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MP Congress: जिसने सिंधिया के साथ कांग्रेस नहीं छोड़ी, अब राहुल के मनाने के बाद भी हो गए भाजपाई? जानें पूरी अंतर्कथा

MP Congress latest News: पाला बदलने के बाद कांग्रेस विधायक रामनिवास ने कहा कि कांग्रेस में अब कोई बात सुनने वाला नहीं है. किसी निर्णय में उनकी कोई पूछ परख नहीं थी. राहुल गांधी के आश्वासन के बावजूद उन्हें सीएलपी लीडर नहीं बनाया गया. कांग्रेस के खिलाफ काम करने वालों को मुरैना से टिकट दे दिया गया.

MP Congress: जिसने सिंधिया के साथ कांग्रेस नहीं छोड़ी, अब राहुल के मनाने के बाद भी हो गए भाजपाई? जानें पूरी अंतर्कथा

MP Congress News: विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद भाजपा लगातार कांग्रेस के झटके पर झटका देती जा रही है. ताजा झटका 6 बार के कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत को पार्टी में शामिल कर दिया है. दरअसल, ग्वालियर-चंबल अंचल सबसे कद्दावर कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री व प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और विधायक राम निवास रावत ने राहुल गांधी के मान मनौव्वल के बावजूद कांग्रेस को अलविदा कह कर भाजपा का दामन थाम लिया है.

पाला बदलने के बाद उन्होंने कहा कि कांग्रेस में अब कोई बात सुनने वाला नहीं है. किसी निर्णय में उनकी कोई पूछ परख नहीं थी. राहुल गांधी के आश्वासन के बावजूद उन्हें सीएलपी लीडर नहीं बनाया गया. कांग्रेस के खिलाफ काम करने वालों को मुरैना से टिकट दे दिया गया. शुरुआती दौर से सिंधिया परिवार के साथ सियासत करने वाले रावत इतने खांटी कांग्रेसी थे कि जब 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से अलविदा कहा, तो रावत ने उनके साथ जाने से इनकार कर दिया. लेकिन, कांग्रेस में रहने का उनका अनुभव कसैला ही रहा. एक तो वे सिंधिया और भाजपा के टारगेट पर आ गए. उनके परिवार के रोजगार धंधों को बर्बाद किया जाने गया. वहीं, कांग्रेस में भी उपेक्षा के सिकार होने लगे.

कमलनाथ के हटने के बाद अकेले पड़ गए थे रावत

राम निवास रावत का दिग्विजय सिंह से शुरू से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है. उनकी सरकार में मंत्री रहते हुए भी उनके बीच तल्खी रही, क्योंकि रावत माधवराव सिंधिया के निकट थे और दिग्विजय से उनकी पटरी नहीं बैठती थी. 1998 में जब रावत चुनाव हारे, तो उन्होंने इसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार ठहराया था . 2018 में वे सबलगढ़ से टिकट चाहते थे, लेकिन दिग्विजय सिंह ने मिलने नहीं दिया और विजयपुर से वे चुनाव हार गए. कमलनाथ ने जब प्रदेश की कमान संभाली तो रावत को थोड़ी ताकत मिली, लेकिन उनके साइड में जाते ही हालात बदल गए. दिग्विजय का दबदबा हो गया और रावत लगातार अलग-थलग होते चले गए. उनके भाजपा में जाने की अटकलों के बीच राहुल गांधी ने भी फोन पर उनसे बातचीत की. लगा वे मान गए हैं. वे राजगढ़ में दिग्विजय सिंह के समर्थन में प्रचार करने भी गए, लेकिन मंगलवार को अचानक उन्होंने कांग्रेस को बाय-बाय कहकर भाजपा का दामन थाम लिया . यह कोंग्रेस के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है.

दिग्विजय ने दो बार चुनाव हराया

एनडीटीवी नेजब रावत से पूछा कि क्या वजह रही कि उन्हें कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन करनी पड़ी ? इस पर उन्होंने सिलसिलेवार जानकारी देते हुए कहा कि क्षेत्र की जनता लगातार उन्हें एमएलए के रूप में चुनती रही है. मैं 1990 से अब तक सिर्फ दो बार चुनाव हारा, लेकिन वह भी अपनी जनता या कार्यकर्ताओं के कारण नहीं, बल्कि विशेष परिस्थितियों में अपने नेताओं की दुष्ता के कारण हारा. 2018 में मुझे सीट नहीं बदलने दी गई और 1998 में सबको पता है कि इसकी वजह क्या थी. वे बगैर नाम लिए इसके लिए दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार ठहराते नजर आए. वे दावा करते हैं कि 1998 में हारने के बाद जब मैंने राजा साहब (दिग्विजय सिंह ) को कहा कि मुझे प्रशासन ने हराया, तो उन्होंने हंसते हुए कहा कि तब तो मैं ही मुख्यमंत्री था. मैंने कहा कि अब ये तो आप देखो प्रशासन किसके कहने पर चलता था.

