Madhya Pradesh OBC Reservation: मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की हिस्सेदारी पर बड़ा खुलासा हुआ है. राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की एक गोपनीय सर्वे रिपोर्ट में सामने आया है कि प्रशासनिक उच्च पदों (Class-I) पर ओबीसी का प्रतिनिधित्व सिर्फ 9.55% है, जबकि सामान्य वर्ग के अधिकारी 64.08% हैं. इस चौंकाने वाले सामाजिक असंतुलन को देखते हुए,रिपोर्ट ने राज्य में ओबीसी के लिए 35% आरक्षण की सिफारिश की है. यह सर्वे रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में 27% ओबीसी आरक्षण की सीमा पर चल रही सुनवाई के बीच सरकार के हलफनामे के साथ पेश की गई है, जो राज्य की आरक्षण राजनीति को नया मोड़ दे सकती है.रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में कुल स्वीकृत पदों में से आधे से अधिक यानी 50% से ज्यादा खाली पड़े हैं.
राज्य के 55 सरकारी विभागों से जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, 12,09,321 स्वीकृत पदों में से केवल 7,21,412 पद भरे हुए हैं, जबकि 4,87,909 पद रिक्त हैं। भरे हुए पदों में ओबीसी वर्ग के कर्मचारी 28.16%, अनुसूचित जाति 17.58%, अनुसूचित जनजाति 17.99% और सामान्य वर्ग 36.27% हैं. आगे बढ़ने से पहले रिपोर्ट के प्रमुख बिंदुओं को प्वाइंटर्स के बहान समझ लेते हैं.
ऊंचे पदों पर ओबीसी की नगण्य मौजूदगी
रिपोर्ट में बताया गया है कि जैसे-जैसे नौकरशाही के ऊंचे स्तरों की ओर बढ़ते हैं, ओबीसी का प्रतिनिधित्व तेजी से घटता जाता है.क्लास-I सेवाओं में सिर्फ 9.55% अधिकारी ओबीसी वर्ग से हैं, जबकि सामान्य वर्ग के 64.08% अधिकारी हैं। क्लास-IV कर्मचारियों में ओबीसी की हिस्सेदारी 32.56% है. रिपोर्ट में कहा गया है, “यह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से गहरे पिछड़ेपन को दर्शाता है. जबकि राज्य की आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी करीब 45% है, उनका उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व बेहद असमान है.”
रिक्तियों का असंतुलन और आरक्षण की वास्तविकता
अलग-अलग वर्गों में जो वेकैंसी है वो इस असंतुलन को और उजागर करता है, ओबीसी वर्ग के 51.17% पद अखिल भारतीय सेवाओं में खाली हैं, जबकि क्लास-I में 68.24% पद रिक्त हैं. एससी और एसटी वर्गों में 58% और 70% तक की रिक्तियां ऊंचे पदों पर हैं. केवल क्लास-III श्रेणी में 37% पद खाली हैं, जो बताता है कि निचले स्तर पर इन वर्गों की मौजूदगी अपेक्षाकृत अधिक है. आयोग ने कहा है कि “आरक्षण नीति ने पिछड़े वर्गों के लिए अवसरों के द्वार खोले हैं, लेकिन उच्च प्रशासनिक पदों पर अब भी सामान्य वर्ग का दबदबा कायम है.” रिपोर्ट के अनुसार सामान्य वर्ग का प्रतिनिधित्व उनके सैद्धांतिक हिस्से से 279% अधिक है.
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शिक्षा में पिछड़ापन, पीएचडी स्तर पर मात्र 21%
राज्य के 73 उच्च शिक्षण संस्थानों से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक, ओबीसी छात्रों की हिस्सेदारी कुल दाखिलों में 33.87% है. हालांकि सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्सों में 37 से 43% तक ओबीसी छात्र हैं, लेकिन पीएचडी स्तर पर यह संख्या घटकर मात्र 21% रह जाती है, जो उच्च शिक्षा तक उनकी सीमित पहुंच को दर्शाता है.
2023 में ही सौंपी गई थी रिपोर्ट
दरअसल ये गोपनीय सर्वे रिपोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में सरकार के हलफनामे के साथ पेश की गई है, जिसमें मध्यप्रदेश में ओबीसी के लिए 35% आरक्षण की सिफारिश की है. यह सर्वे महू स्थित डॉ.बी.आर.अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा किया गया था. उस समय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. रामदास आत्राम की अध्यक्षता में राज्य के लगभग 10 हजार ओबीसी परिवारों पर यह सर्वे हुआ. यह रिपोर्ट 28 जुलाई 2023 को राज्य सरकार के पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग को सौंपी गई, लेकिन अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है. सूत्रों के मुताबिक, यह वही रिपोर्ट है जिस पर आधारित होकर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने पक्ष में हलफनामा दाखिल किया है. अदालत में 27% ओबीसी आरक्षण सीमा पर सुनवाई जारी है और अगली सुनवाई नवंबर में प्रस्तावित है.
सर्वे का उद्देश्य क्या था?
2023 में कराए गए इस सर्वे का उद्देश्य था, राज्य में ओबीसी वर्ग की शिक्षा, रोजगार, आय, भूमि स्वामित्व और सरकारी योजनाओं तक पहुंच की वास्तविक स्थिति का पता लगाना. रिपोर्ट में पाया गया कि ओबीसी वर्ग का बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में रोजगार करता है, उच्च शिक्षा में उनकी भागीदारी सीमित है और उच्च प्रशासनिक सेवाओं में उनका प्रतिनिधित्व अत्यंत कम है. रिपोर्ट ने सिफारिश की है कि ओबीसी वर्ग की सामाजिक-शैक्षणिक स्थिति को सुधारने के लिए निश्चित अवधि के भीतर आरक्षण सीमा बढ़ाई जाए और शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण व सरकारी नौकरियों में हस्तक्षेप किया जाए.
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