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'मोबाइल जरूरी या मासूमों की मुस्कान?' चित्रकूट के स्कूल में अनोखी पहल, तख्ती दिखा कर बच्चों ने पूछा सवाल 

मध्य प्रदेश के चित्रकूट स्थित नवीन सरस्वती ज्ञान सागर स्कूल में बच्चों ने तख्तियां उठाकर एक भावुक सवाल पूछा “मोबाइल जरूरी या मासूमों की मुस्कान?” इस अनोखी पहल का उद्देश्य बच्चों और अभिभावकों के बीच बढ़ती digital addiction, mobile overuse और parent-child relationship gap को कम करना है.

'मोबाइल जरूरी या मासूमों की मुस्कान?' चित्रकूट के स्कूल में अनोखी पहल, तख्ती दिखा कर बच्चों ने पूछा सवाल 

Digital Addiction in Children: चित्रकूट के एक छोटे से स्कूल में बच्चों ने अपने हाथों में तख्तियां उठाकर जो सवाल किया “मोबाइल ज़रूरी या मासूमों की मुस्कान?” उसने हर अभिभावक को सोचने पर मजबूर कर दिया. पौसलहा गांव के नवीन सरस्वती ज्ञान सागर स्कूल की यह पहल सिर्फ एक गतिविधि नहीं, बल्कि दिल को छू लेने वाला संदेश है, जो बता रहा है कि बच्चों को सबसे ज्यादा जरूरत अपने माता-पिता के समय और प्यार की है, न कि चमकती मोबाइल स्क्रीन की.

बच्चों का सवाल जिसने सबको सोचने पर मजबूर किया

चित्रकूट क्षेत्र की ग्राम पंचायत पालदेव के पौसलहा गांव स्थित नवीन सरस्वती ज्ञान सागर स्कूल में बच्चों ने पोस्टरों पर ऐसे संदेश लिखे, जो किसी भी मां-बाप के दिल को पिघला दें. बच्चों ने तख्ती पर लिखा “मम्मी-पापा! आप जैसा हमें बनाएंगे, हम वही बनेंगे… मोबाइल छोड़कर हमारा साथ दीजिए.” इन मासूम शब्दों ने गांव के लोगों के बीच एक नई चर्चा को जन्म दिया कि क्या मोबाइल हमारी जिंदगी में बच्चों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है?

बच्चों और अभिभावकों के बीच बढ़ती डिजिटल दूरी

आज के दौर में मोबाइल फोन कई घरों में माता-पिता और बच्चों के बीच अदृश्य दीवार की तरह खड़ा है. शिक्षकों का कहना है कि पहले बच्चे अपने माता-पिता से खेल-खेल में बोलना, पढ़ना और मूल्य सीखते थे. कहानियां, लोरियां और घर की बातचीत ही उनका पहला स्कूल हुआ करती थीं. लेकिन अब मोबाइल पर बढ़ती निर्भरता ने इस अपनापन को काफी कम कर दिया है.

शिक्षक अशोक का अनुभव: रिश्तों में कम हो रही गर्माहट

स्कूल के शिक्षक अशोक बताते हैं कि बच्चों का बदलता व्यवहार साफ दिखाने लगा है. उनके अनुसार, बच्चे अब यह महसूस करते हैं कि उन्हें माता-पिता से सिर्फ सुविधाएं नहीं, बल्कि उपस्थिति, समय और संवाद चाहिए. मोबाइल की व्यस्तता ने घर के माहौल को इतना बदल दिया है कि कई बार बच्चा सवाल पूछना चाहता है, पर सामने बैठा माता-पिता स्क्रीन में खोया होता है.

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खराब रिजल्ट ने जगाई चेतना, स्कूल ने शुरू की नई पहल

प्रधानाध्यापक विद्या सागर पटेल बताते हैं कि हाल ही में स्कूल में अर्धवार्षिक परीक्षा हुई थी, जिसका रिजल्ट उम्मीद से कमजोर आया. जब कारणों की खोज की गई, तो पता चला कि बच्चों के साथ-साथ अभिभावक भी मोबाइल की लत में उलझे हुए हैं. यही वजह है कि स्कूल ने यह भावनात्मक अभियान शुरू किया, ताकि परिवार फिर से बच्चों के साथ जुड़ सके और पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया जा सके.

गांव में मिल रही सराहना 

इस अनोखी पहल को गांव में खूब सराहना मिल रही है. अभिभावकों ने स्वीकार किया कि बच्चों की मासूम आवाज़ ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया है. कई माता-पिता ने कहा कि वे अब घर में बच्चों के साथ अधिक समय बिताने और मोबाइल के उपयोग को सीमित करने की कोशिश करेंगे. यह छोटी सी शुरुआत समाज के लिए बड़ा संदेश दे रही है. बच्चे सब कुछ नहीं मांगते, बस थोड़ा समय, थोड़ा प्यार और थोड़ा साथ.

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