8 साल की कानूनी लड़ाई का हुआ अंत, उपभोक्ता आयोग ने डाक विभाग पर ठोका जुर्माना, अब देने होंगे इतने रुपए

Consumer Court Jabalpur: जबलपुर में एक उपभोक्ता ने 8 साल पहले डाक विभाग के जरिए पार्सल बुकिंग की थी. लेकिन जब उसका पार्सल नहीं पहुंचा तो उसने शिकायत की, समाधान नहीं मिलने पर कानूनी लड़ाई शुरू हुई. आखिरकार 8 साल के लंबे इंतजार के बाद जबलपुर उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष ने फैसला सुनाते हुए डाक विभाग पर जुर्माना ठोका है.

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Consumer Court Jabalpur: जबलपुर (Jabalpur) उपभोक्ता आयोग (Consumer Commission) के अध्यक्ष नवीन कुमार सक्सेना और सदस्य मनोज कुमार मिश्रा की बेंच ने डाक विभाग (Postal Department) द्वारा की गई लापरवाही के मामले में अहम निर्णय सुनाया है. उपभोक्ता अदातल ने डाक विभाग (India Post) की सेवा में कमी को स्वीकारते हुए परिवादी को लगभग 70 हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया. यह मुआवजा 2016 से 2024 तक की अवधि के लिए 37,786 रुपये की मूल राशि पर 7 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित होगा. इसके अलावा मानसिक प्रताड़ना के लिए 5,000 रुपये और मुकदमे का खर्च 2,000 रुपये अतिरिक्त रूप से दिया जाएगा. इस आदेश से पीड़ित की आठ साल लंबी कानूनी लड़ाई का अंत हुआ है.

क्या था मामला?

केस दायर करने वाले (परिवादी) प्रेम जगर गुप्तेश्वर वार्ड जबलपुर के निवासी हैं. इन्होंने अपने वकील अरुण जैन के माध्यम से आयोग में अपना पक्ष रखा. प्रेम जगर ने 31 मई 2016 को डाक विभाग के जरिए एक पार्सल (Parcel) भेजा था, जिसमें 37,425 रुपये मूल्य की साड़ियां और डिजाइनर मटेरियल शामिल थे. इसके लिए 361 रुपये का डाक शुल्क भी जमा किया गया था. हालांकि, यह पार्सल निर्धारित गंतव्य तक नहीं पहुंच सका, जिससे परिवादी को आर्थिक नुकसान हुआ.

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ऐसी चली कानूनी लड़ाई

समस्या के समाधान के लिए परिवादी ने पहले डाक विभाग से शिकायत की, लेकिन संतोषजनक उत्तर नहीं मिलने पर उन्होंने कानूनी रास्ता अपनाया. उन्होंने जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज की, लेकिन प्रारंभिक सुनवाई में यह मामला वाणिज्यिक उद्देश्य से जुड़ा होने के कारण निरस्त कर दिया गया. इसके बाद राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की गई, जहां मामले को पुनः जिला उपभोक्ता आयोग में सुनवाई के लिए भेजा गया.

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8 साल बाद आखिरी फैसला

नए सिरे से सुनवाई के बाद, जिला उपभोक्ता आयोग ने डाक विभाग की सेवा में कमी को सही ठहराते हुए परिवादी के पक्ष में मुआवजे का आदेश सुनाया, जिससे आठ साल के इंतजार के बाद न्याय की उम्मीदें पूरी हुईं.

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