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Ahilyabai Jayanti Special: न कभी युद्ध हुआ और न कभी अकाल पड़ा, 250 मंदिरों का महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था पुर्ननिर्माण

Lokmata Devi Ahilyabai Holkar Jayanti: लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती को 31 मई से अगले एक साल के लिए मनाया जाएगा. इस जयंती वर्ष के अवसर पर कई कार्यक्रम और कई योजनाओं की शुरूआत होगी.

Ahilyabai Jayanti Special: न कभी युद्ध हुआ और न कभी अकाल पड़ा, 250 मंदिरों का महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था पुर्ननिर्माण
Ahilyabai Holkar Jayanti 2025: लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती पर खास

Ahilyabai Jayanti 2025: 31 मई से पूरे देश में लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती के बाद जयंती वर्ष के रूप में पूरे साल मनाया जायेगा. देवी अहिल्याबाई होलकर का जीवन समाज, संस्कृति और राष्ट्र के लिए हमेशा से समर्पित रहा. मालवा क्षेत्र की महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर (Lokmata Ahilyabai Holkar) ने शिव भक्ति की आराधना में लीन होते हुए शासक के रूप में कुशल रणनीति और कुशल कूटनीति का उत्कृष्ट उदाहरण दिया. इतिहास में लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर अकेली महिला शासक रही, जिन्होंने 28 सालों तक शासन करते हुए अपने राज्य में एक भी युद्ध नहीं होने दिया और ना ही उनके शासन काल में कभी अकाल पड़ा.

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250 मंदिरों का कराया था पुर्ननिर्माण

कुशल सुशासन उत्पादन का कुशल प्रबंधन और न्याय प्रियता, सेवा-धर्म की धनी देवी अहिल्याबाई होल्कर आधुनिक विचाराधारा के बावजूद अपने सनातन परंपरा को पल्लवित करने का काम किया. हिन्दुत्व के स्वाभिमान को जगाने के लिए टूटे हुए मंदिरों को पुर्ननिर्माण कराया और 250 मंदिर बनवाये. देवी अहिल्याबाई होल्कर ने पूरे देश के द्वादस ज्योर्तिलिंग और चारों धाम के मंदिरों का पुर्ननिर्माण विकास कर आध्यात्मिक और सनातनी धर्म का संरक्षण किया. 

देवी अहिल्याबाई होल्कर को समाज ने पुण्य-श्लोका, लोकमाता, मातोश्री, न्यायप्रिया, प्रजावत्सला, राजमाता, आदि से संबोधित किया.

अहिल्याबाई का जीवन परिचय

असाधारण व्यक्तित्व की धनी देवी अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के तत्कालीन अहमदनगर वर्तमान में अहिल्या नगर जिले के चौंडी गांव में हुआ था. ग्रामीण पृष्ठभूमि में साधारण परिवार में जन्मी अहिल्याबाई अपनी प्रतिभा और क्षमता से विशेष बनीं. मात्र आठ वर्ष की उम्र में वे राजवधु बनकर इंदौर आ गई. अहिल्याबाई को दोनों परिवारों से स्नेह, संबल और संस्कार मिले, लेकिन उनका पूरा जीवन विषमता से भरा रहा. वे केवल 29 वर्ष की थीं, जब पति महाराज खांडेराव वीरगति को प्राप्त हो गये. 1766 में पितृवत स्नेह देने वाले मल्हार राव होलकर का निधन हुआ. इसके बाद पुत्र मालेराव का निधन और फिर दोहित्र का निधन, फिर दामाद का निधन और बेटी का सती होना.

भगवान शिव को राजकाज किया समर्पित

वे अपने व्यक्तिगत जीवन में जितनी शांत, सरल और भावनात्मक थीं, राजकाज और राष्ट्र संस्कृति की रक्षा में उतनी ही संकल्पनिष्ठ और दृढ़ प्रतिज्ञ. इसीलिए उनके कार्यकाल में होलकर राज्य ने चहुंमुखी उन्नति की. उन्होंने राज्य को भगवान शिव को अर्पित कर दिया और स्वयं को केवल निमित्त माना. वे कहती थीं, कर्ता भी शिव, कर्म भी शिव, क्रिया भी शिव और कर्मफल भी शिव. वे राज्य के आदेश पर अपने हस्ताक्षर नहीं करती थीं. केवल राजमुद्रा लगाती थीं जिस पर श्रीशंकर अंकित थे.

कुशल राजनीतिज्ञ

महाराज मल्हार राव होलकर की मृत्यु उपरांत अहिल्याबाई ने कुशल राजनीतिक सूझबूझ से राज्य को युद्ध के संकट में जाने से बचा लिया. अहिल्याबाई एक कुशल सैन्य संचालक भी थीं. वे तलवार, भाला और तीर कमान चलाने में निपुण थी. वे हाथी पर बैठकर युद्ध करती थीं. उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह जन्म या जाति देखकर नहीं, बल्कि योग्यता देखकर किया. उन्होंने जब शासन संभाला तब राज्य में अराजकता का वातावरण था. उन्होंने घोषणा की थी कि जो भी नायक आंतरिक अपराधों को नियंत्रित करके शांति स्थापित करेगा उससे अपनी बेटी का विवाह करेंगी. नायक यशवंत राव फणसे ने यह काम पूरी क्षमता से किया.

महिला सम्मान और सशक्तिकरण

लोकमाता देवी अहिल्याबाई नारी सम्मान और सुरक्षा को लेकर अति संवेदनशील थीं. उन्होंने गांव में नारी सुरक्षा टोलियां स्थापित की थी. महिलाओं की एक सैन्य टुकड़ी भी गठित की थी. महिलाओं के सामाजिक सम्मान और आत्मनिर्भरता के लिये कुछ क्रांतिकारी निर्णय लिये. महिलाओं को संपत्ति में अधिकार, विधवा को दत्तक पुत्र लेने का अधिकार तथा विधवा पुनर्विवाह के अधिकार प्रदान किए.

इन प्रसिद्ध मंदिरों का कराया निर्माण 

अहिल्याबाई ने अपने राज्य के साथ देश के सांस्कृतिक गौरव की पुनर्प्रतिष्ठा की. गुजरात का सोमनाथ मंदिर, सभी ज्योतिर्लिंग, बद्रीनाथ धाम, दक्षिण में रामेश्वरम, जगन्नाथपुरी, द्वारिका, मथुरा श्रीकृष्ण मंदिर, वाराणसी में विश्वनाथ विष्णु धाम मंदिर और मणिकर्णिका घाट, आदि का उन्होंने ही निर्माण कराया. मातोश्री ने महेश्वर को शिल्प कला, संस्कृति, शिक्षा, साहित्य, उद्योग और व्यापार का केन्द्र बनाकर समूचे देश में शाखाएं स्थापित की. टकसाल स्थापित कर पूंजी उपलब्ध करवायी.

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होलकर राज्‍य में समर्थ सूचना तंत्र, पंचायतीय राज, न्‍यायालय, सुरक्षा की चौकस व्‍यवस्‍था, सशक्‍त सेना के साथ ग्रामीण तथा नगरीय नियोजन का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया. कभी राजनीतिक सूझबूझ तो कभी पराक्रम से राज्य को संघर्ष से बचाया और मजबूती प्रदान की. जीवन के अंतिम क्षण तक वे भगवान शिव और समाज के प्रति समर्पित रहीं. अंततः राजयोगिनी, कर्मयोगिनी देवी अहिल्याबाई ने 13 अगस्त 1795 को अपने जीवन की अंतिम श्वास ली. अंतिम क्षण तक उनके हाथ में शिव स्मरण की माला ही थी.

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