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Trauma Bond Relationship: 'कहा भी न जाए और साथ रहा न जाए' कहीं आप भी तो नहीं हैं इस बीमारी के शिकार, जानें लक्षण

Trauma Bonding Sickness:

Trauma Bond Relationship: 'कहा भी न जाए और साथ रहा न जाए' कहीं आप भी तो नहीं हैं इस बीमारी के शिकार, जानें लक्षण

Relationship: प्यार, इश्क और मोहब्बत के बीच एक ऐसा दौर आता है जब दो दिलों के दरम्यान प्यार और बॉन्डिंग काफूर हो जाता है, कई बार यह ह्यूमन प्रवृत्ति का हिस्सा होता है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है, क्योंकि पिछले कुछ सालों में कपल्स और पति-पत्नी के रिश्तों में ऐसी समस्याओं को एक बीमारी करार दिया गया है. 

दुनिया में हर रिश्ते की बुनियाद प्यार है, लेकिन जब कभी प्यार का रंग फीका पड़ जाए और अलगाव से भी डर लगने लगे, तो उस व्यक्ति को यह समझ आ जाना चाहिए कि वो अब ट्रामा बॉन्ड का शिकार होता जा रहा है. ट्रामा बॉन्ड क्या है और इस बीमारी का शिकार हुआ व्यक्ति समझ नहीं पाता है कि वह इसका शिकार हो चुका है.

ट्रामा बांड का शिकार को एहसास नहीं हो पाता क‍ि वो उसका शिकार हो चुका है

गौरतलब है किसी के साथ रिश्ते में बंधा व्यक्ति विभिन्न परिस्थतियों में ट्रामा बॉन्ड का शिकार हो सकता है. दिलचस्प यह है कि उसे खुद इस बात का एहसास नहीं पाता क‍ि वो इस स्थिति का शिकार हो चुका है. ऐसे में यह जान लेना जरूरी हो जाता है कि आखिर ट्रामा बॉन्ड क्या है और कैसे होते हैं और इसके लक्षण क्‍या हैं.

ट्रामा बॉन्ड का शिकार एग्रेसिव व अब्यूसिव पार्टनर को चाहकर भी छोड़ नहीं पाता

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के प्रमुख डॉ. कामना छिब्बर के मुताबिक, जब किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच रिश्ता भयावह अनुभवों के आधार पर आधारित होता है, तो उस स्थिति को ट्रामा बॉन्ड कहते हैं. वे बताती हैं कि ट्रामा बॉन्ड के शिकार दो लोग दूसरे व्यक्ति पर ज्यादा एग्रेसिव व अब्यूसिव होते है, जबकि दूसरा व्यक्ति उसका विरोध करने के बजाय सब कुछ सह रहा होता है। वो चाह कर भी उस पहले व्यक्ति को छोड़ नहीं पाता है.

ट्रामा बॉन्ड के शिकार लोग दूसरे व्यक्ति पर एग्रेसिव व अब्यूसिव होता है, जबकि अगला सब कुछ सह रहा होता है, वो चाह कर भी उसे छोड़ नहीं पाता है. यही नहीं, छोड़ने का ख्याल भी डरा जाता है. इस वजह से वो मजबूर रिश्ते में शामिल दूसरे व्यक्ति के अत्याचार को सहता रहता है.

ट्रामा बॉन्ड की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति एग्रेसिव पार्टनर पर निर्भर हो जाता है 

साइकोलॉजिस्ट के मुताबिक ट्रामा बॉन्ड की स्थिति में शोषित हो रहा व्यक्ति शोषण करने वाले पर निर्भर हो जाता है. उससे चाहकर भी अलग नहीं होता है. इस स्थिति में जो शोषण सह रहा होता है, उसके अंदर आत्मसम्मान की कमी आ जाती है। वो खुद को दूसरों की तुलना में कमतर आंकने लगता है.

टामा बॉन्ड का शिकार पीड़ित होकर भी रिश्ते में अलग भी नहीं हो पाता

साइकोलॉजिस्ट की मानें तो ट्रामा बॉन्ड का शिकार चाहते हुए भी ए्ग्रेसिव पार्टनर से अलग नहीं हो पाता है, वो खुद को गुलाम के रूप में घोषित कर लेता है और अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को सहता है. जो कोई भी व्यक्ति इस स्थिति में होता है, कई बार तो यह समझना ही मुश्किल हो जाता है कि क्या वो सच में ट्रामा बॉन्ड की स्थिति में है या नही.

डाक्टर बताती हैं कि ऐसी स्थिति में थेरेपी का भी बहुत बड़ा रोल होता है और मरीज को धीरे-धीरे सामान्य स्टेज में लाया जाता है, ताकि वो खुद पर विश्वास कर सके.ट्रॉमा बॉन्डिंग रिलेशनशिप में रहे व्यक्ति का बाहर निकलना तब मुश्किल होता है, जब वह व्यक्ति बार-बार सामने आता है.

ट्रामा बॉन्ड पीड़ितों का लक्षण समझने में भी कई बार देरी हो जाती है

साइकोलॉजिस्ट बताती हैं कि कई बार तो लोग ट्रामा बॉन्ड पीड़ित लक्षणों को भी नहीं समझ पाते हैं, और तब तक काफी देर हो जाती है. कई बार यह स्थिति सामान्य नहीं हो पाती है. डॉ. बताती हैं कि इस स्थिति से किसी व्यक्ति को बाहर निकलने के लिए सबसे पहले उसे अपने परिवार और दोस्तों की मदद लेनी चाहिए.

थेरेपी के जरिए मरीजों को धीरे-धीरे सामान्य स्टेज में लाया जाता है

डाक्टर बताती हैं कि ऐसी स्थिति में थेरेपी का भी बहुत बड़ा रोल होता है और मरीज को धीरे-धीरे सामान्य स्टेज में लाया जाता है, ताकि वो खुद पर विश्वास कर सके. वे बताती हैं कि कई बार ट्रॉमा बॉन्डिंग रिलेशनशिप में रहे व्यक्ति के लिए कई बार बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, जब उसके सामने एग्रेसिव व्यक्ति बार-बार आता है.

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