बीहर-बिछिया नदी के आंचल में बसा रीवा काफी ऐतिहासिक शहर है. कभी ये बघेल वंश और विंध्य प्रदेश की राजधानी हुआ करती थी. इस शहर की पहचान 'सफेद बाघों की धरती' के तौर पर भी होती है. रीवा का नाम रेवा नदी के नाम पर रखा गया है, जो नर्मदा नदी का पौराणिक नाम है. प्राचीन समय से ही ये एक प्रमुख व्यापार मार्ग रहा है, जो कौशांबी, प्रयाग, बनारस, पाटलिपुत्र को पश्चिमी और दक्षिणी भारत को जोड़ता है. मध्यप्रदेश के जिले रीवा की अपनी भी अलग ही पहचान है.
तानसेन-बीरबल की जन्मस्थली
विंध्याचल पर्वत की गोद में फैले विंध्य प्रदेश के मध्य भाग में बसा रीवा मुगल बादशाह अकबर के नवरत्न तानसेन और बीरबल जैसी महान विभूतियों की जन्मस्थली भी रही है. तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में यहां के सभी क्षेत्रों पर मौर्य वंश का कब्जा था. बघेल वंश से पहले रीवा के क्षेत्रों पर गुप्तकाल कल्चुरि वंश, चंदेल और प्रतिहार का शासन रहा है. रीवा ऐतिहासिक प्रमुख शहर रहा है.
यहां है दुनिया की पहली व्हाइट टाइगर सफारी
विश्व के कई देशों में आज जो व्हाइट टाइगर हैं, वो सभी मध्यप्रदेश की ही देन हैं. वाइल्ड लाइफ टूरिज्म में मप्र को चीता, तेंदुआ, टाइगर और क्रोकोडाइल स्टेट के रूप में खूब प्रचारित किया गया, लेकिन व्हाइट टाइगर का जिक्र एक बार भी नहीं आया. आपको बता दें कि रीवा स्थित मुकुंदपुर के जंगलों में दुनिया की पहली व्हाइट टाइगर सफारी है.
रीवा जिला कब बना
रीवा जिला साल 1950 में अस्तित्व में आया. तब रीवा नगर पालिका का गठन हुआ था. जनवरी 1981 में मध्यप्रदेश सरकार ने इसे नगर निगम का दर्जा दिया. भारत की आजादी से पहले रीवा रघुराजनगर तहसील का हिस्सा हुआ करता था. इसके बाद इसकी अलग पहचान बनी.
मशहूर था रीवा का पान
रीवा का बंगला पान कभी यहां की पहचान हुआ करता था. यहां से पान पूरे देश में भेजा जाता था. पाकिस्तान-श्रीलंका समेत कई देश इसका स्वाद उठाया करते थे. महसांव के ज्यादातर घरों में पान बनाने का काम ही किया जाता था. इससे काफी रेवेन्यू भी आता था, लेकिन समय के साथ ये स्वाद कहीं खो गया. रीवा में कई वाटरफॉल हैं, जो पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते है. जिनमें पियावन घिनौची धाम, पूर्व जलप्रपात, बहुती जलप्रपात, चचाई जलप्रपात और क्योटी जलप्रपात प्रमुख हैं.
रीवा की खास बातें