संसद में उठा भोपाल के जहरीले कचरे का मुद्दा, NDTV का सवाल कंपनी के बजाय सरकार क्यों उठाए करोड़ों का खर्च?

Bhopal Gas Leak Case: सांसद आलोक शर्मा ने लोकसभा (Lok Sabha) में शून्य काल के दौरान भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के अपशिष्ट निपटान एवं पार्क, स्मारक निर्माण योजना को लेकर प्रश्न लगाया एवं आग्रह किया कि कचरे का शीघ्र निपटान कर भोपाल की छवि को आपदा स्थल से बदलकर एक स्मरण और शिक्षा के स्थान में किया जाए.

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Bhopal Gas Tragedy Union Carbide Factory: कुछ दिनों पहले ही NDTV ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि मध्य प्रदेश सरकार यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री (Union Carbide Factory) से 350 मीट्रिक टन जहरीले कचरे का निपटान (Toxic Waste Disposal) शुरू करने जा रही है. इस जहरीले कचरे का निपटान इंदौर के पीथमपुर (Pithampur of Indore) स्थित ट्रीटमेंट स्टोरेज डिस्पोजल फैसिलिटी (TSDF) में किया जाएगा. हमने यह बताया था कि 12 साल पहले जर्मनी की कंपनी ने इसी कचरे को निपटाने का खर्च महज 22 करोड़ बताया था. जर्मन कंपनी इसे भारत में नहीं बल्कि अपने मुल्क में खत्म करना चाहती थी लेकिन तब BJP की सरकार ने ही इनकार कर दिया था. अब इसी कचरे का निपटान राज्य में ही हो रहा है और लागत है 126 करोड़ रुपये. वहीं अब संसद में भी भोपाल के जहरीले कचरे की बात उठी है. जिसे स्थानीय सांसद आलोक शर्मा ने उठाया है.

पहले देखिए सांसद महोदय ने क्या कुछ कहा?

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सांसद आलोक शर्मा ने लोकसभा (Lok Sabha) में शून्य काल के दौरान भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के अपशिष्ट निपटान एवं पार्क, स्मारक निर्माण योजना को लेकर प्रश्न लगाया एवं आग्रह किया कि कचरे का शीघ्र निपटान कर भोपाल की छवि को आपदा स्थल से बदलकर एक स्मरण और शिक्षा के स्थान में किया जाए.

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NDTV का बड़ा सवाल

अब चूंकि सरकार इस कचरे का निपटान कर रही है. ऐसे में हमारा बड़ा सवाल यह है कि 126 करोड़ रुपये का खर्च जिम्मेदार कम्पनी (यूनियन कार्बाइड और डाउ केमिकल) से क्यों नही वसूला जा रहा है? जबकि केंद्र सरकार ने 350 करोड़ की राशि इसी के लिए मांगी है.

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आज भी मौजूद हैं दर्द

यूनियन कार्बाइड ने जो जहर उगला वो सिर्फ 40 साल पहले नहीं, 40 साल बाद भी फ़ैक्ट्री के आस पास बस्ती और कॉलोनी में पानी इतना दूषित है कि कई लोगों की जान ले चुका है. यहां जो पानी आता है उससे बाल्टी-कूलर में सफ़ेद निशान और पपड़ी हफ्तों में जम जाती है, लोगों की शिकायत है शुगर के साथ कई लोगों को हार्ट अटैक का भी सामना करना पड़ा है. 

2004 से 2018 तक, जहरीले कचरे ने यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के आसपास के 42 बस्तियों के भूजल को जहरीला बना दिया, सुप्रीम कोर्ट ने इसे माना और प्रभावित इलाके में साफ पानी देने का आदेश दिया, लेकिन पिछले 5 सालों में ये जहर 29 और बस्तियों में फैल गया.

भोपाल गैस त्रासदी हर कदम पर त्रासद ही रही है. केन्द्र सरकार भोपाल गैस त्रासदी में मृतकों के आंकड़े को 5295 बताती रही है, मध्यप्रदेश सरकार 15342 और ICMR के मुताबिक इस हादसे में लगभग 25000 लोगों की मौत हुई. जो बच गए वो सालों बाद भी तिल तिल कर मरने को मजबूर हैं. उनके ही पैसे, उनके ही नाम पर कचरे में फेंके जा रहे हैं. जब निपटारे की बात आई है तो वो भी उनकी सेहत पर बुरा असर डाल सकती है.

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