BJP या कांग्रेस,मध्यप्रदेश में 'बुलडोजर से इंसाफ' पर किसे था ज्यादा भरोसा ? चौंकेंगे आप

मध्यप्रदेश में बुलडोजर अब कानून और राजनीति का एक अहम हिस्सा बन चुका है. 2022 के खरगोन दंगों के बाद बुलडोजर एक्शन ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं. भू-माफिया से जमीनें छुड़ाने से लेकर विवादित अवैध निर्माणों को ढहाने तक, बुलडोजर का इस्तेमाल व्यापक रूप से किया गया है. कमलनाथ सरकार से शुरू होकर शिवराज सिंह चौहान तक, बुलडोजर एक्शन ने राज्य की राजनीति को बदल दिया है.

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Bulldozer Action Stopped: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को देशभर में बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाते हुए केन्द्र सरकार से सफाई मांगी है. ऐसे में मध्यप्रदेश में भी बुलडोजर एक्शन की फिर से चर्चा शुरू हो गई है. हाल ही में राज्य के छतरपुर में हाजी शहजाद अली (Shahjad Ali) के 20 करोड़ी घर पर मध्यप्रदेश प्रशासन का बुलडोजर चला था. वैसे अब लगता है कि  मध्यप्रदेश में बुलडोजर कानून व्यवस्था और राजनीतिक पहचान का एक अहम हिस्सा बन चुका है. खासतौर पर 2022 के खरगोन दंगों (khargone riots) के बाद, यह देशभर में चर्चा का विषय बना. 

दिलचस्प ये है कि राज्य में 'बुलडोजर से इंसाफ' की शुरूआत कांग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ के समय हुई न की बीजेपी सरकार के समय. इस रिपोर्ट में हम इसकी जानकारी भी देंगे लेकिन पहले आप जरा सरकारी आंकड़ों पर ही गौर कर लीजिए. इससे पता चलता है कि राज्य में बुलडोजर कैसे अहम बन गया है.

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साल 2022 में आखिरी बार सरकार ने बुलडोजर एक्शन पर आधिकारिक आंकड़ा दिया था. तब सरकार ने  बताया था कि 2020-2022 तक भू-माफिया के खिलाफ अभियान चलाकर उसने 18 हजार 146 करोड़ रुपये की 21 हजार 502 एकड़ जमीन को माफिया के कब्जे से मुक्त कराया है. तब बताया गया कि राज्य की 15 हजार 397 एकड़ सरकारी जमीन पर माफिया का अवैध कब्जा था, इसके साथ 6 हजार 105 एकड़ निजी जमीन को भी भू-माफिया से छुड़ाया गया. इसी दौरान 9 हजार 896 अवैध अतिक्रमण भी हटाए गए. शायद ये भी एक  वजह है कि  साल 2018 में 22 लाख में बिकने वाला बुलडोजर आज लगभग 40 लाख रु.में बाजार में उपलब्ध है. अब ये भी जान लीजिए कि हाल-फिलहाल में राज्य में बुलडोजर यानी 'पीले पंजे' के चर्चित एक्शन कौन से हैं?  

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वैसे मध्यप्रदेश में बुलडोजर एक्शन की शुरुआत 90 के दशक में हुई थी. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने पहली बार इसका इस्तेमाल भोपाल की सड़कों को चौड़ा करने और अतिक्रमण हटाने के लिए किया था. तब से बुलडोजर एक्शन कानून व्यवस्था का हिस्सा बन गया.

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लेकिन बुलडोजर से न्याय का सिद्धांत 2018 में कमलनाथ सरकार में शुरू हुआ जब इंदौर में एक कारोबारी और अखबार के मालिक जीतू सोनी के होटलों पर बुलडोजर चला,था. सोनी पर अलग-अलग थाने में 64 मामले दर्ज थे. इस एक्शन के साढ़े तीन साल बाद वो जेल से रिहा हुए.

फिर बीजेपी के पूर्व मंत्री संजय पाठक के रिजॉर्ट की बाउंड्री भी बुलडोजर का शिकार बनी.15 महीने के कार्यकाल में माफिया के खिलाफ भी कमलनाथ ने बुलडोजर का खूब इस्तेमाल किया. उस वक्त उनके मीडिया सलाहकार रहे नरेंद्र सलूजा ने कहा था कि इस प्रदेश में यदि कोई वास्तविक बुलडोजर मैन है तो वह कमलनाथ ही हैं. जिन्होंने अपने 15 माह के कार्यकाल में ही दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए, निष्पक्ष ढंग से माफियाओं के खिलाफ अपना बुलडोजर प्रदेश भर में चलाया. अब शिवराज नकल कर बुलडोजर मैन बनने की कोशिश कर रहे हैं. इसके बाद शिवराज सिंह की सरकार आई और उन्हें 'बुलडोजर मामा' कहा जाने लगा. केन्द्र में मंत्री बनने के बाद और चुनाव के वक्त कई जगहों पर उन्हें बुलडोजर पर चढ़कर माला पहनाई गई, स्वागत हुआ.

दूसरी तरफ दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से राज्य में 54 बार बुलडोजर चला है. इन 54 मामलों में से 30 कार्रवाई हिंदू तो 24 कार्रवाई मुस्लिम वर्ग के आरोपियों के खिलाफ हुईं लेकिन पिछले ढाई साल में मध्यप्रदेश में जो 259 मकान तोड़े गए इनमें 160 मुस्लिम और 99 हिंदुओं के हैं. सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाते हुए सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है. कोर्ट ने कहा है कि प्रशासन अवैध निर्माण पर समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं करता, और अपराध के बाद ही बुलडोजर क्यों चलता है.प्रशासन का यह एक्शन संवैधानिक सिद्धांतों और प्राकृतिक न्याय के खिलाफ माना जा रहा है.
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