अतिथि विद्वानों के वेतनमान वाले मामले में हाई कोर्ट ने सरकार को नोटिस का जवाब देने की मोहलत दी

अगले सप्ताह इंजीनियरिंग कालेज के अतिथि विद्वानों के वेतन पर सुनवाई होगी. हाई कोर्ट की इंदौर बेंच के आदेश के पालन के परिपेक्ष्य में सरकार की ओर से जवाब दिया जाएगा.

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फाइल फोटो

Madhya Pradesh News: मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने अतिथि विद्वानों को सहायक प्राध्यापक स्तर को न्यूनतम वेतनमान दिए जाने की मांग संबंधी याचिका पर सुनवाई की, प्रशासनिक न्यायाधीश शील नागू और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने इस मामले की सुनवाई की. इस दौरान राज्य शासन की ओर से जवाब के लिए समय मांग लिया गया. अदालत ने मांग मंजूर करते हुए सुनवाई आगे बढ़ा दी. अब अगली सुनवाई छह फरवरी तक के लिए बढ़ा दी गई है.

अगले सप्ताह इंजीनियरिंग कालेज के अतिथि विद्वानों के वेतन पर सुनवाई होगी. हाई कोर्ट की इंदौर बेंच के आदेश के पालन के परिपेक्ष्य में सरकार की ओर से जवाब दिया जाएगा. याचिकाकर्ता के अनुसार अतिथि विद्वानों को नियमित प्राध्यापकों के स्तर के वेतन का अधिकार है. विवाद पुराने अतिथि विद्वानों को 200 रुपये प्रति पीरियड व नए अतिथि विद्वानों को 30 हजार रुपये प्रति महीने वेतन से जुड़ा हुआ है. सरकार ने इस बाबत चुनाव पूर्व ही अतिथि विद्वानों के वेतन में बढोत्तरी की थी.

मिलता है इतना मामूली भत्ता

याचिकाकर्ता शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, उज्जैन व शासकीय इंजीनियरिंग कालेज, जबलपुर के अतिथि विद्वानों की ओर से अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा. दलील दी गई कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्तियां अतिथि विद्वान के रूप में सहायक प्राध्यापक, असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर के रिक्त पदों के विरुद्ध की गई थी. अतः हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ द्वारा पारित आदेश की रोशनी में उन्हें सहायक प्राध्यापक स्तर का न्यूनतम वेतनमान मिलना चाहिए, लेकिन ऐसा न करते हुए राज्य शासन के स्तर पर 400 रुपये प्रति कालखंड जितना मामूली और मनमाना वेतन निर्धारण किया गया है.

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वहीं दूसरी तरफ एक अन्य व्यवस्था के जरिये 30 हजार मासिक वेतन निर्धारित किया गया है. इसके बावजूद वेतन निर्धारण केंद्र शासन के अधिकार क्षेत्र का विषय है. जिसके विरुद्ध हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है‌.

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