विलुप्त होती भारतीय परंपरा ! मान मनुहार नहीं अब फेरी लगाकर गुजारा करते हैं ‘हरबोले’, जानें इनका इतिहास

Khandwa News: राजाओं के वंशज हरबोले अब फेरी लगाकर पेट पालने को मजबूर हैं. ये कबीर, तुलसी, मीरा के दोहे, वीर गाथाएं सुनाकर लोगों को जागरूक करते थे.

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Extinct Indian tradition: अपनी अनूठी शैली और अलग आवाज में राजा, महाराजाओं और वीरों की गाथा सुनाने वाले हरबोलों को अब कोई सुनने वाला नहीं है. इनकी परम्परा और लोक गायन विलुप्त होने की कगार पर है.  खण्डवा जिले के ओमकारेश्वर क्षेत्र से सीहोर से आए आकाश हरबोला अलसुबह पेड़ों पर चढ़कर कबीर, तुलसीदास के दोहे गा रहे हैं. पराक्रमी राजाओं की वीर गाथाएं और भगवान राम का गुणगान कर रहे हैं, लेकिन इस लोक कला के अब श्रोता नहीं रहे. इन लोक गायकों को मान सम्मान अब नहीं मिलता, जो पहले दिया जाता था. आज की पीढ़ी अब इनको पहचानती नहीं है.

कबीर-तुलसी के दोहे गाकर जागरूक करते हैं हरबोले 

आकाश हरबोला ने बताया कि राजा महाराजा के जमाने से बोलते आ रहे हैं, अब कोई इतनी पहचान नहीं रखता और नहीं पहचानता. घूम फिर कर अपने पेट का गुजारा कर लेते हैं. हम राजाओं के वंशज हैं. इतिहास में हमारा भी नाम चलता था. वीरों की गाथाएं गाते हैं. कबीर, तुलसी, मीरा के दोहे गाकर लोगों को जागरूक करते हैं, पहले हमें लोग जानते थे, सम्मान देते थे. अब हमें कोई नहीं पहचानता.

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उन्होंने आगे बताया कि हम पेड़ पर चढ़कर गाथाएं गाते थे तो लोग मनाकर उतारते थे और मान-मुनव्वल करते थे. अनाज और पैसा देते थे. अब पेड़ से उतारने कोई नहीं आता. गलियों में फेरी लगाकर पेट पालने को मजबूर हैं. हर साल सीहोर आते हैं, लेकिन अब पहले जैसे बात नहीं है.

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मांगने वाला समझते हैं, सम्मान नहीं मिलता

बदलते दौर में अब लोग हरबोलों को नहीं जानते, उनका क्या इतिहास है यह नई पीढ़ी को नहीं पता. इसलिए हरबोला संप्रदाय के युवा इस काम को अब नहीं करते. जीवन यापन के लिए अन्य काम करते हैं.

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आकाश हरबोला ने बताया कि जिनके पास खेती बाड़ी है या फिर काम है वह यह नहीं करते हैं. मेरे परिवार में पिता और मैं यह काम करते हैं. इसके अलावा बेलून बेचता हूं. यहां कोई सम्मान नहीं करता. लोग समझते हैं कि कोई मांगने खाने वाला आया है. पहले हमें सम्मान मिलता था.

सोई हुई नगरी को जगाते हैं

अपना दर्द बयां करते हुए आकाश हरबोला बताते हैं कि सोई हुई नगरी को सुबह 5 बजे से हम जगाते हैं, और लोगों को बताते हैं कि आज भी है हरि का हरबोला. नगर के लोगों को जगाते हैं. वर्षों पुरानी यह परंपरा अब दम तोड़ती हुई दिखाई दे रही है. 

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