सागर के लाखा बंजारा झील किनारे स्थित गणेश का अष्टकोणीय मंदिर बुंदेलखंड के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है. मराठाकाल में जमीन की खुदाई के दौरान मिली गणेश की यह प्रतिमा स्थापना के बाद से हर साल बढ़ती जा रही थी. ऐसी मान्यता है कि जिसे देखते हुए सागर प्रवास पर आए शंकराचार्य ने एक अभिमंत्रित कील प्रतिमा के सिर पर ठोककर उसे बढ़ने से रोका था. भारत में अष्टकोणीय भगवान गणेश का यह दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है.
ये भी पढ़ें- Hartalika Teej 2023 : व्रत-शुभ मुहूर्त से लेकर जरूरी सामग्री की जानकारी यहां पाएं
खुदाई में मिली थी भगवान गणेश की प्रतिमा
मराठाकाल में यहां जमीन की खुदाई के दौरान भगवान गणेश की यह प्रतिमा निकली थी. जिन्हें उनके पिता भगवान शंकर के साथ विराजमान किया गया था. मंदिर निर्माण का कार्य साल 1603 से शुरू हुआ. महाराष्ट्र से आए कारीगरों को यह अष्टकोणीय मंदिर तैयार करने में लगभग 35 साल लग गए थे. वर्ष 1638 में इस मंदिर की स्थापना हुई और तब ही से यह पूरा क्षेत्र गणेशघाट के नाम से प्रसिद्ध है. मराठा शासक बाजीराव के समय इस मंदिर का निर्माण हुआ था. ऐसी मान्यता है कि मंदिर में सभी की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. देशभर के श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शनों के लिए पहुंचते हैं.
सिंदूर और पीले फूल किए जाते हैं अर्पित
पुजारी गोविंदराव आठले ने बताया कि मंदिर में गणेश की प्रतिमा विराजमान कराने के बाद ऐसा महसूस हुआ कि हर साल प्रतिमा थोड़ी-थोड़ी बढ़ने लगी है तो उन्होंने सागर प्रवास पर आए शंकराचार्य से संपर्क किया. इसके बाद शंकराचार्य ने यहां आकर भगवान गणेश की आराधना की और पूजा-अर्चना के बाद उन्होंने एक अभिमंत्रित लोहे की कील प्रतिमा के सिर पर ठोक दी, जो आज भी प्रतिमा में देखी जा सकती है. इसके बाद प्रतिमा उसी हाइट में है. यहां गणेशजी को सिर्फ सिंदूर और पीले फूल ही अर्पित किए जाते हैं.
ये भी पढ़ें- उज्जैन : देवेंन्द्र फडणवीस और ब्रजेश पाठक ने किए बाबा महाकाल के दर्शन