मृत्युदंड का है प्रावधान! यौन अपराधों के खिलाफ आवाज उठाइए, बच्चों को पॉक्सो एक्ट की ताकत समझाइए...

Law News: बच्चों के साथ होने वाले ऐसे अपराधों को रोकने के उद्देश्य से बच्चों के यौन शोषण के मामलों में मृत्युदंड सहित अधिक कठोर दंड का प्रावधान करने की दिशा में वर्ष 2019 में अधिनियम की समीक्षा तथा इसमें संशोधन किया गया.

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Protection of Children from Sexual Offences Act (POCSO): यौन अपराधों (Sexual Crimes) से बच्चों को संरक्षण देने के उद्देश्य से पॉक्सो प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act) यानी पॉक्सो (POCSO) अधिनियम बनाया गया है. इस अधिनियम को महिला और बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Welfare) ने वर्ष 2012 में पॉक्सो एक्ट-2012 के नाम से बनाया है. इस कानून के अर्न्तगत नाबालिग बच्चों (Minor Children) के प्रति यौन उत्पीडन (Sexual Harassment), यौन शोषण (Sexual Exploitation) और पोर्नोग्राफी (Pornography) जैसे यौन अपराध और छेड-छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है.

क्या है पॉस्को एक्ट?

यौन अपराधों से बच्चों को संरक्षण देने के उद्देश्य से पॉक्सो प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट (POCSO) अधिनियम बनाया गया है. इस अधिनियम को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने वर्ष 2012 में पॉक्सो एक्ट-2012 के नाम से बनाया. इस कानून के अर्न्तगत नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीडन, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराध और छेड़-छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है. इसमें अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा भी निर्धारित है. यह अधिनियम पूरे देश में लागू है. पॉक्सो के तहत सभी अपराधों की सुनवाई एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चों के माता-पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी उपस्थित में होती है.

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अलग अपराध की अलग सजा

इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित है. यह अधिनियम पूरे भारत में लागू है. पॉक्सो कानून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई एक विशेष न्यायालय (Special Court) द्वारा कैमरे के सामने बच्चों के माता-पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी उपस्थित में होती है.

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वर्ष 2012 में पॉक्सो कानून के लागू होने के बाद वर्ष 2020 में पॉक्सो अधिनियम में कई अन्य संशोधन के साथ ऐसे अपराधों में मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया है.

पॉक्सो अंतर्गत आने वाले अपराध व सजा

पॉक्सो अधिनियम-2012 के लागू होने के बाद वर्ष 2020 में पॉक्सो अधिनियम में कई अन्य संशोधन के साथ सजा का दायरा बढ़ाकर आजीवन कारावास से लेकर मृत्युदंड तक के दंड का प्रावधान किया गया है. अधिनियम की धारा-3 में प्रवेशन लैंगिक हमला होने पर कम से कम 10 वर्ष का कारावास, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है एवं धारा-4 में जुर्माने का प्रावधान किया गया है. गुरूत्तर प्रवेशन लैंगिक हमले पर धारा-5 में कम से कम 20 वर्ष का कारावास, जिसे आजीवन कारावास/मृत्यु दण्ड तक बढ़ाया जा सकता है. इसमें धारा-6 में जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है. लैंगिक हमला होने पर धारा 7 में कम से कम 3 वर्ष का कारावास, जिसे 5 वर्ष तक के कारावास तक बढ़ाया जा सकता है एवं धारा-8 में जुर्माना भी प्रावधानित है. गुरूत्तर लैंगिक हमले के मामले में धारा-9 में कम से कम 5 वर्ष का कारावास, जिसे 7 वर्ष तक के कारावास तक बढ़ाया जा सकता है. इसके साथ ही धारा-10 में जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है. अधिनियम में लैंगिक उत्पीडन पर धारा-11 में 3 वर्ष का कारावास की सजा तथा धारा-12 में जुर्माने का प्रावधान किया गया है.

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बच्चों के साथ होने वाले ऐसे अपराधों को रोकने के उद्देश्य से बच्चों के यौन शोषण के मामलों में मृत्युदंड सहित अधिक कठोर दंड का प्रावधान करने की दिशा में वर्ष 2019 में अधिनियम की समीक्षा तथा इसमें संशोधन किया गया.

