MP Cooperative Bank News: मध्यप्रदेश के किसानों के लिए ये खबर अच्छी नहीं है. राज्य 55 जिलों में से 11 जिलों के सहकारी केंद्रीय बैंक (co-operative central bank)बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं क्योंकि इन बैकों में सैकड़ों करोड़ का घाटा हो रहा है और इनकी वित्तीय स्थिति एकदम खस्ता हो चुकी है. जाहिर है किसान जो इन बैंकों पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर हैं वो ही इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. आलम ये है कि NABARD ने RBI को इन बैंकों के लाइसेंस रद्द करने की सिफारिश की है, जो इस संकट की गंभीरता को दर्शाता है. दूसरी तरफ सरकार का कहना है कि वो पूरे प्रदेश में बैंकों में नोडल ऑफिसर (Nodal Officer) तैनात कर रही है जो बैंकों पर नजर रखेंगे जिससे हालत में सुधार आएगा. रिपोर्ट में आगे बढ़ने से पहले प्रदेश में सहकारी बैंकों की स्थिति पर नजर डाल लेते हैं.
सहकारी बैंकों की स्थिति का असर किसानों पर किस तरह से पड़ रहा है ये जानने के लिए हमने किसानों से ही बात की. इसी खोज के दौरान हमें भोपाल के करीब मुंगालिया छाप में रहने वाले तीन किसान अमर सिंह,विनोद पाटीदार और अजुर्न मेवाड़ा मिले. इन तीनों को ही सहकारी बैंकिंग क्षेत्र में संकट ने अजीब संघर्ष की स्थिति में छोड़ दिया है. विनोद पाटीदार कहते हैं कि बैंक से लोन मिलना तो बड़ी बात है वहां खाता खुलवाने में ही पसीना आ जाता है. बैंक वाले गलतियां ही इतनी बता देते हैं कि किसान कुछ कर नहीं पाता. वे कहते हैं कि सरकार की वजह से सहकारिता खत्म हो रही है. यहां 12 सालों से चुनाव ही नहीं हुए हैं लिहाजा किसानों का कोई प्रतिनिधि है ही नहीं.
दरअसल सहकारी बैंकों से ही किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज़ दर पर अल्पकालीन कृषि ऋण मिलता है. सहकारी बैंकों के ज़रिए किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड वितरित किए जाते हैं.अपेक्स बैंक, अल्पकालीन कृषि ऋण वितरण की प्रतिपूर्ति जिला बैंकों को करता है. यहां तक की समय पर सहकारी समिति का ऋण चुकाने वाले किसानों को खाद-बीज पर 10 प्रतिशत तक अनुदान मिलता है
लेकिन प्रदेश के 11 ज़िलों में ये सहकारी बैंक बंद होने की कगार पर हैं. किसानों का आरोप है कि इसकी वजह वे नहीं बल्कि भ्रष्ट सिस्टम है. वे बताते हैं कि बीते दिनों शिवपुरी के जिला सहकारी बैंक में 100 करोड का घोटाला हुआ. वहां सालों से घोटाला चल रहा था. जांच में पता चला था कि यहां चपरासी कैशियर की भूमिका में होते हुए 100 करोड के घपले को अंजाम दे गया. दूसरी तरफ सीधी में जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित 546.96 करोड़ रुपये के घाटे में है. इसी के मद्देनजर नाबार्ड ने वित्त विभाग को पत्र लिख कहा है बैंक की कार्यप्रणाली आपत्तिजनक है. आरबीआई के नियमों का कई स्तर पर उल्लंघन हुआ है.
लेकिन गजब तो ये है कि राज्य में एक तरफ तो सहकारी बैंकों की कमर टूट रही है वहीं दूसरी तरफ राज्य सहकारी बैंक प्रदेश में ऋण उत्सव मना रहा है. जिसके मद्देनजर समूचे मुख्यालय से लेकर प्रदेश के बैंकों के बाहर अपनी चमकदार स्कीमों को दर्शाते हुए लगाए गए इन होर्डिंग-बैनर-पोस्टर लगाए गए हैं.
ये अफसर बैंकों पर नजर रखेंगे और हालत को सुधारने में मदद करेंगे. उन्होंने कहा कि सरकार पूरी तरह से काम कर रही है किसानों को पूरा लाभ मिले इसका पूरा प्रयास किया जा रहा है.
दूसरी तरफ कांग्रेस इस मसले पर सरकार को घेर रही है. प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेन्द्र गुप्ता के मुताबिक राज्य सरकार ने सहकारिता आंदोलन को पूरी तरह खत्म कर दिया है. वे कहते हैं कि ये बैंक 15 -20 साल से रेड लाइन में हैं. चुनाव हो नहीं रहे. जीरो परसेंट पर कर्ज देने की बात रहे काउंटर बंद हे.भ्रष्टाचार हर जगह है.
बता दें कि मध्यप्रदेश में सहकारी बैंकों का इतिहास बहुत पुराना है. यहां साल 1907 में ही "क्रोस्थवेट केन्द्रीय सहकारी बैंक" सिहोरा में पंजीकृत हुआ था . इसके बाद से यहां सहकारी बैंकों ने लंबा फासला तय किया है लेकिन भ्रष्टाचार की दीमक ने इस आंदोलन को अब खोखला सा कर दिया है.
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