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This Article is From Aug 04, 2023

एक ऐसी मछली.. जो बैतूल को दिला रही है मलेरिया से छुटकारा!

जिला मलेरिया अधिकारी जितेंद्र सिंह राजपूत ने बताया कि लार्वा भक्षी मछली गम्बूशिया का जलस्रोतों में संचयन किया जा रहा है, जिससे मच्छरों की उत्पत्ति पर रोक लगती है. यह मच्छरों की उत्पत्ति कम करने का बायोलॉजिकल उपचार है.

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एक ऐसी मछली.. जो बैतूल को दिला रही है मलेरिया से छुटकारा!

बैतूल: दो हजार के दशक में मलेरिया की बीमारी के चलते देश भर में चर्चित रहे बैतूल को गम्बूशिया मछली ने मलेरिया से निजात दिला दी है. वर्षा काल में जगह-जगह जमा होने वाले पानी मे इस वर्ष तीन लाख गम्बूशिया मछली छोड़ने का लक्ष्य है, जिसके तहत जिले के 10 ब्लॉकों में गम्बूशिया मछली का संचयन किया जा रहा है.

जिला मलेरिया अधिकारी जितेंद्र सिंह राजपूत ने बताया कि लार्वा भक्षी मछली गम्बूशिया का जलस्रोतों में संचयन किया जा रहा है, जिससे मच्छरों की उत्पत्ति पर रोक लगती है. यह मच्छरों की उत्पत्ति कम करने का बायोलॉजिकल उपचार है. फिलहाल चिचोली ब्लॉक में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र  के अंर्तगत आने वाले गांवो में मलेरिया विभाग की टीम द्वारा सिपलई के ग्राम कोटमी देवपुर, खैरी के जल स्त्रोतों में लार्वा भक्षी मछली गम्बूशिया का संचयन किया गया है.

प्रतिवर्ष जुलाई और अगस्त माह में गम्बूशिया मछली संचयन की जाती है. वर्तमान में चिचोली विकास खण्ड में अच्छी बारिश से जल स्त्रोत लबालब भर गए हैं. ये समय गम्बूशिया मछली संचयन के लिए अनुकूल है. गम्बूशिया मछली वाहक जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम में बहुउपयोगी है, क्योंकि ये मच्छर के लार्वा खाती है. एक विकसित मछली 100 से 300 लार्वा खा लेती है जिससे मच्छर की उत्पत्ति तेजी से कम होती है. साथ ही ये मच्छरों की उत्पत्ति कम करने का बायोलॉजिकल उपचार है, जिससे  पर्यावरण को कोई खतरा नही है. ये मछली आकार में बहुत छोटी होती है और स्वाद में कडवी होती है. मछली पकड़ने और खाने वालों के काम की नहीं होती, जल स्त्रोतों में विपरीत परिस्थिति में भी जीवित रहने में सक्षम है.

जिले में मलेरिया से 99 प्रतिशत छुटकारा मिल गया है. जिला मलेरिया अधिकारी से मिले आंकड़े बताते है कि वर्ष 2015 में 3600 मलेरिया के रोगी पाये गए थे. लेकिन यह आंकड़ा वर्ष 2016 में 1946, 2017 में 1424, 2018 में 391, 2019 में 86, 2020 में 19, 2021 में 6, 2022 में 4 मलेरिया के मरीज मिले थे. मलेरिया के प्रकोप के चलते जिले के 3 ब्लॉक के 200 से अधिक गांव हाईरिस्क जोन में आते थे. घोड़ाडोंगरी, शाहपुर भीमपुर ब्लॉक में वर्ष भर सबसे ज्यादा मलेरिया के मरीज मिला करते थे. फिलहाल इन तीनो ब्लॉक में एक भी गांव में मलेरिया की बीमारी से ग्रसित मरीज नही है. 99 प्रतिशत जिला मलेरिया से मुक्ति पा चुका है.

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