मध्यप्रदेश में राजस्थान के बॉर्डर से सटा मंदसौर जिला कई मायनों में काफी अहम और अनूठा है. इसी स्थान पर भगवान पशुपतिनाथ का मंदिर है. यहां स्थापित शिवलिंग दुर्लभ है. इसके अलावा यहीं पर एक गांव भी है जहां आज भी रावण की पूजा होती है. इससे जुड़ा मंदसौर का एक दिलचस्प इतिहास है. लेकिन इन सबसे पहले मंदसौर की पहचान होती है काले सोने से. मंदसौर और इससे सटे आसपास के जिलों की काली मिट्टी इतनी उपजाऊ है कि यहां ‘काले सोने' की ही खेती होती है.
मंदसौर का इतिहास
आजादी से पहले मंदसौर शहर ग्वालियर के राजा महाराजाओं के आधिपत्य में आता था. जब प्रदेशों का गठन होना शुरू हुआ और ग्वालियर ने मध्यप्रदेश का हिस्सा बनना मंजूर किया तब मंदसौर भी मध्यप्रदेश का हिस्सा बन गया.
यहां के खानपुरा इलाके में आज भी रावण की बड़ी सी प्रतिमा स्थापित है. जहां रावण को दामाद मान कर पूजा भी जाता है.
पशुपतिनाथ का मंदिर
नेपाल स्थित पशुपतिनाथ के मंदिर की तरह मंदसौर में भी पशुपतिनाथ का मंदिर है. पशुपतिनाथ शिवलिंग के लिए कहा जाता है कि ये शिवना नदी से प्राप्त हुआ था. ये शिवलिंग वैसा ही माना जाता है जैसी नेला के पशुपतिनाथ मंदिर में स्थापित है. इसके अलावा यहां सहस्त्र शिवलिंग भी है. इस शिवलिंग की खासियत ये है कि इस पर 1008 और शिवलिंग स्थापित हैं. ये अद्भुत शिवलिंग भी शिवना नदी से ही मिला था.
काले सोने की खेती
मंदसौर की काली मिट्टी काला सोना उगलती है. ये काला सोना है अफीम.
अफीम का इस्तेमाल कई तरह के दवाओं को बनाने में किया जाता है. अफीम की फसल अच्छी मात्रा में होने से यहां लोग इसकी भाजी भी बड़े शौक से खाते हैं. अफीम के पत्तों की भाजी मंदसौर के लोगों का पसंदीदा और आसानी से उपलब्ध होने वाला भोजन है.
मंदसौर ज़िले पर एक नज़र:
- क्षेत्रफल:9,791 वर्ग कि मी
- जनसंख्या: 1,339,832
- जनसंख्या व्रद्धि : 13.19%
- लिंगअनुपात (प्रति 1000) : 966
- साक्षारता दर : 72.75%
- विधानसभा क्षेत्र- 8
- तहसील-7