Bhopal Gas Leak Tragedy: यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का जहरीला कचरा फिर चर्चा में, गैस कांड पीड़ितों की दास्तान

Bhopal Gas Leak Case: यूनियन कार्बाइड ने जो जहर उगला वो सिर्फ 40 साल पहले नहीं, 40 साल बाद भी फ़ैक्ट्री के आस पास बस्ती और कॉलोनी में पानी इतना दूषित है कि कई लोगों की जान ले चुका है. यहां जो पानी आता है उससे बाल्टी-कूलर में सफ़ेद निशान और पपड़ी हफ्तों में जम जाती है, लोगों की शिकायत है शुगर के साथ कई लोगों को हार्ट अटैक का भी सामना करना पड़ा है.

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Bhopal Gas Tragedy Victims Story: भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) को हुए 40 साल बीत चुके हैं, लेकिन इसकी त्रासदी अभी भी लोगों के जीवन पर गहरे घाव छोड़ रही है. यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री (Union Carbide Factory) से 350 मीट्रिक टन जहरीले कचरे (Toxic Waste Management) का निपटान इंदौर (Indore) के पीथमपुर (Pithampur) स्थित ट्रीटमेंट स्टोरेज डिस्पोजल फैसिलिटी में किया जाएगा, लेकिन पहले किए गए परीक्षणों में असफलता और खतरनाक रसायनों के उत्सर्जन की आशंका से पीथमपुर और आसपास के लोग परेशान और डरे हुए हैं. वो डर और सच जिससे भोपाल में यूनियन कार्बाइड के आसपास रहने वाले हजारों लोग, 4 दशकों से गुजर रहे हैं.

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ये हैं रहवासियों की परेशानियां 

बृज विहार कॉलोनी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मात्र 2-3 किलोमीटर की दूरी पर है, इलाके का भूजल कार्बाइड के जहरीले कचरे से प्रदूषित हो चुका है. पीथमपुर में जहरीले कचरे का निपटान होने से बड़ी मात्रा में ऑर्गेनोक्लोरीन, डाइऑक्सिन और फ्यूरान जैसे कार्सिनोजेनिक रसायन उत्पन्न हो सकते हैं, जो लोगों और पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि इससे कैंसर भी हो सकता है.

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भगवती प्रसाद पांडेय, बृज विहार कॉलोनी के निवासी, कहते हैं, "पीने का पानी काफी हार्ड होने से एक बार मुझे हार्ट अटैक का सामना करना पड़ा था. मेरे साथ मेरा परिवार और पूरा मोहल्ला बहुत परेशान है. नगर निगम को साफ पानी देने का आदेश मिला था पर उन्होंने प्राइवेट कॉलोनी होने का कारण बता कर आदेश का पालन नहीं किया."

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आरएसपाल, बृज विहार कॉलोनी के निवासी, बताते हैं, "जब से यह कॉलोनी बनी है, तभी से यहाँ का पानी प्रदूषित है. जांच हुई जिसमें भारी मात्रा में मेटल पाया गया. इसे पीने से कई लोगों के गॉलब्लैडर में समस्या, गुर्दे में पथरी और स्किन इन्फेक्शन की शिकायतें हैं. हम यह पानी पीने को मजबूर हैं. कई दफा शिकायत करने के बाद भी हमारे लिए शुद्ध पानी का इंतजाम नगर निगम नहीं करवा पाया."

जहरीला कचरा ले चुका है कई लोगों की जान

यूनियन कार्बाइड ने जो जहर उगला वो सिर्फ 40 साल पहले नहीं, 40 साल बाद भी फ़ैक्ट्री के आस पास बस्ती और कॉलोनी में पानी इतना दूषित है कि कई लोगों की जान ले चुका है. यहां जो पानी आता है उससे बाल्टी-कूलर में सफ़ेद निशान और पपड़ी हफ्तों में जम जाती है, लोगों की शिकायत है शुगर के साथ कई लोगों को हार्ट अटैक का भी सामना करना पड़ा है. 

2004 से 2018 तक, जहरीले कचरे ने यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के आसपास के 42 बस्तियों के भूजल को जहरीला बना दिया, सुप्रीम कोर्ट ने इसे माना और प्रभावित इलाके में साफ पानी देने का आदेश दिया, लेकिन पिछले 5 सालों में ये जहर 29 और बस्तियों में फैल गया.

ऐसा है आरिफ नगर बस्ती के लोगों का हाल

आरिफ़ नगर बस्ती यूनियन कार्बाइड के सामने ही है. इस जहर का दंश आजतक लोग झेल रहे हैं. खुद को, बच्चों को, नाती-पोतों को बचाने में जो कमाते हैं, सब गंवाते हैं. हजारों की तादाद में गैस पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी में से कई बच्चे दिमागी तौर पर कमज़ोर हैं. गरीब मां-बाप महंगा इलाज करवा नहीं सकते. कुछ संस्थानों में फीजियोथैरपी से बस चलने-फिरने लायक बनाने की कोशिश करते हैं.

