
Chhindwara Coldrif cough syrup Death: छिंदवाड़ा की गलियों में सन्नाटा है. जिन घरों में बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती थी, वहां अब सिर्फ आंसू हैं. 16 मासूम अब इस दुनिया में नहीं हैं, कुछ बच्चे अस्पतालों में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इन मौतों को 'बेहद दुखद' बताया है और प्रत्येक मृतक परिवार को 4 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने तथा इलाज का पूरा खर्च उठाने की घोषणा की है. पर जिन घरों ने अपने बच्चों को खो दिया है, वहां यह मुआवजा शब्दों की तरह खोखला है क्योंकि जो गया, वो लौटकर नहीं आएगा.
'मैंने अपना ऑटो बेच दिया, पर मेरा बच्चा नहीं बचा'
तीन साल 11 महीने का उसैद खान अपने पिता यासीन की आंखों का तारा था. छोटे से घर में हंसते खेलते पलने वाला यह बच्चा 31 अगस्त को बुखार और खांसी से बीमार पड़ा. यासीन अपने बेटे को डॉक्टर अमन सिद्दीकी के पास ले गये जो डॉ. प्रवीण सोनी के सहयोगी हैं. डॉक्टर ने कोल्ड्रिफ सिरप लिख दिया. 'सिरप पीने के दो दिन बाद ही हालत बिगड़ने लगी'.
यासीन बताते हैं ... पेशाब बंद हो गया, उल्टियां होने लगीं, आंखें सूजने लगीं. पहले छिंदवाड़ा ले गया, फिर नागपुर. डॉक्टर बोले ‘किडनी' फेल हो रही है.
'सोचा था बेटा बच जाएगा तो फिर से ऑटो खरीद लूंगा,' यासीन की आवाज भर्रा जाती है. अब न बेटा बचा, न काम बचा, न उम्मीद. उन्होंने बताया कि जब उसैद का इलाज चल रहा था, तभी घर की छत बारिश में गिर गई. पड़ोसियों ने प्लास्टिक से ढक दियाऔर जब मां-बाप अपने बच्चे का शव लेकर लौटे तो घर में बारिश का पानी भर चुका था. 'हम लाश लेकर लौटे थे'.
'जमीन गिरवी रख दी, गहने बेच दिए'
उसैद की मां फफक कर कहती हैं कि घर डूबा हुआ था, ज़िंदगी सूख चुकी थी... जमीन गिरवी रख दी, गहने बेच दिए, लेकिन बेटा चला गया.

'बेटे के इलाज में 7 लाख खर्च हुए, लेकिन नहीं बची जिंदगी'
प्रकाश यदुवंशी परासिया में रहते हैं. लकवाग्रस्त हैं, बताते हैं बेटे दिव्यांश के इलाज में 7 लाख रुपये खर्च हो गए. जमीन गिरवी रखी, पत्नी के गहने बेचे, उधार लिया, ब्याज पर कर्ज लिया… सब कुछ दे दिया, पर बच्चा नहीं बचा. 15 दिन तक दिव्यांश कुछ खा-पी नहीं सका. शरीर सूज गया, पेशाब बंद हो गया और डॉक्टरों ने डायलिसिस शुरू किया.
दिव्यांश अब नहीं है, पर उसकी तस्वीर दीवार पर टंगी है. पिता कहते हैं, 'हम हाईकोर्ट जाएंगे. किसी को सजा होनी चाहिए. हमारे बच्चे आंकड़े नहीं हैं....'
14 महीने की संध्या बोशुम के पिता रासेद बोशुम कर्नाटक में मजदूरी करते हैं, जब बेटी बीमार पड़ी तो काम पर थे. तबीयत बिगड़ने पर दौड़ते भागते गांव पहुंचे और नागपुर लेकर गए, लेकिन बिटिया को बचा नहीं पाए. काम छूटा बेटी भी.

बेतूल जिले के आमला ब्लॉक के कैलाश यादव किसान हैं. 24 अगस्त को कबीर को सर्दी-खांसी हुई. वो उसे परासिया में डॉ. प्रवीण सोनी के पास ले गए. डॉक्टर ने वही कोल्ड्रिफ सिरप दिया, लेकिन कबीर की तबीयत सुधरने के बजाय बिगड़ती गई. फिर डॉक्टर ने कहा, 'किसी और को दिखाइए.'
'तमिलनाडु सरकार ने 24 घंटे में जांच की, मगर MP में 40 दिनों तक कुछ नहीं हुआ'
कैलाश यादव कहते हैं, 'हमें पैसे नहीं, इंसाफ़ चाहिए'. तमिलनाडु की रिपोर्ट में साफ लिखा है, ‘कोल्ड्रिफ सिरप (बैच SR-13) में 48.6% डाईएथिलीन ग्लाइकॉल मिला है,' जो एक औद्योगिक केमिकल है पेंट में इस्तेमाल होने वाला जहर, जिससे किडनी फेल हो जाती है. तमिलनाडु सरकार ने छुट्टी के दिन 24 घंटे में जांच की और दवा पर बैन लगा दिया. मगर मध्य प्रदेश में 40 दिनों तक कुछ नहीं हुआ.

परासिया के इन घरों में अब सिर्फ सन्नाटा है. दीवारों पर बच्चों की तस्वीरें हैं और बिस्तरों पर उनके खिलौने...
उसैद की मां रोते हुए कहती हैं, 'सरकार को हमारी हालत का अंदाजा नहीं... हमें पैसे नहीं चाहिए हमें न्याय चाहिए. उस जहर को बेचने वालों को सजा चाहिए.'

मुख्यमंत्री की घोषणा देर से आई है. 16 छोटे ताबूत, उजड़े घर और 16 अधूरे बचपन यही अब मध्य प्रदेश का सच है. जो सरकार बच्चों की मौत के बाद रिपोर्ट ढूंढ रही थी, वह आज मुआवजे की घोषणा कर रही है. लेकिन इनके मां-बाप के सवाल वही हैं, 'अगर तमिलनाडु 24 घंटे में जांच कर सकता है, तो हमारे बच्चों के मरने का इंतजार क्यों किया गया?'