कजाकिस्तान में चमका सीहोर का सितारा कपिल, एशियन जूडो चेम्पियनशिप में हासिल किए दो मेडल

Kapil Parmar Success Story: सीहोर के एक साधारण परिवार से आने वाले कपिल परमार का जीवन प्रेरणादायी संघर्ष की कहानी है. उनके पिता टैक्सी ड्राइवर हैं तो वहीं मां खेतों में काम करती थीं. इसके बावजूद वो हार नहीं माने.

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Kapil Parmar Success Story: जूडो के अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी कपिल परमार ने एक बार फिर देश और शहर को गौरवान्वित किया है. कजाकिस्तान में आयोजित पैरा एशियन जूडो चैम्पियनशिप में शानदार प्रदर्शन करते हुए इस जुझारू खिलाड़ी ने सिल्वर के साथ ब्राउंस मेडल हासिल किए हैं. इससे पहले कपिल परमार ने 2024 पैरालंपिक में कांस्य पदक जीतकर जूडो में भारत का पहला पदक जीतने का इतिहास भी रचा था.

कपिल का किया गया भव्य स्वागत 

उनकी इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर विभिन्न खेल संगठनों और जनप्रतिनिधियों ने उन्हें बधाई दी है. दो दिन बाद नगर लौटने पर संस्कार मंच के तत्वाधान में उनका भव्य स्वागत किया जाएगा.

कपिल परमार ने बताया कि तीन दिवसीय पैरा एशियन जूडो चैम्पियनशिप के 70 किलोग्राम वर्ग में वो फाइनल में दूसरे स्थान पर रहे. इस प्रदर्शन के दम पर उन्होंने जापान में 2026 में होने वाले एशियन गेम्स के लिए अपना स्थान सुरक्षित कर लिया है. उन्होंने प्रतियोगिता में जापान, इराक और कोरिया जैसे मजबूत खिलाडियों को शिकस्त देकर यह मेडल हासिल किए.

हौसले से जीती जिंदगी की जंग

सीहोर के एक साधारण परिवार से आने वाले कपिल परमार का जीवन प्रेरणादायी संघर्ष की कहानी है. उनके पिता टैक्सी ड्राइवर हैं तो वहीं मां खेतों में काम करती थीं. सीमित आर्थिक साधनों ने कभी उन्हें रुकने नहीं दिया. डाइट और प्रैक्टिस के लिए पैसे जुटाने के लिए कपिल स्वयं भी खेतों में 8 से 10 घंटे मेहनत करते थे और उसके बाद जूडो की प्रैक्टिस करते थे.

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बता दें कक्षा आठवीं में उनकी आंखों की रोशनी कम होने लगी. वर्तमान में उनकी दृष्टि 80 प्रतिशत तक बाधित है. अपनी शारीरिक चुनौती और सीमित साधनों के बावजूद कपिल परमार ने अपने हौसले को कमजोर नहीं होने दिया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

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