नुनहाई का 157 साल पुराना वैभव, 10 करोड़ के खास आभूषणों से सजीं नगर जेठानी, 350 किलो चांदी के रथ पर होगी विदाई

Maha Navami 2025: साल 1867 से नुनहाई दुर्गा उत्सव की शुरुआत हुई थी. व्यापारी समुदाय ने मां की प्रतिमा स्थापित कर आराधना करने का सिलसिला शुरू किया था. इसके बाद 157 साल में यह परंपरा कभी नहीं थमी.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins

Jabalpur Nagar Jethani Mata: नवरात्र पर्व में जबलपुर का सराफा इलाका सोने-चांदी की चकाचौंध से जगमगाने लगता है. सुनरहाई और नुनहाई की नगर जेठानी माता यहां हर साल वैसे ही विराजती हैं जैसे कोई राजमहल की रानी, नगर जेठानी माता दस करोड़ से ज्‍यादा के आभूषणों से सजी-धजी रही हैं. उनकी विदाई जिस रथ से होती है, वह साधारण नहीं, बल्कि 350 किलो शुद्ध चांदी से गढ़ा गया है, इस रथ की कीमत भी पांच करोड़ से ऊपर मानी जाती है.

157 साल से चली आ रही पर‍ंपरा

जानकारों के अनुसार, साल 1867 से नुनहाई दुर्गा उत्सव की शुरुआत हुई थी. कहते हैं, तब शहर का सराफा बाजार अपने सुनहरे दौर में था, व्यापारी समुदाय ने मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा का सिलसिला शुरू किया. इसके बाद 157 साल में यह परंपरा कभी नहीं थमी. इस नवरात्र भी नौ दिनों तक यह इलाका भक्ति और आस्था के रंगों में डूबा रहा.

दो देवियों का अद्भुत संगम

सराफा क्षेत्र में नुनहाई के साथ ही सर्राफ की दुर्गा प्रतिमा भी विराजमान होती है. शहर के सराफा में सड़क के दोनों ओर बैठी ये प्रतिमाएं बहनों की तरह एक-दूसरे की शोभा बढ़ाती हैं. नगर सेठानी कही जाने वाली इन प्रतिमाओं का सम्मान शहर में किसी शाही दरबार से कम नहीं है.

बुंदेली शैली की अनुपम छवि

दोनों प्रतिमाओं का स्वरूप आज भी बुंदेली शैली का अनुपम उदाहरण है. कई पीढ़ियों से एक ही परिवार यह प्रतिमा गढ़ रहा है. यही कारण है कि यहां आस्था के साथ-साथ कला और परंपरा की अनोखी विरासत भी कायम है.

Advertisement

परंपरागत गहनों से श्रृंगार

दुर्गा उत्सव समिति के अध्यक्ष विनीत सोनी बताते हैं कि माता का श्रृंगार हर साल उन आभूषणों से किया जाता है, जिनका डिजाइन आज कहीं देखने को नहीं मिलता. पीढ़ियों पहले बने बुंदेली गहने, जो अब इंसानी शरीर पर नहीं चढ़ते, वे आज भी मां के श्रृंगार की शान हैं. सोने-चांदी की यही धरोहर इस श्रृंगार को करोड़ों की कीमत का बना देती है.

साल में एक बार निकलता है रथ

मां की विदाई का पल सबसे खास होता है, जब नगर जेठानी 350 किलो चांदी से निर्मित रथ पर सवार होकर निकलती हैं. साल भर यह रथ सुरक्षा में बंद रहता है, मानो किसी खजाने को तिजोरी में रखा गया हो. दशहरे के दिन ही यह बाहर आता है और भक्तों को अपनी अनूठी भव्यता का दर्शन कराता है.

Advertisement

ये भी पढ़ें: जबलपुर में बड़ा हादसा: भंडारे का प्रसाद खा रहे श्रद्धालुओं को अनियंत्रित बस ने रौंदा, 14 घायल

ये भी पढ़ें: अब छत्तीसगढ़ में 'स्मार्ट' रजिस्ट्री, नवा रायपुर में देश का पहला अत्याधुनिक पंजीयन कार्यालय शुरू, क्‍या बदलेगा?