खास खबर: ग्वालियर के चाय वाले आनंद 28वीं बार ठोकेंगे चुनावी ताल, रोचक है चुनाव में उतरने की कहानी

Lok Sabah Election:आनंद कुशवाहा बताते हैं कि उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए भी 2007, 2012, 2017 और 2022 में भी फ़ार्म भरा था, लेकिन औपचारिकताएं पूरी नहीं होने से उन्हें चुनाव लड़ने जा मौका अभी नहीं मिल पाया है. अगर चुनाव का चिन्ह केतली नहीं मिल पाता है तो वे अपना नाम वापस ले लेते हैं.

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NDTV Special Election Story: ग्वालियर (Gwalior Lok Sabha Seat) में चाय वाले प्रत्याशी के नाम से चर्चित आनंद कुशवाह 28वीं बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं. ग्वालियर लोकसभा की अधिसूचना (Lok Sabha Election Nomination Form) जारी होते ही पहला नामांकन फार्म उन्होंने ही खरीदा है. ग्वालियर के चाय बेचने वाले आनंद भले ही पीएम (Prime Minister) की कुर्सी तक नहीं पहुंच सके हैं और ना ही उन्होंने एक बार भी चुनाव (Election) में जीत का स्वाद चखा है लेकिन चुनाव लड़ने का उनका जोश पहले की तरह ही बरकरार है. आनंद अब तक 27 चुनाव लड़ चुके हैं. वे पार्षद से लेकर महापौर (Mayer), विधायक (MLA यानी Member of the Legislative Assembly) और लोकसभा के चुनाव (General Elections 2024) में अपना भाग्य आजमा चुके हैं. उनसे जुड़ी एक खास  बात यह भी है कि अब तक के सभी इलेक्शन उन्होंने केतली के चुनाव चिन्ह (Election Symbol) पर ही लड़े हैं और जब उनको केतली चुनाव चिन्ह नहीं मिला तो उन्होंने चुनावी रण से अपना नाम ही वापस ले लिया.

Lok Sabha Election 2024: ग्वालियर में चायवाला चुनावी उम्मीदवार

बात चुभ गई तो लड़ने लग गए चुनाव

आनंद कुशवाहा चायवाले. यह नाम ग्वालियर में सब जानते हैं. वे ग्वालियर के लश्कर इलाके के समाधिया कॉलोनी में एक छोटी सी चाय की दुकान चलाते हैं. आनंद के चुनाव लड़ने की कहानी भी रोमांचित करने वाली है.

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आनंद कुशवाहा बताते हैं कि अपने कुशवाह समाज में उनका उठाना बैठना था. 1994 की बात है, उन्होंने पहली बार नगर निगम (Gwalior Nagar Nigam) पार्षद का चुनाव लड़ने का मन बनाया था, उसका फार्म भी भरा, उसी चुनाव में वर्तमान में राज्य सरकार (Madhya Pradesh Government) के कैबिनेट मंत्री (Mohan Yadav Cabinet Minister) जो उस समय मंत्री नहीं थे, नारायण सिंह कुशवाहा भी पार्षद का चुनाव लड़ रहे थे. ऐसे में सामाजिक समन्वय के लिए आनंद कुशवाहा ने अपना नाम वापस ले लिया. नारायण चुनाव जीत गए, लेकिन कुछ वक़्त में नारायण सिंह के तेवर बदल गये और उन्होंने आनंद कुशवाह चाय वाले से ऐसे कुछ शब्द कह दिए जो उनके दिल में घाव कर गये और उन्होंने उसी वक़्त फ़ैसला कर लिया कि अब वे हर हाल में चुनाव लड़ेंगे. तब से वे लगातार चुनाव लड़ रहे है.

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ऐसा है चुनावी जुनून

हर किसी का अपना अपना शौक होता है. कोई खानपान (Foodies) का शौकीन होता है तो कोई पर्यटन (Tourism) का, किसी को ब्रांडेड और फैशनेबल कपड़े पहनने का शौक होता है तो किसी को सोने-चांदी (Gold-Silver) के जेवरात खरीदने का, लेकिन ग्वलियर के माधोगंज इलाके के निवासी चाय बेचने वाले आनंद कुशवाह के इन सबसे इतर कुछ और ही शौक है, जिसके लिए वे अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई से पैसे इकट्ठे करते है. यह शौक है चुनाव लड़ने का, अपने इसी चुनावी जुनून के चलते वे अब तक एक, दो नहीं बल्कि पूरे 27 चुनाव लड़ चुके हैं. अब 28 वी बार भी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के मैदान में उतरने जा रहे हैं.

