MP में जज को टर्मिनेट करने का मामला, जाने हाईकोर्ट ने क्यों ठहराया सही ? 

MP News: मध्य प्रदेश में जज को सेवा से अलग किए जाने को हाईकोर्ट ने सही ठहराया है. युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता एडीजे ने आबकारी मामले में दायर जमानत आवेदन पर दोहरा मापदंड अपनाया था. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला ? 

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Madhya Pradesh News: मप्र हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने अतिरिक्त जिला न्यायाधीश को सेवा से पृथक किए जाने को सही करार दिया है. युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता ADJ ने आबकारी मामले में दायर जमानत आवेदन पर दोहरा मापदंड अपनाया था. जिसके कारण विभागीय जांच के बाद उन्हें सेवा से पृथक किए जाने के दंड से दंडित किया गया था. याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के फैसले पर भरोसा करते हुए कुछ आवेदकों को जमानत का लाभ दिया और उन फैसलों पर विचार किए बिना अन्य को जमानत देने से इंकार कर दिया. 

जांच में अपनाई गई प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का कोई उल्लंघन या त्रुटि नहीं पाई गई है. युगलपीठ ने  ADJ की याचिका को हस्तक्षेप के अयोग्य पाते हुए खारिज कर दिया. 

 ये है मामला 

याचिकाकर्ता निर्भय सिंह सलूजा की ओर से विभागीय जांच के बाद सितम्बर 2014 में दंड स्वरूप सेवा से पृथक किए जाने के आदेश को चुनौती देते हुए यह मामला दायर किया गया था. युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि याचिकाकर्ता अक्टूबर 1987 को सिविल न्यायाधीश वर्ग के रूप में नियुक्त हुआ था. इसके बाद उसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद पर पदोन्नत किया गया. उसे मई 2011 में प्रवेश स्तर पर मप्र उच्चतर न्यायिक सेवा के सदस्य के रूप में उचित चयन के पश्चात पदोन्नत करते हुए खरगोन में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर पदस्थ किया गया. उनके खिलाफ  अगस्त 2011 में जयपाल मेहता नामक व्यक्ति ने आशुलिपिक अनिल जोशी के सहयोग से भ्रष्टाचार की गतिविधियों में लिप्त होने की शिकायत की थी. विशेषकर मप्र आबकारी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत अपराधों से उत्पन्न जमानत आवेदनों के मामले में शिकायत हुई थी.

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आरोपों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता को मई 2013 में कारण बताओ नोटिस जारी किए गए थे. सिविल सेवा के तहत याचिकाकर्ता को सूचित किया गया था कि उच्च न्यायालय ने उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का निर्णय लिया है. 

कारण बताओ नोटिस के साथ आरोपों की धाराएं आरोपों की धारा के समर्थन में कदाचार के आरोपों के बयान,दस्तावेजों की सूची और गवाहों की सूची संलग्न की गई. याचिकाकर्ता ने आरोपों का खंडन करते हुए कारण बताओ नोटिस का जवाब प्रस्तुत किया था. जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों से इंकार करते हुए स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया. 

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ऐसे अपनाया था दोहरा मापदंड

जांच कमेटी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ एक शिकायत को सही पाया और दूसरी शिकायत में उसे दोषमुक्त किया था. जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट दिसम्बर 2013 को प्रिंसिपल रजिस्ट्रार (निरीक्षण एवं सतर्कता) उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की थी. उच्च न्यायालय की प्रशासनिक समिति ने जांच अधिकारी द्वारा दर्ज निष्कर्षों पर विचार करते हुए याचिकाकर्ता को उसके खिलाफ सिद्ध आरोपों के लिए उसे दंडित क्यों न किया जाए के संबंध में कारण बताओं नोटिस जारी किया था. 

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10 साल पहले सेवा से हटाने के हुए थे आदेश

याचिकाकर्ता ने कारण बताओ नोटिस का उत्तर प्रस्तुत किया. प्रस्तुत उत्तर पर उच्च न्यायालय की प्रशासनिक समिति ने जुलाई 2014 को हुई बैठक में विचार किया और याचिकाकर्ता को सेवा से हटाने का दंड लगाने की संस्तुति प्रदान करते हुए मामले को विचारार्थ पूर्ण न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. पूर्ण न्यायालय ने सम्पूर्ण सामग्री और दोषी के प्रस्तुत उत्तर पर विचार करने के बाद दोषी पर नियम 1966 के नियम 10 के अन्तर्गत सेवा से हटाने का दण्ड लगाने का निर्णय लिया. मध्यप्रदेश शासन के विधि एवं विधायी विभाग ने सितम्बर 2014 को याचिकाकर्ता को सेवा से हटाने के आदेश जारी किए थे. युगलपीठ ने सुनवाई के बाद उक्त आदेश के साथ याचिका को खारिज कर दिया.

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