आरिफ़ नगर बस्ती की निवासी अमीना कहती हैं, "पानी इतना ख़राब था कि शरीर के कई अंग पूरी तरह ख़राब हो गए. बच्चा पैदा होने के समय डॉक्टर ने जवाब दे दिया था कि या तो बच्चा बचेगा या वो ख़ुद. तीन साल बाद पता चला कि ना वो बोल सकता हैं, ना सुन सकता है. हम ग़रीब परिवार से हैं, हमें बहुत परेशानी होती है. आज, पानी की वजह से हमारे घर में सभी बीमार रहते हैं."

दानू सिंह पानी और परिवार दोनों की सेहत को लेकर फिक्रमंद हैं, यही हाल आशिया का भी है. ऐसी कई मांए-नानी-दादी अपनी गोद में बच्चों, नवासी, पोते-पोतियों को लाते हैं. ज़्यादातर बच्चे बोल सुन नहीं सकते. इशारों में बात करते हैं, चेहरे पर मुस्कुराहट बनी है, लेकिन बात करो तो मायूसी और आंसू महसूस हो ही जाते हैं. सदी की सबसे भयानक औद्योगिक त्रासदी और फिर सरकारी तंत्र की लापरवाही.

दानू सिंह पानी और परिवार दोनों की सेहत को लेकर फिक्रमंद हैं, कहते हैं, "पानी इतना ख़राब है कि कभी खाना नहीं पचता, हमेशा उल्टियाँ होती रहती हैं. हमारे बच्चा भी पैदा हुआ बच्चा दिमाग़ी रूप से बहुत कमज़ोर है, बच्चे के हाथ पैर नहीं चलते हैं."

आशिया बताती हैं, "जबसे मेरा बच्चा पैदा हुआ है, तब से ही दिमाग़ी रूप से बहुत कमज़ोर है. बचपन में इसे झटके आए थे, हमारा बच्चा बहुत कमज़ोर है. कभी बुखार आता है, कभी पेट में दर्द होता है. पानी की वजह से इतनी परेशानी हुई कि बच्चे के लीवर से पानी निकाल रहा था, पत्थर की तरह पेट हो गया था."

UNEP को सरकार ने किया अनसुना

इन सबके बीच, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने 2014 में जहरीले कचरे का आंकलन करने की पेशकश की थी, लेकिन सरकार ने इसे अनसुना कर दिया। हजारों टन जहरीले कचरे की वजह से 4 किलोमीटर से ज्यादा के इलाके का भूजल प्रदूषित हो गया, वहां आज भी हजारों बच्चे जन्मजात विकृति से पैदा हो रहे हैं.

भोपाल गैस त्रासदी ने ना सिर्फ 40 साल पहले बल्कि आज भी उन बस्तियों और कॉलोनियों में पानी को इतना दूषित कर दिया है कि कई लोगों की जान ले चुका है. यहां के लोगों की शिकायत है कि शुगर और हार्ट अटैक जैसी बीमारियों ने उन्हें घेर लिया है. कमला कहती हैं, "30 साल हो गए हैं, पर आज भी खुजली होती है और काफी देर तक ठीक नहीं होती."

बाथम जी बताते हैं, "जब से गैस निकली है, तब से हम बहुत परेशान हैं. ना पानी सही आता है, ना ही आराम से रह पाते हैं. इतने साल होने के बाद भी दवा खानी पड़ रही है. यहां आने वाला पानी दूषित है, इस से कई बीमारियां हो रही हैं."

चंद्रमा देवी ने बताया मेरा पूरा परिवार था जब यह हादसा हुआ. गैस के बढ़ जाने से हम सब भागने लगे , हमारी सास ने सबको कंबल उड़ा दिए थे. इस गैस के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ा. अभी भी दर्द होता है, आंखों में जलन, ब्लड प्रेशर और सांस फूलने की शिकायत रहती है. पानी दूषित हो जाने से पेट में दर्द और जलन होती थी. हमें अलग जगहों से पानी भरना पड़ता है. मेरा पोता 6 साल का हैं, पर आज भी ठीक से चलने,बैठने और बोलने में दिक्कत होती है.

भोपाल गैस त्रासदी हर कदम पर त्रासद ही रही है. केन्द्र सरकार भोपाल गैस त्रासदी में मृतकों के आंकड़े को 5295 बताती रही है, मध्यप्रदेश सरकार 15342 और ICMR के मुताबिक इस हादसे में लगभग 25000 लोगों की मौत हुई. जो बच गए वो सालों बाद भी तिल तिल कर मरने को मजबूर हैं। उनके ही पैसे, उनके ही नाम पर कचरे में फेंके जा रहे हैं। जब निपटारे की बात आई है तो वो भी उनकी सेहत पर बुरा असर डाल सकती है.

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