीट बरकरार रखी जब वह कमल नाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में मंत्री बने. हालांकि, नाथ सरकार केवल 15 महीने तक चली और मार्च 2020 में गिर गई.

27. उज्जैन दक्षिण : देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, महाकाल के मंदिर शहर में स्थित शहरी निर्वाचन क्षेत्र उज्जैन दक्षिण का प्रतिनिधित्व राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव करते हैं, जिन्होंने 2018 में 18,900 से अधिक वोटों के अंतर से सीट जीती थी. वह 2013 में भी इस सीट से भाजपा के टिकट पर चुने गए थे.

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28. मल्हारगढ़ : राज्य के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा मल्हारगढ़ विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. मल्हारगढ़ सीट राजस्थान की सीमा से लगे मंदसौर जिले में स्थित है. देवड़ा ने 2018 का चुनाव 11,800 से अधिक वोटों के अंतर से जीता था. वरिष्ठ भाजपा नेता 2008 और 2013 में भी मल्हारगढ़ से विधानसभा के लिए चुने गए थे.

29. झाबुआ: पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता कांतिलाल भूरिया ने 2019 के उपचुनाव में आदिवासी बहुल झाबुआ विधानसभा सीट 27,800 से अधिक मतों के अंतर से भाजपा से छीनी थी. झाबुआ में उपचुनाव जरूरी हो गया था क्योंकि मौजूदा भाजपा विधायक गुमान सिंह डामोर ने लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए यह सीट छोड़ दी थी. भूरिया ने 1998 से 2009 तक और 2015 में भी रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया था.

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