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ग्वालियर की सड़कों पर 'सियासी आग', तय था बवाल पर 'जंग' होने से पहले यूं बदल गया पूरा सीन !

सोमवार को ग्वालियर की सड़कों पर खूब सियासी तनाव पसरा था. कांग्रेस दफ्तर के बाहर का इलाका दोपहर तक किसी अखाड़े की तरह लगने लगा था। एक तरफ भाजपा कार्यकर्ताओं का हुजूम, झंडे, पोस्टर और जबरदस्त नारेबाजी, तो दूसरी तरफ कांग्रेस के कार्यकर्ता मानो जैसे कोई जंग का मैदान. जैसे ही भीड़ बढ़ी, वैसे ही तनाव हवा में घुलता चला गया

ग्वालियर की सड़कों पर 'सियासी आग', तय था बवाल पर 'जंग' होने से पहले यूं बदल गया पूरा सीन !

Gwalior BJP-Congress Dispute: कहते हैं कि राजनीति में आग और पानी कभी साथ नहीं चलते, लेकिन सोमवार को ग्वालियर की सड़कों पर यही हुआ। कांग्रेस दफ्तर के बाहर का इलाका दोपहर तक किसी अखाड़े की तरह लगने लगा था। एक तरफ भाजपा कार्यकर्ताओं का हुजूम, झंडे, पोस्टर और जबरदस्त नारेबाजी, तो दूसरी तरफ कांग्रेस के कार्यकर्ता मानो जैसे कोई जंग का मैदान. जैसे ही भीड़ बढ़ी, वैसे ही तनाव हवा में घुलता चला गया।

पुलिस तैयार थी, हंगामा भी हुआ

पुलिस पहले से सतर्क थी। दफ्तर के चारों ओर बैरिकेड्स खड़े कर दिए गए थे, सड़कों पर जवान तैनात थे और अफसर खुद मौके पर मौजूद। नारेबाजी लगातार तेज होती रही। कभी भाजपा कार्यकर्ता कांग्रेस के खिलाफ हुंकार भरते, तो कभी कांग्रेस समर्थक पलटवार करते। भीड़ में कुछ कार्यकर्ता बैरिकेड्स लांघने को बेचैन हुए, धक्का-मुक्की का सिलसिला शुरू हुआ और पुलिस को दोनों तरफ से भीड़ को धकेलकर अलग करना पड़ा। इस सबके बीच भाजपा कार्यकर्ताओं ने राहुल गांधी का पुतला जलाया—यानी गुस्से की वही प्रतीकात्मक रस्म, जो हाल के महीनों में हर विवाद पर दोहराई जा रही है. 

भाजपा कार्यकर्ताओं ने राहुल गांधी का पुतला जलाया—यानी गुस्से की वही प्रतीकात्मक रस्म, जो हाल के महीनों में हर विवाद पर दोहराई जा रही है

भाजपा कार्यकर्ताओं ने राहुल गांधी का पुतला जलाया—यानी गुस्से की वही प्रतीकात्मक रस्म, जो हाल के महीनों में हर विवाद पर दोहराई जा रही है

तनाव चरम पर था पर...

तनाव अपने चरम पर था, आवाजें इतनी ऊंची कि कुछ देर को लगा माहौल बिगड़ ही जाएगा। लेकिन तभी आसमान ने करवट ली। घने बादल उमड़ पड़े, हवा तेज हुई और देखते-देखते बूंदें गिरने लगीं। कुछ ही मिनटों में हल्की रिमझिम ने मूसलाधार रूप ले लिया। जो भीड़ अभी तक नारे लगा रही थी, वह अचानक छतरी, पेड़ों और दुकानों की ओट में भागने लगी। झंडे भीगकर भारी हो गए, बैनर कागज़ की तरह गलने लगे, और भीड़ का जोश पानी में घुल गया। पुतले की राख नाली में बह निकली और सड़क पर सिर्फ भीगे पोस्टर और खाली बैरिकेड्स रह गए। पुलिस ने राहत की सांस ली। घंटों की मशक्कत, भारी बंदोबस्त और तनाव को जिस टकराव से बचाना मुश्किल लग रहा था, उसे आसमान से बरसी बौछार ने मिनटों में शांत कर दिया। जो भिड़ंत सियासी अंदाज़ में तय थी, वह मौसम ने अपनी मर्जी से रोक दी।

ये गुस्सा ग्वालियर तक क्यों पहुंचा

लेकिन सवाल उठता है कि ग्वालियर तक यह गुस्सा पहुंचा कैसे? असल में इसकी जड़ें बिहार के दरभंगा में हैं। वहां हाल ही में इंडिया गठबंधन के एक मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवंगत मां के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की गई। वीडियो वायरल होते ही भाजपा ने इसे “मातृत्व का अपमान” बताकर पूरे देश में विरोध की घोषणा कर दी। धरना, काला बैंड, पुतला-दहन और माफी की मांग—राज्य दर राज्य यही नज़ारा दिखा। दरभंगा पुलिस ने आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया है, मगर भाजपा कांग्रेस नेतृत्व से सार्वजनिक माफी की मांग पर अड़ी हुई है।सोमवार को ग्वालियर की सड़कों पर यही गुस्सा उतरा था। लेकिन नतीजा यह हुआ कि जो भिड़ंत राजनीति ने तैयार की थी, उसे मौसम ने धो डाला. 

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