विज्ञापन

MP में गुलाब, चुकंदर, पालक से तैयार हो रहे रंग ! जानिए प्राकृतिक होली मनाने के फायदे

Holi 2025 : प्राकृतिक रंगों की होली में किसी भी तरह के हानिकारक रंग नहीं होते. जिससे कि वो त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. इसके अलावा वे पर्यावरण के अनुकूल होते हैं.

MP में गुलाब, चुकंदर, पालक से तैयार हो रहे रंग ! जानिए प्राकृतिक होली मनाने के फायदे
MP में गुलाब, चुकंदर, पालक से तैयार हो रहे रंग ! जानिए प्राकृतिक होली मनाने के फायदे

MP News in Hindi : होली के रंगों में इस बार मझगवां की महिलाओं की मेहनत और हुनर की खुशबू भी घुली होगी. खुशहाली महिला स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने सब्जियों और फूलों से तैयार हर्बल गुलाल बनाकर ने अपनी अलग पहचान बनाई है.साथ ही आत्मनिर्भरता की तरफ भी कदम बढ़ाए हैं. इस समूह की अध्यक्ष मनीषा गुप्ता हैं... और सचिव मुन्नी द्विवेदी हैं. जिनकी देख रेख में दस महिलाओं की ये टीम बीते तीन सालों से काम कर रही है. महिलाएं चुकंदर से गुलाबी, पालक से हरा, हल्दी से पीला, टेसू से नारंगी और गुड़हल से बैंगनी रंग तैयार कर रही है. ये गुलाल पूरी तरह प्राकृतिक है और इसमें किसी भी तरह के हानिकारक रसायन नहीं होते. अब यह समूह अपने उत्पादों को ऑनलाइन बेचने और अन्य शहरों तक पहुँचाने की योजना बना रहा है. साथ ही, वे और अधिक महिलाओं को इससे जोड़कर स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने की दिशा में काम कर रही हैं.

कैसे शुरू हुआ सफर

मनीषा गुप्ता ने बताया कि वो एक प्राइवेट स्कूल में प्राथमिक शिक्षिका हैं. उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से ये पहल शुरू की. उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण लिया और अपने समूह की महिलाओं को भी हर्बल रंग बनाने का तरीका सिखाया. धीरे-धीरे महिलाओं ने इसे व्यवसाय का रूप दे दिया.

गुलाल से हर साल 50 से 60 हजार की कमाई

समूह 300 रुपये प्रति किलो के हिसाब से हर्बल गुलाल बेचता है. त्योहारों के दौरान इसकी माँग अधिक होती है, जिससे यह समूह हर साल 50 से 60 हजार रुपये तक की कमाई कर लेता है. महिलाओं के अनुसार, ये व्यवसाय उन्हें आर्थिक मदद देने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की राह भी दिखा रहा है.

ये भी पढ़ें : 

• रमजान में इफ्तारी के समय पीएं ये ड्रिंक्स, मिलेगी भरपूर एनर्जी

• होली कब है... इतना कंफ्यूजन क्यों है ? यहां जानिए किस राज्य में कब खेला जाएगा गुलाल

जानिए प्राकृतिक होली के फायदे

दरअसल, प्राकृतिक रंगों की होली में किसी भी तरह के हानिकारक रंग नहीं होते. जिससे कि वो त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. इसके अलावा वे पर्यावरण के अनुकूल होते हैं. यानी कि प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाए तो पानी और मिट्टी का प्रदूषण नहीं होता है. चहरे के साथ-साथ ये रंग ऐसे होते हैं जो आंखों और त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करने से होली के बाद त्वचा पर दाने-खुजली या किसी अन्य तरह की समस्या नहीं होती है. 

ये भी पढ़ें : 

• रमजान में भी इन 7 लोगों की दुआएं नहीं होती है कुबूल, कौन हैं वे बदकिस्मत

 क्यों मनाई जाती है होली ? कैसे हुई इसकी शुरुआत, यहां जानिए इसके पीछे की अनोखी कहानी

MPCG.NDTV.in पर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार,लाइफ़स्टाइल टिप्स हों,या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें,सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
Close