Largest Chili Market of Asia: एशिया महाद्वीप की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी मिर्ची मंडी खरगोन जिले के सनावद तहसील के ग्राम बेड़िया में है. विगत 3 वर्षों में इस मिर्ची मंडी के नवीन परिसर के निर्माण में शासन ने 6 करोड़ रुपए खर्च किए. लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों ने मंडी के लिए उचित जगह का चयन न करते हुए पहाड़ी जमीन को शासन से आवंटित करवा लिया और इसी जमीन पर मंडी का निर्माण कर दिया. व्यापारियों ने उक्त मंडी में प्रवेश करने से मना कर दिया क्योंकि पहाड़ी पर बनी मंडी में वाहन प्रवेश नहीं कर पाते हैं.
उबड़-खाबड़ जमीन पर बनी मंडी का किसान भी विरोध करते रहे. शासन ने दोबारा इस मंडी के समतलीकरण को लेकर 6 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की जिसे 6 महीने हो चुके हैं. मगर अभी भी मंडी का कार्य प्रगति पर ही है. मंडी के बदहालत को देखते हुए एनडीटीवी की टीम मिर्ची मंडी पहुंची. मिर्ची मंडी की हालत के बारे में व्यापारी श्याम बिरला ने बताया, 'मैं बेड़ियां की मिर्ची मंडी में विगत 10 साल से व्यापार कर रहा हूं. मंडी प्रशासन की तरफ से कोई सुविधा नहीं दी जा रही है. यह जो परिसर है जहां मंडी का संचालन हो रहा है यह हमने भू मालिक से किराए पर लिया है.'
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छात्र भी सीख रहे व्यापार के गुर
उन्होंने कहा, 'यह लगभग 63 एकड़ भूमि है जिसकी कीमत लाखों में है. व्यापारी स्वयं भूमि स्वामी को किराया देते हैं. मंडी हमसे टैक्स वसूलती है और बदले में हमें कोई सुविधा नहीं मिलती. नई मंडी परिसर निर्माणाधीन है. उसमें किसान, व्यापारियों और मजदूरों की सुविधा के लिए व्यवस्थाएं होंगी.' मंडी में कुछ युवाओं से भी बातचीत की गई जिन्होंने बताया कि वे पढ़ाई भी करते हैं और मंडी में मिर्ची का व्यापार भी करते हैं. छात्र अज्जू खान ने बताया, 'मैं सुबह 7:00 बजे आकर 2 से 3 क्विंटल मिर्ची किसानों से खरीदता हूं और बड़े व्यापारी को एक से दो रुपए प्रति किलो के लाभ से बेच देता हूं. इससे मेरी 300 से 500 रुपए तक की आमदनी हो जाती है जिससे मैं अपनी पढ़ाई करता हूं. मैं बीए का छात्र हूं.'
इसी तरह अकरम खान ने बताया, 'मैं भी यहां पर मिर्ची खरीदता हूं और उसे बड़े व्यापारी को बेच देता हूं. जो मुनाफा मिलता है वह मेरी पढ़ाई पर खर्च करता हूं. इस तरह मिर्च खरीद-फरोख्त की जानकारी भी मिलती है और खुद की कमाई से पढ़ाई भी कर रहा हूं.'
मंडी में काम करते हैं 10 हजार मजदूर
इस मंडी में लगभग 10,000 से ज्यादा मजदूर काम करते हैं जो दूसरे जिलों से आए हुए हैं. मिर्ची तोड़ने वाली झिरन्या निवासी दिव्यता बाई ने बताया, 'हम परिवार सहित हर साल मिर्ची तोड़ने आते हैं. हमें मिर्ची तोड़ने में अच्छी मजदूरी मिल जाती है. पिछले वर्ष पूरे परिवार ने लगभग 50,000 रुपए की मजदूरी की. इस साल पानी और मिर्च की उपज कम निकलने के कारण इतनी राशि नहीं मिल पा रही है. हम तिरपाल की झोपड़ी बनाकर रहते हैं.'
मिर्ची साफ करने से हाथों में होती है जलन
उन्होंने कहा, 'ठंड और बारिश भी इसी झोपड़ी में कटती है. रहने की कोई व्यवस्था नहीं है. हाथों में जलन होती है. हम खुद अपना इलाज करवा लेते हैं. यहां कोई व्यवस्था नहीं है.' मंडी में मुस्कान और नैना भी मिर्ची साफ करने का काम करती हैं. उन्होंने बताया, 'हम 8 घंटे काम करते हैं. हमें 350 रुपए रोज मिलते हैं. यहां पर हमारी सुविधा व्यापारी ही करते हैं. मंडी की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं है. मिर्ची साफ करने से हाथों में जलन होती है जिसका इलाज हम खुद करवाते हैं.'
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व्यापारियों ने किया मंडी जाने से इनकार
इन तमाम अव्यवस्थाओं को लेकर मंडी के सहायक निरीक्षक हरीकरण बिरला से चर्चा की तो उन्होंने बताया कि हमारा मंडी का नया परिसर अभी निर्माणाधीन है जो 25 एकड़ में फैला हुआ है. मगर मंडी का निर्माण मात्र दो से ढाई एकड़ जमीन में ही हुआ है. पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण व्यापारियों ने मंडी में जाने से इनकार कर दिया. विधायक की तरफ से दोबारा 6 करोड़ रुपए की राशि का आवंटन हुआ है. अब उससे पहाड़ी के समतलीकरण का कार्य प्रगति पर है.