
MP First Assembly Election : प्रत्याशियों का ऐलान, लोक-लुभावने वादे और बड़े राजनीतिक चेहरों की रैलियां, मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) और छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की हवा बता रही है कि चुनाव का मौसम आ गया है. मध्य प्रदेश में यूं तो कई पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में हैं लेकिन मुकाबला कांग्रेस (Congress) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच है. चुनाव में अक्सर लाइमलाइट बड़ी पार्टियां लूटकर ले जाती हैं लेकिन छोटी पार्टियों को कम आंकना कई बार बड़े दलों को भारी पड़ जाता है. आजादी के बाद 1952 में हुए पहले आम चुनावों में मध्य प्रदेश (First Election in MP) में कांग्रेस की सरकार बनी. तब ऐसे कई दल और निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में थे जिनका नाम अब सिर्फ किताबों और पुराने दस्तावेजों में मिलता है. लेकिन शून्य पर सिमटने के बजाय इनमें से कइयों ने विधानसभा (MP Assembly) का रास्ता तय किया.

एक राज्य के रूप में मध्य प्रदेश 1 नवंबर 1956 को अस्तित्व में आया लेकिन इसका पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था. तब रीवा, मालवा, ग्वालियर और इंदौर जैसी रियासतें इस प्रदेश का हिस्सा थीं. तब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के बजाय नागपुर में थी. 1952 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में 1,10,70,000 मतदाता थे और 46.9 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस चुनाव में कुल 232 सीटें थीं जिनमें 136 एकल सदस्यीय और 48 दो सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र थे. इस दौरान कुल 1,122 उम्मीदवार मैदान में थे.

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कांग्रेस बनी सबसे बड़ी पार्टी
1952 के चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 225 सीटों पर लड़ते हुए सबसे अधिक 194 सीटों पर जीत हासिल की और रविशंकर शुक्ल आजादी के बाद मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने. सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस का वोट प्रतिशत 50 से कम (49.1 प्रतिशत) रहा. इस चुनाव में 76 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने वाली भारतीय जनसंघ अपना खाता खोलने में नाकाम रही. ऐसा ही कुछ हाल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया का रहा.
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छोटी पार्टियों को भी मिली कामयाबी
खास बात यह रही कि पहले चुनाव में कई छोटी पार्टियों के उम्मीदवार और निर्दलीय प्रत्याशी विधानसभा पहुंचने में कामयाब हुए. 35 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाले अखिल भारतीय राम राज्य परिषद को तीन सीटें मिलीं. इसी तरह सोशलिस्ट पार्टी को दो, शेतकरी कामगार पक्ष को दो, किसान मजदूर प्रजा पार्टी को आठ और 23 निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई थी. आगे चलकर इस तरह की कई छोटी पार्टियां या तो खत्म हो गईं या उनका बड़े दलों में विलय हो गया.