
Bhopal Gas Tragedy Case: भोपाल गैस त्रासदी की जहरीली राख फिर से एक बड़ी पर्यावरणीय तबाही का खतरा बन गई है. जबलपुर हाईकोर्ट ने यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में पड़ी इस जहरीली राख के निपटान के लिए राज्य सरकार को सख्त निर्देश दिए हैं. अदालत ने कहा कि सरकार ने अब तक जो कदम उठाए हैं, वे बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं हैं.
हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी
हाईकोर्ट ने कहा कि 899 टन जहरीली राख (Toxic Ash) को तुरंत ऐसे स्थान पर ले जाया जाए, जहां न तो कोई मानव बस्ती हो, न पेड़-पौधे और न ही जलस्रोत हो. यह दूसरी बार है जब कोर्ट ने दो महीनों में इस विषय पर राज्य सरकार को सख्त आदेश जारी किए हैं.
पर्यावरणीय आपदा का खतरा
कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि इस जहरीली राख को रखने वाला कंटेनमेंट ढांचा किसी प्राकृतिक आपदा जैसे भूकंप या भारी बारिश से क्षतिग्रस्त हुआ, तो यह एक और बड़े पर्यावरणीय संकट का कारण बन सकता है. न्यायालय ने कहा कि भोपाल गैस त्रासदी पहले ही एक सबक दे चुकी है.
राख में मिला खतरनाक पारा
मामले से जुड़ी याचिका में बताया गया कि इस जहरीली राख में पारा (Mercury) की मात्रा तय सीमा से अधिक है. जवाब में राज्य सरकार ने अदालत को एक एनिमेटेड वीडियो दिखाया, जिसमें दावा किया गया कि राख को सुरक्षित रखने की व्यवस्था “आधुनिक और मजबूत” है. हालांकि, कोर्ट सरकार की इस दलील से संतुष्ट नहीं हुआ और कहा कि यह मामला सिर्फ तकनीकी सुरक्षा का नहीं, बल्कि जनजीवन की सुरक्षा का है.
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यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से उठी नई चिंता
गौरतलब है कि भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में पहले 358 टन जहरीला कचरा जमा था. हाईकोर्ट के आदेश पर जनवरी 2025 में इस कचरे को पीथमपुर स्थित TSDF प्लांट भेजा था. वहां 55 दिनों तक जलाने की प्रक्रिया चली, जिससे 899 टन जहरीली राख बनी. अब यही राख चिंता का कारण बन गई है और इसके सुरक्षित निपटान पर अदालत ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी है.
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अगली सुनवाई 20 नवंबर को
हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि वह राख के निपटान के लिए वैकल्पिक स्थल की रिपोर्ट पेश करे और इस प्रक्रिया में अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की मदद लें. अदालत ने साफ कहा कि यदि समय पर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं. इस मामले की अगली सुनवाई 20 नवंबर 2025 को होगी.