Pad Man नहीं पैड वूमेन! सैनिटरी पैड बनाकर इस महिला स्व सहायता समूह ने पेश की मिसाल, ऐसी है कहानी

Inspiring News: नारी स्वाभिमान स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष मोना खोईवाल ने बताया, "2020 में गांव की ही 12 महिलाओं ने मिलकर एक महिला स्वयं सहायता समूह बनाया. कोरोना काल में पीपीई किट बनाने का काम किया. उसके बाद एनआरएलएम (राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) अंतर्गत 3 लाख रुपए लोन पास हुआ, जिसकी मदद से सैनिटरी पैड का काम शुरू किया."

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Inspiring Story: पैडमैन की कहानी को चरितार्थ कर रहीं नीमच की महिलाएं

Inspiring Story: मध्य प्रदेश के नीमच जिले की खोर ग्राम पंचायत की महिलाओं के एक स्वयं सहायता समूह ने न सिर्फ खुद को स्थापित कर अपनी पहचान बनाई, बल्कि दूसरी महिलाओं के लिए भी एक आदर्श स्थापित किया. समूह से जुड़ी महिलाएं फिल्म पैडमैन की कहानी को चरितार्थ करते हुए सैनिटरी पैड बनाकर महिला सशक्तीकरण की मिसाल पेश कर रही हैं. स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं ने कोरोना महामारी के समय सैनिटरी पैड बनाने का काम शुरू किया. 'नारी स्वाभिमान' नाम रखकर महिलाओं के स्वाभिमान को बढ़ाने के लिए पहला कदम बढ़ाया. फिर प्रधानमंत्री मोदी के महिला सशक्तीकरण और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के कारण नए पंख लगे.

आजीविका का बड़ा सहारा

कोरोना काल में 'राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन' के तहत तीन लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी गई. जिसकी मदद से पीपीई किट बनाने का पहला काम भी मिला. आज ये बड़े पैमाने पर सैनिटरी पैड बनाकर अपना और अपने परिवार की आजीविका चला रही हैं. इन्होंने गांव-गांव जाकर महिलाओं को माहवारी के समय होने वाली समस्याओं के बारे में जागरूक किया व पैड के उपयोग के बारे में बताया. अब बड़ी मशीन लगाकर हम बड़े-बड़े ऑर्डर ले रही हैं.

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नारी स्वाभिमान स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष मोना खोईवाल ने बताया, "2020 में गांव की ही 12 महिलाओं ने मिलकर एक महिला स्वयं सहायता समूह बनाया. कोरोना काल में पीपीई किट बनाने का काम किया. उसके बाद एनआरएलएम (राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) अंतर्गत 3 लाख रुपए लोन पास हुआ, जिसकी मदद से सैनिटरी पैड का काम शुरू किया."

समूह की सदस्य भारती नकवाल ने बताया, "यहां सैनिटरी पैड का काम चल रहा है, जिसका नाम नारी स्वाभिमान है. कई महिलाएं 5-6 सालों से काम कर रही हैं. हमें ज्यादा ऑर्डर मिले, तो बड़ी मशीनों का उपयोग किया. कुछ महिलाएं मशीन चलाती हैं तो कुछ महिलाएं इनका वजन करती हैं, कुछ महिलाएं इन्हें पैक करने का काम करती हैं."

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उन्होंने कहा, "महिलाएं पहले कपड़े का इस्तेमाल करती थी तो हमने सोचा कि कपड़े से बीमारियां होती थी, हमने ये पैड का काम शुरू किया है. यहां 10-15 महिलाएं आती हैं और काम करती हैं, यहां 5-8 लाख तक के ऑर्डर आते हैं, जिसमें हमें 8-10 दिन का समय मिलता है."

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