
Ganesh Visarjan News: देवास जिले के शिप्रा गांव में सुबह का समय हल्की धूप और ठंडी हवा के बीच भक्तों की हलचल से जीवंत था. हर घर में सजाई गई गणेश जी की मूर्तियों के साथ बच्चे और बड़े उत्साह में थे. शिप्रा नदी के किनारे एक अनूठा नजारा था—श्रद्धा, आस्था और उत्सव का संगम. लोग अपने आराध्य देव को नदी में विसर्जित करने के लिए कतारबद्ध थे, हाथों में फूल, मन में प्रार्थना और आंखों में विश्वास. लेकिन इन सबके बाद जो नजारा दिखा उसने विश्वास तोड़ दिया और आस्था को गहरी चोट पहुंचाई है.
श्रद्धा के साथ खिलवाड़!
देवास जिले के शिप्रा गांव में गणेश विसर्जन के दौरान एक दृश्य ने श्रद्धा और प्रशासन की जिम्मेदारी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य देव की मूर्तियों को शिप्रा नदी में विसर्जित किया, लेकिन प्रशासन ने इन मूर्तियों को ट्रैक्टर-ट्रॉली में लाकर एक कचरे के ढेर में डाल दिया. यह दृश्य धार्मिक आस्थाओं के साथ खिलवाड़ की तरह प्रतीत होता है.
जब NDTV की टीम ने उठाए सवाल
एनडीटीवी की टीम ने जब इस स्थिति पर ध्यान आकर्षित किया, तो प्रशासन ने मूर्तियों को तालाब में विसर्जित करने की बात की. लेकिन, मूर्तियों का कचरे में फेंका जाना और आधी मूर्तियों का तालाब के किनारे पड़े रहना यह दर्शाता है कि प्रशासन ने इस धार्मिक अनुष्ठान को गंभीरता से नहीं लिया. देवास की सीईओ हेमलता ने इस मुद्दे पर अधिकारियों का बचाव किया है. उन्होंने दावा किया कि अधिकारियों ने मूर्तियों को तालाब में ही विसर्जित किया है. लेकिन, जो तस्वीरें सामने आई हैं वो प्रशासन की लापरवाही और धार्मिक आस्थाओं के प्रति अनादर को उजागर करती है.
आस्था पर चोट: ग्रामीणों की पीड़ा
शिप्रा गांव के निवासी इस दृश्य से आहत हैं. उनका कहना है कि गणेश जी की मूर्तियों को कचरे में फेंकना और तालाब किनारे आधी मूर्तियों का पड़ा रहना उनकी धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ है. यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है? क्या धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान की आवश्यकता नहीं है? समाज में आस्था और श्रद्धा की महत्ता को समझते हुए, हमें ऐसे कृत्यों की निंदा करनी चाहिए और प्रशासन से सवाल करने चाहिए ताकि वह अपनी जिम्मेदारी निभाए.
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