⇒ धारा 3 के अनुसर - कम से कम 10 वर्ष का कारावास, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है एवं जुर्माना (धारा 4)

⇒ धारा 5 - कम से कम 20 वर्ष का कारावास, जिसे आजीवन करावास/मृत्यु दण्ड तक बढ़ाया जा सकता है एवं जुर्माना (धारा 6)

⇒ लैंगिक हमला (धारा 7)- कम से कम 3 वर्ष का कारावास, जिसे 5 वर्ष तक के कारावास तक बढ़ाया जा सकता है एवं जुर्माना (धारा 8)

⇒ लैंगिक हमला (धारा 9)- कम से कम 5 वर्ष का कारावास, जिसे 7 वर्ष तक के कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, व जुर्माना (धारा 10)

⇒ लैंगिक उत्पीडन (धारा 11)- 3 वर्ष का कारावास की सजा तथा जुर्माना (धारा 12)

⇒ बच्चों का अश्लील उद्देश्यों/पोर्नोग्राफी के लिए इस्तेमाल करना (धारा 13)- 5 वर्ष का कारावास तथा उत्तरवर्ती अपराध के मामले में 7 वर्ष का कारावास तथा जुर्माना (धारा 14-1)

⇒ बच्चों का अश्लील उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करते समय यौन प्रताड़ना के गंभीर मामले (धारा 14-2)- कम से कम 10 वर्ष का कारावास जिसे आजीवन कारावास/मुत्यु दंड तक बढ़ाया जा सकता है व जुर्माना.

⇒ बच्चे का अश्लील उद्देश्यों हेतु इस्तेमाल करते समय गुरूत्तर प्रवेशन लैंगिक हमले के अति गंभीर मामले- (धारा 14-3): सश्रम आजीवन कारावास व जुर्माना.

⇒ बच्चे का अश्लील उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करते समय यौन प्रताड़ना के मामले- (धारा 14-4) : कम से कम 6 वर्ष का कारावास, जिसे 8 वर्ष के कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, व जुर्माना.

⇒ बच्चे का अश्लील उद्देश्यों हेतु इस्तेमाल करते समय गुरूत्तर लैंगिक हमले के अति गंभीर मामले (धारा 14-5)- कम से कम 8 वर्ष का कारावास जिसे 10 वर्ष के कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, व जुर्माना.

⇒ बच्चे से संबंधित किसी भी अश्लील सामग्री को व्यापारिक उद्देश्यों के लिए रखना (धारा 15): 3 वर्ष कारावास अथवा जुर्माना अथवा दोनों.

इस एक्ट के अंतर्गत अपराध के लिए उकसाने हेतु भी दंड का प्रावधान है जो कि अपराध करने के समान ही है. इसमें बच्चों की यौन उत्पीड़न हेतु अवैध खरीद-फरोख्त भी शामिल है. किसी घटित अपराध की रिपोर्ट न दर्ज करना. 6 माह तक का कारावास अथवा जुर्माना अथवा दोनों.

अपराध के लिए उकसाने पर भी दंड का प्रावधान

पॅाक्सो अधिनियम में अपराध के लिए उकसाने पर भी दंड का प्रावधान किया गया है. उकसाने को भी अपराध करने के समान ही माना गया है. इसमें धारा-16 में बच्चों के यौन उत्पीड़न हेतु अवैध खरीद-फरोख्त भी शामिल है.

अपराध की रिपोर्ट दर्ज न करने पर भी कार्रवाई का प्रावधान

पॅाक्सो अधिनियम में सभी को पाबंद किया गया है. इसमें किसी घटित अपराध की रिपोर्ट दर्ज नहीं करने पर धारा-21(1) में 6 माह तक का कारावास अथवा जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान किया गया है.

बच्चों के अश्लील उपयोग पर आजीवन सश्रम कारावास और दंड का प्रावधान

पॅाक्सो अधिनियम में बच्चों का अश्लील उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल करने पर कठोर प्रावधान किए गए हैं. बच्चों का अश्लील उद्देश्यों/पोर्नोग्राफी के लिए इस्तेमाल करने पर धारा-13 में 5 वर्ष का कारावास तथा धारा-14(1) में उत्तरवर्ती अपराध के मामले में 7 वर्ष का कारावास तथा जुर्माने का प्रावधान है.

