Dalit Grooms: टीकमगढ़ (Tikamgarh) जिले के हटा गांव में आजादी के 78 वर्षों बाद भी सामंती सोच और जातिवाद की गहरी छाया देखने को मिली. यहां एक दलित युवक जितेंद्र अहिरवार को अपनी शादी की पारंपरिक राछ (विवाह से पहले निकाली जाने वाली शोभायात्रा) के लिए पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ी.
जितेंद्र अहिरवार की शादी के लिए गांव में राछ निकालने की तैयारी चल रही थी. परंपरा के अनुसार, दूल्हे को घोड़े पर सवार होकर गांव में यात्रा करनी थी. लेकिन, जब घोड़े वाले को गांव के दबंगों ने चेतावनी दी गई कि दलित युवक को घोड़े पर चढ़ने की इजाजत नहीं दी जाएगी, तो उसने घोड़ा देने से मना कर दिया और एडवांस राशि लौटाकर बुकिंग रद्द कर दी.
पुलिस से मांगी गई मदद
इस घटना से आहत दलित परिवार ने पुलिस से मदद की गुहार लगाई. इसके बाद बल्देवगढ़ थाना पुलिस ने तुरंत कदम उठाते हुए विवाह समारोह के लिए सुरक्षा प्रदान की. तब जा कर पुलिस की मौजूदगी में गाजे-बाजे के साथ जितेंद्र अहिरवार की राछ धूमधाम से निकाली गई.
सामंती सोच और जातिवाद का प्रभाव
गांव के बुजुर्गों और ग्रामीणों का कहना है कि बल्देवगढ़ थाना क्षेत्र के कई गांवों में अब भी सामंती सोच और जातिवाद की गहरी जड़ें हैं. दलित समाज के लोगों को पारंपरिक रीति-रिवाजों में बराबरी का अधिकार मिलने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है.
शादी का जश्न पुलिस की मौजूदगी में
पुलिस की सुरक्षा में जितेंद्र अहिरवार ने घोड़े पर सवार होकर गांव की गलियों में राछ निकाली. यह घटना न केवल जितेंद्र और उनके परिवार के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक संदेश बन गई कि अधिकारों के लिए खड़ा होना जरूरी है.
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बदलाव की जगी उम्मीद
इस घटना ने जहां एक ओर गांव में सामंती सोच की हकीकत उजागर कर दी है. वहीं, दूसरी ओर यह भी दिखाया दिया है कि पुलिस और प्रशासन का सहयोग समाज में बदलाव ला सकता है. यह घटना स्वतंत्र भारत में समानता और सामाजिक न्याय की ओर बढ़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है. टीकमगढ़ जिले में घटी यह घटना समाज को अपनी सोच बदलने और हर वर्ग को समान अधिकार देने की प्रेरणा देती है.
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