
Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में लापता महिलाओं और बच्चों से जुड़े पुराने रिकॉर्ड को लेकर पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं. दरअसल RTI के तहत मांगी गई जानकारी पर जवाब देते हुए पुलिस ने बताया कि 2015 से पहले का रिकॉर्ड नष्ट कर दिया गया है. इस पर हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए पुलिस से स्पष्ट जवाब तलब किया है.
यह मामला एडवोकेट आशीष प्रताप सिंह की ओर से दायर एक याचिका से जुड़ा है, जिसमें कहा गया है कि ग्वालियर जिले में 2004 से 2021 के बीच लापता हुए बच्चों और महिलाओं की जानकारी मांगी गई थी, लेकिन पुलिस ने जानकारी देने से मना कर दिया.
कोर्ट को क्या बताया गया?
याचिका में कहा गया है कि 1 फरवरी 2021 को SP कार्यालय में RTI दर्ज की थी, लेकिन वहां से जवाब मिला कि हर थाने से अलग-अलग जानकारी लें.जब पहली अपील की गई तो पुलिस ने बताया कि जानकारी 3000 पन्नों में है और इसके लिए 6000 रुपये जमा कराने होंगे. लेकिन बाद में किशोर न्याय अधिनियम का हवाला देते हुए जानकारी देने से मना कर दिया गया.
इसके बाद राज्य सूचना आयोग में अपील की गई, लेकिन आयोग ने भी पुलिस के इनकार को सही बताया. इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत की गई.
पुलिस ने क्या कहा?
कोर्ट को बताया गया कि मांगी गई जानकारी RTI एक्ट के दायरे में आती है, लेकिन 2015 से पहले का रिकॉर्ड पुलिस द्वारा नष्ट कर दिया गया है. अब हाईकोर्ट ने पूछा है कि ऐसा क्यों और किस प्रक्रिया के तहत किया गया है.
याचिकाकर्ता ने क्या जानकारी मांगी थी?
• वर्ष 2004 से 2021 तक ग्वालियर जिले में लापता महिलाओं और बच्चों के नाम, पते और एफआईआर की कॉपी
• बरामद हुए व्यक्तियों की संबंधी जानकारी सौंपी जाए
• अपहरण में शामिल अपराधियों की जानकारी, पते और गिरफ्तारी की स्थिति
याचिकाकर्ता के वकील का क्या कहना है?
याचिकाकर्ता के वकील एमपी सिंह ने कहा कि यह जानकारी पूरी तरह RTI के तहत आती है, लेकिन ग्वालियर पुलिस लगातार जानबूझकर देरी करता आ रहा है. अब जब उन्होंने रिकॉर्ड नष्ट करने की बात मानी है, तो जवाबदेही और जरूरी हो गई है.
आगे क्या?
हाईकोर्ट ने फिलहाल पुलिस से रिकॉर्ड नष्ट करने की वजह और प्रक्रिया को लेकर विस्तृत जवाब मांगा है. मामले की अगली सुनवाई में यह तय होगा कि पुलिस की जवाबदेही किस हद तक तय की जा सकती है.यह मामला न सिर्फ लापता लोगों की जानकारी से जुड़ा है, बल्कि यह भी तय करेगा कि आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना पर सरकारी एजेंसियों की जवाबदेही कितनी पारदर्शी है.
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