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Bal Vivah: अक्षय तृतीया पर बाल विवाह की कुप्रथा! इन्होंने तोड़ी चुप्पी, जानिए कैसे बनाई पहचान

Akshaya Tritiya and Bal Vivah: "बाल विवाह मुक्त भारत अभियान" की शुरूआत की गई है. 30 अप्रैल अक्षय तृतीया पर होने वाले सामूहिक विवाह, जिसमें बाल विवाह होने की संभावना होती है, उसके रोकथाम के लिये विशेष गतिविधियों करने के निर्देश दिए गए हैं.

Bal Vivah: अक्षय तृतीया पर बाल विवाह की कुप्रथा! इन्होंने तोड़ी चुप्पी, जानिए कैसे बनाई पहचान
Child Marriage: अक्षय तृतीया पर बाल विवाह

Bal Vivah on Akshaya Tritiya: महिला बाल विकास मंत्रालय द्वारा 16 Days of Activism के तहत एक अहम कदम उठाते हुए "बाल विवाह मुक्त भारत अभियान" (Vivah Mukt Bharat Abhiyan) की शुरूआत की गई है. अक्षय तृतीया के अवसर पर बाल विवाह रोकथाम के लिये "बाल विवाह मुक्त भारत" अभियान के तहत व्यापक कार्ययोजना बनाई गई है। इसमें सभी सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में विद्यार्थियों को बाल विवाह के दुष्परिणामों के प्रति जागरूक किया. यह पहल देश में बाल विवाह की सामाजिक कुरीति को समाप्त करने तथा किशोरियों के सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिये की गई है.

इन्होंने तोड़ी कुप्रथा

बापू नगर में रहने वाली 15 साल की मनीषा (बदला हुआ नाम) की शादी की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं. उसके माता-पिता चाहते थे कि वह अब विवाह के बंधन में बंध जाए, क्योंकि उनकी नजर में यही सही समय था. मनीषा भी चुपचाप सब कुछ स्वीकार कर रही थी, जैसे यही उसका भविष्य हो.

इसी बीच मुस्कान संस्था और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा बापू नगर में बाल विवाह के मुद्दे पर जागरुकता फैलाने का एक अभियान चलाया गया. नुक्कड़ नाटक, फिल्में और प्रदर्शनी कलाओं के माध्यम से बालिकाओं के अधिकार, कानून और उनके सपनों की अहमियत को उजागर किया गया. इस अभियान का प्रभाव पूरे समुदाय में देखने को मिला. बस्ती में लगभग 5 से 6 बाल विवाहों को रोका गया और मनीषा भी उनमें से एक थी.

इन गतिविधियों के दौरान मनीषा को अलग-अलग जगहों पर एक्सपोजर विजिट्स पर ले जाया गया, जहां उसने अन्य लड़कियों को पढ़ते, काम करते और आत्मनिर्भर बनते देखा. इन अनुभवों ने मनीषा की सोच को बदला. उसने खुद अपनी शादी रोकने का निर्णय लिया. उसने अपने माता-पिता से बात की और संस्था के सहयोग से यह विवाह रुकवाया गया.

इसके बाद मनीषा ने सिलाई का प्रशिक्षण लिया. वह अपनी क्षमता बढ़ाने में जुट गई और अब खुद के लिए छोटे-छोटे कपड़े सिलकर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा रही है. आज मनीषा सिर्फ अपनी ज़िंदगी को बेहतर नहीं बना रही, बल्कि बस्ती की अन्य लड़कियों की भी मदद कर रही है. जब भी कोई बच्ची कपड़े सिलवाने आती है और मनीषा को लगता है कि उसकी उम्र कम है, तो वह जानकारी जुटाकर मुस्कान संस्था और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को सूचित करती है, ताकि समय रहते विवाह को रोका जा सके.

मनीषा अब अपने समुदाय में एक प्रेरणा बन चुकी है. एक किशोरी जिसने खुद अपनी शादी रोककर, न केवल अपना भविष्य चुना बल्कि दूसरों को भी गलत परंपराओं के खिलाफ सोचने और बोलने की राह दिखाई.

कुछ ऐसी है इनकी कहानी

मदनी नगर बस्ती की गलियों में रहने वाली 16 साल की रुकसाना (बदला हुआ नाम) एक आम सी दिखने वाली, लेकिन अपने सपनों में रंग भरने वाली लड़की है. लेकिन उसे नहीं पता था कि बाहर उसके लिए कुछ बड़ा और खतरनाक तय हो रहा है.

रुकसाना के मां-बाप काम की तलाश में अक्सर गांव से बाहर चले जाते हैं. उनकी चिंता ये थी कि रुकसाना अब बड़ी हो रही है और उनके हिसाब से "लड़की जितनी जल्दी अपने घर की हो जाए, उतना अच्छा." यही सोचकर उन्होंने उसकी सगाई तय कर दी और जब यह सूचना मुस्कान संस्था एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ताको मिली, उस समय शादी की तारीख बस तय होने ही वाली थी.

मुस्कान संस्था की टीम ने तुरंत युवा समूह के साथ मिलकर रुकसाना के घर का रुख किया. वहां पहुंचकर बातचीत शुरू की गई और परिजनों ने साफ कहा, “हां, सगाई कर दी है, और अब जल्दी से शादी भी कर देंगे. हम कब तक बैठाए रखें इसे घर में?”

टीम ने बड़े ही संयम और समझदारी से बातचीत की. पहले रूकसाना के दस्तावेज़ देखे गए आधार कार्ड और जन्म प्रमाण पत्र. इससे यह स्पष्ट हुआ कि उसकी उम्र मात्र 16 साल है. टीम ने परिजन को बताया कि भारत में बालिकाओं की विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष है और इससे पहले विवाह करना गैरकानूनी है.

इसके बाद टीम ने बेहद संवेदनशीलता से बातचीत की. रुकसाना की भावनाओं और उम्र को ध्यान में रखते हुए परिजनों को समझाया गया कि लड़की के सजने-संवरने की रुचियां उसकी उम्र का हिस्सा हैं, लेकिन यह उसकी ज़िंदगी नहीं है. उसे अभी शिक्षा, आत्मनिर्भरता और अपने भविष्य को लेकर सोचने का अवसर मिलना चाहिए.

परिजनों को यह भी जानकारी दी गई कि यदि वे बाल विवाह के निर्णय पर अड़े रहते हैं, तो मुस्कान संस्था कानून के तहत उचित कदम उठाने के लिए पुलिस व अन्य विभागों से संपर्क करेगी. सिर्फ एक दिन की बातचीत से बदलाव नहीं हुआ. मुस्कान संस्था एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्तालगातार संपर्क में बने रहे, कई बार जाकर बात की, घरवालों को समय दिया और बच्ची के भविष्य के बारे में सोचने का अवसर भी. इस प्रयास के फलस्वरूप रुकसाना की शादी को रोक दिया गया.

आज रुकसाना बस्ती में खुद को संवारती है, लेकिन अब उसके सपनों में सिर्फ श्रृंगार नहीं, स्कूल, आत्मनिर्भरता और एक सुरक्षित भविष्य भी शामिल है.

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