
नर्मदा नदी को मां कहा जाता है...उनकी पूजा की जाती है...ऐसा इसलिए है क्योंकि वो जीवनदायिनी है लेकिन बात जब बड़वानी के राजघाट कुकरा गांव की होती है तो यही जीवनदायिनी नर्मदा लोगों के लिए मुसीबत का सबब बन जाती है. कारण है प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों की काहिली. उनके रवैये का ही परिणाम है कि हर साल 4 महीने कुकरा गांव टापू बन जाता है. गांव में 67 जिंदगियां कैद हो जाती हैं. न तो कोई गांव से बाहर जा सकता है और न ही अंदर आ सकता है. दर्द का ये सफर यहीं खत्म नहीं होता. इस दौरान इन ग्रामीणों को टीन शेड से बने घरों में रहना पड़ता है. इस साल हालात इसलिए और खौफनाक है क्योंकि प्रशासन ने गांव तक आने वाली नावों को भी बंद कर दिया है. आइए जानते हैं आखिर क्या है पूरा मामला?

ये बड़वानी जिले का राजघाट कुकरा गांव. डूब क्षेत्र में आने के बाद यहां के लोगों को विस्थापित किया गया था, लेकिन वे 300 किमी दूर गुजरात जाने को तैयार नहीं हैं और इन्हीं परिस्थितियों में यहीं पर रह रही हैं.
दरअसल पूरे बड़वानी जिले में बारिश का दौर जारी है. इसके साथ ही नर्मदा का भी जलस्तर बढ़ रहा है. इसकी वजह से ओंकारेश्वर परियोजना बांध की 4 टर्बाइन से लगातार पानी छोड़ा जा रहा है. इस वजह से राजघाट कुकरा गांव में नर्मदा के जलस्तर में 2 मीटर से ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है. नतीजा ये हुआ कि जिला मुख्यालय से 5 किमी दूर डेढ़ एकड़ क्षेत्रफल में फैला ये गांव टापू बन गया है. जिसकी वजह से गांव में बसे 17 परिवार यहां फंस कर रह गए हैं. बता दें कि ये स्थितियां हर साल बनती हैं लेकिन इस बार प्रशासन ने नाव का कोई इंतजाम नहीं किया है. जिसकी वजह से आने वाले चार महीने इन लोगों को गांव में ही कैद हो कर रहना होगा. अब ये भी जान लेते हैं कि आखिर ये गांव वाले बारिश से पहले गांव छोड़कर क्यों नहीं गए?
जान दे देंगे पर गांव नहीं छोड़ेंगे

राजघाट कुकरा गांव में जो लोग रह रहे हैं उनके लिए टिन शेड में घरे पांच साल पहले बने थे. वे अब भी इसी में रहते हैं.
ये पूरा इलाका सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र में आता है. बारिश होने पर हर साल राजघाट कुकरा गांव टापू बन जाता है. लेकिन गांव के 17 परिवार अपनी मांगों को लेकर यहां साल 2019 से ही रह रहे हैं. उनका कहना है कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं होती तब तक वे यहां से नहीं जाएंगे. वे अपनी मांगों को लेकर गांव में ही टीन के टपरे में रहते हैं. उनका कहना है कि उन्हें मुआवजे के तौर पर जो जमीन दी गई वह गुजरात के कच्छ में है और खारी होने के साथ-साथ बंजर भी हैं. जब उन्होंने इसका विरोध किया तो प्रशासन ने उनके रहने के लिए टिन शेडों का इंतजाम किया और खाने की व्यवस्था का आश्वासन देकर चले गए. इसके बाद गांव वाले गांव में ही रह गए. इसी दौरान करंट लगने से दो लोगों की मौत भी हो गई लेकिन प्रशासन ने उसका भी मुआवजा नहीं दिया. इन ग्रामीणों का कहना है कि हमारी मांगें पूरी नहीं होती तो हम जान दे देंगे पर गांव नहीं छोड़ेंगे.
हमें बंजर जमीन पर रहने भेज दिया, क्यों जाएं ?
गांव के देवेंद्र सोलंकी ने आरोप लगाया कि सरकार ने हमारा संपूर्ण पुनर्वास नहीं किया है. बारिश में कुकरा गांव टापू बन जाता है जैसे ही डैम में पानी पड़ता है हमें नाव की आवश्यकता पड़ती है लेकिन हमारी नाव भी बंद कर दी गई है.हम पुनर्वास स्थल पर गए थे लेकिन वहां हमारे मवेशियों के लिए चारे का इंतजाम नहीं था. वे मरने लगे तो हम फिर से अपने गांव में वापस आ गए. वहीं राहुल यादव ने बताया कि सरदार सरोवर का जल स्तर 121 मीटर तक पहुंच गया है ऐसे में यहां भी पानी बढ़ रहा है हम लोगों की मजबूरी है क्योंकि हमारा संपूर्ण पुनर्वास नहीं हुआ है. यहां रह रहे 17 परिवारों के मुखिया को जो जमीनी गुजरात में दी गई है वह भी खराब है.
अधिकारियों का है अपना ही तर्क
दूसरी तरफ नर्मदा प्राधिकरण अधिकारी एसएस चोंगड का कहना है कि साल 2019 में जब 138.68 सरदार सरोवर डैम भर गया पूरे कुकरा गांव को शिफ्ट कर दिया. उनके मुखिया को गुजरात में 2 हैक्टेयर की जमीन, मुआवजा सब दे दिया है, जो जमीन बची हुई है उनके कुछ बच्चे वहां रहते हैं. उनकी मांग है कि उनको भी मुआवज़ा मिले
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एसएस चोंगड
गांव में थी राष्ट्रपिता गांधी की समाधि
राजघाट कुकरा गांव इसलिए खास है क्योंकि यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि भी मौजूद थी. इसी वजह से गांव का नाम भी राजघाट कुकरा पड़ा. लेकिन डूब क्षेत्र में आने के बाद गांधी की समाधि को यहां से साल 2019 में शिफ्ट कर दिया गया था. अगर आप चौंक रहे हैं कि बापू की समाधि तो दिल्ली में है तो यहां कौन सी समाधि है? चलिए हम आपको इसकी कहानी बता देते हैं.

बाढ़ के क्षेत्र में आने के बाद न सिर्फ ये गांव बर्बाद हुआ बल्कि गांधी की समाधि को भी शिफ्ट करना पड़ा. लोगों की जिद सही है या गलत इस पर बात हो सकती है लेकिन सवाल ये है कि आखिर उन्हें इस हालत में वहां कब तक छोड़ा जा सकता है. नियमों का हवाला देकर 17 परिवारों की जिंदगी को यूं ही छोड़ देना कितना सही है इसका फैसला अब आप आप करें.