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MP में ज्यादातर आंगनवाड़ी केंद्र ही 'कुपोषित', भोपाल में 12 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार

मध्य प्रदेश की आंगनवाड़ियों की स्थिति बहुत खराब है. राजधानी भोपाल में भी कई आंगनवाड़ी केंद्र किराए के भवनों में चल रहे हैं या जर्जर हो चुके हैं. कई केंद्रों की दीवारें पॉलीथिन से सिली हुई हैं और छत की जगह प्लास्टिक की चादरें लगाई गई हैं.

MP में ज्यादातर आंगनवाड़ी केंद्र ही 'कुपोषित', भोपाल में 12 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार

Anganwadi Bhawan in Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश सरकार आंगनवाड़ी केंद्रों के भरोसे कुपोषण खत्म करने की बात कर रही है, लेकिन असल में आंगनवाड़ियां खुद कुपोषित हैं. राज्य के दूसरे जिलों या शहरों की बात छोड़ दें तो राजधानी भोपाल में भी आंगनवाड़ी केंद्र या तो किराए के भवनों में चल रहे हैं या फिर केंद्रों के भवन जर्जर हो चुके हैं. कई आंगनवाड़ी केंद्रों की दीवारें पॉलीथिन से सिली हुई हैं या फिर छत की जगह प्लास्टिक की चादरें लगाई हैं. कच्ची दीवारों पर टीनशेड डालकर भी कई केंद्रों को चलाया जा रहा है.

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प्रदेश की आंगनबाड़ियों में दर्ज बच्चों में से करीब 12 फीसदी कुपोषित हैं. राजधानी भोपाल में ही सरकार के अपने आंकड़ों में 12,199 बच्चे अंडरवेट यानी कुपोषित निकले. सरकारी कहती है कि 34 हजार 143 आंगनवाड़ियों के पास भवन ही नहीं है. चार हजार से ज्यादा भवन जर्जर हो चुके हैं. आंगनवाड़ियों को जैसे-तैसे निजी भवनों और सरकारी कोठियों की गली-गलियारों में चलाया जा रहा है.

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जैसे वेंटिलेटर पर रखें हो आंगनवाड़ी

भोपाल में कई केंद्र तो ऐसे हैं, जैसे किसी शव को वेंटिलेटर पर रख कर “स्वस्थ” घोषित कर दिया गया हो. कई केंद्र तो ऐसे बंद मिले जैसे ताला भी शर्मिंदा हो जाए. जब पास के रहवासी ने फोन लगाया तो सहायिका बोलीं- “दो लोग छुट्टी पर हैं और हम मीटिंग में हैं.” सरकार के मीटिंगों में जैसे बच्चों के पेट भर जाते हैं.

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नालियों से होकर आते हैं बच्चे

आंगनवाड़ी क्रमांक 1005 की गलियां सीधे मंत्रियों के बंगले के सामने खुलती हैं, लेकिन मंत्री जी की निगाहें शायद इतनी व्यस्त हैं कि बच्चे दिखते ही नहीं. कचरे और नालियों से होते हुए बच्चे वहां पहुंचते हैं. इस आंगनवाड़ी केंद्र की छत भी लकड़ी की बनी हुई है. खेल का मैदान तो दूर यहां शौचालय तक की व्यवस्था भी नहीं है.

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स्वर्णलता सोनी (आंगनवाड़ी सहायिका) ने बताया कि हर दिन 25 से 30 बच्चे आते हैं. सहायिका हैं, लेकिन छुट्टी पर हैं. खाना समूह से आता है, भीम नगर, ओम नगर के बच्चे यहां आते हैं तो आंगनवाड़ी मजबूरी में चलाने पड़ती है. हमारा नया केंद्र बन जाना चाहिए था लेकिन बना नहीं है. हमारे केंद्र की छत्त गिर गई थी दरारें आ गई थी.

एक ही कमरे में आंगनवाड़ी केंद्र

दुर्गानगर के अरेरा हिल्स स्थित केंद्र नंबर-698 का आंगनवाड़ी सिर्फ 90 वर्गफीट का कमरा है. इसमें 30 बच्चे पढ़ते और सपने देखते हैं. कमरे को दो हिस्सों में बांटा गया है. एक तरफ राशन, दूसरी तरफ मासूमियत. मैडम कहती हैं शौचालय बाहर है. शौचालय ऐसा कि अगर गेट भी लग जाए तो शर्म गेट के बाहर खड़ी हो.

लता सेन (सहायिका) कहती हैं कि  डेढ़ हजार का किराया है. सामान और कुर्सी हटाकर बच्चों को बैठा देते हैं. इसी कमरे में एक्टिविटी करवा देते हैं. बिजली रहती नहीं है.

महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया ने बताया कि हमारी कोशिश है कि सब चीजें बेहतर हों. हम जल्द ही परेशानियां दूर करेंगे.

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