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चार बार भरा राष्ट्रपति चुनाव के लिए फार्म

अपनी चुनावी यात्रा की चर्चा करते हुए आनंद कुशवाह ने बताया कि वे पिछले तीस वर्षों से चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने पार्षद से लेकर महापौर, विधायक और सांसद तक का चुनाव हर बार लड़ा है. वे अब तक कुल 27 चुनाव लड़ चुके हैं और अब एक बार फिर 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी तैयारी कर ली है. उन्होंने  नामांकन फार्म ले लिया है और जल्द ही  वे अपना नाम निर्देशन फार्म जमा करायेंगे. आनंद राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) के लिए भी तैयारी कर चुके हैं. 

कुशवाहा बताते हैं कि उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए भी 2007, 2012, 2017 और 2022 में भी फ़ार्म भरा था, लेकिन औपचारिकताएं पूरी नहीं होने से उन्हें चुनाव लड़ने जा मौका अभी नहीं मिल पाया है.

'केतली' नहीं मिली तो वापस लिया नाम

कुशवाह भले ही किसी राजनीतिक दल से नहीं बल्कि निर्दलीय प्रत्याशी (Independent Candidate) के रूप में चुनावी समर में उतरते हैं, लेकिन उनका चिन्ह तय है. वे निर्वाचन आयोग (Election Commission) से सिर्फ केतली चुनाव चिन्ह ही मांगते हैं.

आनंद कुशवाह बताते हैं कि वे हर बार केतली के चिन्ह पर ही चुनाव लड़ते हैं. अगर चुनाव का चिन्ह केतली नहीं मिल पाता है तो वे अपना नाम वापस ले लेते हैं. पिछले 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी ऐसा ही हुआ निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान केतली चुनाव चिन्ह किसी दूसरे प्रत्याशी को आवंटित कर दिया गया था तो उन्होंने अंत में चुनाव मैदान से खुद को अलग कर लिया था.

चुनाव लड़ने के लिए हर रोज़ गुल्लक में बचाते हैं रुपए

चाय की दुकान (Tea Shop) चलाकर परिवार का भरण पोषण करने वाले आनंद का कहना है कि वे हर रोज चुनाव खर्च (Election Expenses) की चिंता करते हैं, क्योंकि नामांकन पत्र भरने में ही काफी पैसे खर्च होते है. वे एक गुल्लक रखते हैं, जिसमे रोज कुछ रुपये डालते हैं, ताकि ऐन वक्त पर घर का बजट न गड़बड़ाए. जब चुनाव आता है तो उसी राशि को चुनाव बजट (Election Budget) के रूप में खर्च करते हैं, पर्चे छपवा कर उन्हें बांटते हैं, साइकिल पर जनसंपर्क करते हैं, जिन लोगों को चाय पिलाते हैं उनसे भी वोट देने की गुजारिश कर लेते हैं.

2018 के विधानसभा चुनाव में ये संकल्प हुआ पूरा 

27 चुनाव लड़ने के बाद भी अब तक आनंद को कोई सफलता भले ही हासिल नहीं हुई. उनको हर चुनाव में वोट भी 100-200 के आसपास ही मिल पाते हैं. लेकिन आनंद कुशवाहा को इस बात का कोई मलाल भी नहीं है. वे कहते हैं कि " मेरा संकल्प नारायण सिंह की बात को काटना था, पिछली बार 2018 में ये संकल्प पूरा हो गया, वे क़रीब 121 वोट से हारे थे और 121 ही वोट मुझे मिले थे, ऐसे में वे मेरे वोटों की वजह से हारे थे. लेकिन अब चुनाव लड़ने का अलग जुनून है मैंने समाज के लिये काम करना शुरू कर दिया है तो अब चुनाव लड़ने की प्रतिज्ञा अब जारी रहेगी."

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