Success Story: सफलता उम्र की मोहताज नहीं... 6 वर्षीय दीपांशा सिंह ने रचा इतिहास, बनी MP की सबसे कम उम्र की कूडो खिलाड़ी 

Kudo Player Deepansha Singh: महज 6 वर्ष की उम्र में दीपांशा सिंह ने नेशनल कूडो चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. दीपांशा मध्य प्रदेश की सबसे कम उम्र की कूड़ो खिलाड़ी बन गई हैं. उनकी इस सफलता से परिवार के साथ-साथ जिले में खुशी की लहर है.

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Kudo Player Deepansha Singh Success Story: कहते हैं कि सफलता उम्र की मोहताज नहीं होती और इस कहावत को सागर की 6 वर्षीय दीपांशा सिंह ने सच कर दिखाया है. बेहद कम उम्र में दीपांशा ने कूडो खेल में ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिसने पूरे जिले को गौरवान्वित कर दिया है.

मध्य प्रदेश की सबसे कम उम्र की कूडो खिलाड़ी

महज 6 वर्ष की उम्र में दीपांशा सिंह ने नेशनल कूडो चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. इसी उपलब्धि के साथ दीपांशा मध्य प्रदेश की सबसे कम उम्र की कूड़ो खिलाड़ी बन गई हैं. उनकी इस सफलता से परिवार के साथ-साथ जिले में खुशी की लहर है.

आत्मरक्षा से शुरू हुआ सफर, बना राष्ट्रीय पहचान

दीपांशा के पिता डॉ. अजय सिंह बताते हैं कि उन्होंने शुरुआत में अपनी बेटी को आत्मरक्षा के उद्देश्य से कूडो एकेडमी में दाखिला दिलाया था, लेकिन जब दीपांशा का प्रदर्शन लगातार बेहतर होता गया तो उन्होंने उसकी प्रतिभा को पहचानते हुए आगे की पेशेवर ट्रेनिंग जारी रखी. आज उसी मेहनत और लगन का परिणाम राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल के रूप में सामने आया है.

अनुशासन और सादा जीवनशैली बनी सफलता की कुंजी

दीपांशा दो बहनों में सबसे छोटी हैं. उनकी मां प्रतिभा सिंह बताती हैं कि दीपांशा शुरू से ही अनुशासित जीवनशैली का पालन करती रही हैं. उन्होंने कभी जंक फूड नहीं खाया. जहां आज के दौर में बच्चे मैगी, चाउमीन और अन्य जंक फूड के आदी होते जा रहे हैं, वहीं दीपांशा इनसे दूरी बनाकर रखती हैं.

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पढ़ाई के साथ खेल में भी अव्वल

दीपांशा वर्तमान में पहली कक्षा में अध्ययनरत हैं और पढ़ाई के साथ-साथ कूडो की नियमित ट्रेनिंग भी ले रही हैं. कम उम्र में ही उन्होंने यह साबित कर दिया है कि यदि सही मार्गदर्शन और अनुशासन मिले, तो बच्चे हर क्षेत्र में ऊंचाइयों को छू सकते हैं.

देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने का सपना

अब दीपांशा का सपना है कि वह आने वाले समय में भारत देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रोशन करें. उनकी इस उपलब्धि ने न सिर्फ सागर बल्कि पूरे मध्यप्रदेश को गर्व महसूस कराया है.

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