राहुल जी के कहने के बावजूद नहीं बनाया सीएलपी लीडर

रावत कहते हैं कि यह सिलसिला सिर्फ हराने तक ही नहीं चला, जब मैं अगला चुनाव जीत गया. प्रदेश में कांग्रेस विधायक दल का नेता यानी नेता प्रतिपक्ष चुना जाना था. मुझे राहुल गांधी ने खुद बुलाया और बोला आपको सीएलपी लीडर बना रहे हैं. उसके बावजूद सत्यदेव कटारे को यह पद दे दिया गया. इस बार भी यही हुआ. हम चाहते थे कि परफॉर्मेंस के आधार पर सीएलपी लीडर का चयन हो, कार्यकर्ताओं को महत्व मिले, तो ठीक रहेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. हम चाहते थे कांग्रेस के पास इस समय देने को कुछ नहीं है. इसलिए वह कार्यकर्ताओं को सम्मान तो दें, ताकि वह मैदान में डटा रहे, लेकिन उमंग सिंघार को बगैर परफॉर्मेंस देखे और कार्यकर्ताओं की भावनाओं पर गौर किए बना दिया गया.

रामनिवास रावत ने कहा कि अभी लोकसभा टिकट की जब बात आई, तब मैंने कहा था कि ग्वालियर और मुरैना में से एक टिकट ओबीसी को जाना चाहिए और यहां प्रत्याशी वही बनाया जाना चाहिए, जो कांग्रेस विचारधारा का हो. जो पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध हो. नेताओं ने एक नहीं सुनी, दोनों जगह ओबीसी को हटा दिया गया. इतना ही नहीं मुरैना से ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया गया, जिसने एक भी दिन पार्टी के लिए काम नहीं किया. इन सब बातों से कष्ट हुआ कि जब पार्टी ही विचारधारा से हटकर चल रही है. वह खुद विचारधारा समाप्त कर रही है, फिर इसमें रहने से क्या फायदा है.  

सिंधिया के साथ कांग्रेस क्यों नहीं छोड़ी?

जब रावत से पूछा कि सिंधिया परिवार की नजदीकी के कारण दिग्विजय सिंह के टारगेट पर आप रहे, तो 2020 में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा ज्वाइन की, तब आप क्यों उनके साथ नहीं गए ? इसकी वजह रावत कांग्रेस के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बताया. उन्होंने कहा कि हम पार्टी के साथ प्रतिबद्धता के कारण नहीं गए, क्योंकि तब हम सोच रहे थे कि हम सब पार्टी के लिए काम करें, उसकी स्थिति को मजबूत करें. उस समय हम राहुल गांधी से भी मिले थे कि हमें संरक्षण की जरूरत है. कांग्रेस पार्टी ऐसे चलती है कि कोई आका संरक्षण के लिए होना चाहिए. सिंधिया चले गए और शीर्ष नेतृत्व तक हम अपनी बात पहुंचा नहीं पा रहे थे, जब सिंधिया थे, तो सभी निर्णयों में हमारी सहभागिता होती थी, लेकिन बाद में कोई राय मशविरा नहीं ले रहा था. संगठन की नियुक्ति से लेकर टिकट वितरण तक में उनके समर्थकों की उपेक्षा हो रही थीं. जीतू पटवारी भी संगठन को खड़ा करने की दिशा में कोई काम नहीं कर सके. ऐसे में मेरी प्रतिबद्धता टूट गई और समर्थकों का दबाव बढ़ा कि भाजपा में जाकर कम से कम क्षेत्र का विकास ही सुनिश्चित किया जाए.

लोकसभा टिकट को लेकर राहुल गांधी तक को अंधेरे में रेखा

जब उनसे पूछा गया कि पार्टी छोड़ने की अटकलों के बीच राहुल गांधी ने आपसे फोन पर बातचीत की ? क्या बात हुई थी ? रावत कहते है कि राहुल गांधी ने कॉल किया था. उन्हें आशंका थी कि शायद लोकसभा टिकट के कारण ये स्थितियां बनीं हैं. उन्होंने कहा कि मैंने ही तो टिकट लेने को मना किया था? मैंने उन्हें बताया कि यह उस समय की बात है, जब मुरैना से भाजपा प्रत्याशी घोषित नहीं हुआ था. घोषित होने के बाद मैंने नेताओं को बताया कि वे लड़ने को तैयार है और जीतकर दिखा देंगे, लेकिन राहुल गांधी तक उन्होंने अंधेरे में रखा. मुझे लगा कि अब तो यहां कहीं से कोई संरक्षण नहीं मिलने वाला.

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मंत्री बनने के सवाल पर ये जवाब दिया

चर्चा है कि रावत विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा देंगे और सिंधिया के समय अपनाए गए फार्मूले की तरह ही तत्काल मंत्री पद की शपथ लेंगे. उसके बाद उप चुनाव लड़ेंगे. उसने पूछा कि इस चर्चा में कितनी सत्यता है? रावत ने साफ किया भाजपा के साथ उनका कोई समझौता नहीं हुआ है. मेरा सिर्फ एक ही समझौता हुआ है कि क्षेत्र के विकास के लिए हम जो-जो योजनाएं स्वीकृत कराना चाहेंगे, वे सब स्वीकृत होंगी. सरकार क्षेत्र के विकास में पूरा योगदान देगी.

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