
राजस्थान के झालावाड़ में हुए दर्दनाक हादसे से भी डिंडौरी जिला प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया है. मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य डिंडौरी जिले में आज भी खंडहर हो चुके भवनों में स्कूल का संचालन किया जा रहा है. जर्जर हो चुकी और टपकती छत के नीचे दहशत के साये में नौनिहाल पढ़ने के लिए मजबूर हैं और जिम्मेदार सबकुछ जानकर भी अंजान बने बैठे हैं.

डिंडौरी जिले के शहपुरा विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत अझवार ग्रामपंचायत के वनग्राम उमरधा के छात्रों को पढ़ने के लिए रोज जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करना पड़ता है. बैगान टोला में रहने वाले बच्चों को स्कूल तक पहुंचने के लिए पहले जान जोखिम में डालकर कनई नदी को पार करना पड़ता है.
स्कूल पहुंचने के लिए भी संघर्ष
फिर नदी को पार करने के बाद पगडंडी और कच्चे रास्ते में करीब एक किलोमीटर पैदल चलने के बाद वे जिस स्कूल में पढ़ने के लिए पहुंचते हैं, उस स्कूल भवन की हालत बेहद खस्ता हो चुकी है. स्कूल भवन की छत पूरी तरह से खराब हो चुकी है और छत का मलबा सड़ चुका है, जिसकी गवाही जंग लगे हुए सरिये दे रहे हैं.

फर्श रहता है गीला
छत खराब होने से पानी टपकता रहता है, जिससे फर्श भी गीला रहता है और इसी गीले फर्श में चटाई बिछाकर टपकती छत के नीचे नौनिहालों का भविष्य संवारा जा रहा है. प्राथमिक शाला उमरधा में 30 बच्चे पढ़ते हैं औक पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र विशेष संरक्षित बैगा जनजाति व आदिवासी वर्ग से आते हैं.
डरी-सहमी शिक्षिका पढ़ा रहीं
स्कूल में पदस्थ शिक्षिका ज्योति परस्ते ने बताया कि स्कूल भवन की हालत इतनी खराब है कि किसी भी वक्त धाराशायी हो सकता है और झालावाड़ हादसे के बाद वो खुद डरी सहमी किसी तरह स्कूल का संचालन कर रही हैं. उन्होंने स्कूल भवन के खस्ता हाल को लेकर समय समय पर अपने वरिष्ठ अधिकारीयों को जानकारी भी दी है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों को शायद किसी हादसे का इंतजार है.
प्राथमिक शाला उमरधा के पालक शिक्षक संघ कमेटी के अध्यक्ष प्रदीप कुलेश का भी कहना है कि स्कूल भवन की दयनीय स्थिति से अधिकारी भी वाकिफ हैं, लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं.
ये भी पढ़ें- ये है फ्रेंडली पुलिस: रीवा के थाने में गूंज रही बच्चों की आवाज, खेल-कूद के साथ बच्चे पढ़ रहे ABCD