अधिनियम में बच्चों का अश्लील उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करते समय यौन प्रताड़ना के गंभीर मामले में धारा-14(2) में कम से कम 10 वर्ष का कारावास जिसे आजीवन कारावास/मुत्यु दंड तक बढ़ाया जा सकता है. साथ ही जुर्माना भी होगा. अधिनियम में यह भी प्रावधानित किया गया है कि बच्चे का अश्लील उद्देश्यों हेतु इस्तेमाल करते समय गुरूत्तर प्रवेशन लैंगिक हमले के अति गंभीर मामले में धारा-14(3) अंतर्गत सश्रम आजीवन कारावास व जुर्माने की सजा होगी. बच्चे का अश्लील उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करते समय यौन प्रताड़ना के मामले में धारा-14(4) में न्यूनतम 6 वर्ष का कारावास को जुर्माने के साथ 8 वर्ष तक के लिए बढ़ाया जा सकता है.

पॅाक्सो अधिनियम में बच्चे का अश्लील उद्देश्यों हेतु इस्तेमाल करते समय गुरूत्तर लैंगिक हमले के अति गंभीर मामले में धारा-14(5) में कम से कम 8 वर्ष का कारावास का प्रावधान किया गया है. कारावास को 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है. इसके साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है. अधिनियम की धारा-15 में प्रावधान है कि बच्चें से संबंधित किसी भी अश्लील सामग्री को व्यापारिक उद्देश्यों के लिए रखने पर 3 वर्ष कारावास अथवा जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है.

ये बाल अधिकार अहम हैं

अधिनियम की धारा 2 (ब) के अनुसार बाल अधिकारों में दिनांक 20 नवम्बर 1989 को संयुक्त राष्ट्र संघ संधि के अन्तर्गत अंगीकृत अधिकार सम्मिलित है. संयुक्त राष्ट्र संघ संधि में बच्चों के अधिकारों से संबंधित प्रमुख मानदण्ड एवं प्रावधान इस प्रकार हैं.

1.        समाज या संबंधित राष्ट्र बच्चों के माता-पिता, उनके अभिभावक अथवा उनके वैद्य संरक्षक का स्तर, उनकी राष्ट्रीयता, जाति, भाषा, धर्म या राजनीतिक विचारधारा के आधार पर बच्चों से व्यवहार में कोई भेदभाव नही करेगा.

2.        बच्चों के सर्वोत्तम हितों को सभी सार्वजनिक एवं निजी संस्थाएं अपने कार्य एवं क्रियाकलापों में प्राथमिकता देंगे.

3.        प्रत्येक बच्चे को जीवन, उत्तर जीवन एवं विकास का जन्मजात अधिकार है, इसके अन्तर्गत बच्चों की सुरक्षा, उनके स्वास्थय एवं उनकी शिक्षा का अधिकार सम्मिलित है जिनका उद्देश्य बच्चे के व्यक्तित्व, योग्यता व मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का सम्पूर्ण विकास है तथा सामाजिक सुरक्षा से पूर्ण लाभ प्राप्त करने का अधिकार सम्मिलित है.

4.        प्रत्येक बच्चे को अपने देश या परिवार के आधार पर नाम एवं पहचान प्राप्त करने का अधिकार रहेगा.

5.        बच्चों को किसी भी दशा में अपने माता पिता से तब तक अलग नही किया जायेगा जब तक ऐसा कानून सम्मत किया जाना अनिवार्य न हो.

6.        बच्चों को आराम एवं विश्राम करने का तथा खेल एवं मंनोरंजन क्रियाओं का अधिकार है.

7.        प्रत्येक बच्चे को ऐसे जीवनस्तर का अधिकार है, जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, नैतिक एवं सामाजिक विकास के लिये पर्याप्त हो.

8.        बच्चे के विचारों पर समुचित ध्यान दिया जाये तथा उनके दैनिक जीवन में किसी भी तरह का अवैधानिक हस्तक्षेप न किया जावे.

9.        बच्चे को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जानकारी, विचारों एवं सामग्री तक पहुंच तथा धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार होगा.

10.      पारिवारिक वातावरण से वंचित बच्चे को राज्य/सरकार की ओर से विशेष संरक्षण व सहायता पाने का अधिकार होगा.

11.      बच्चों के संरक्षण व देखभाल के लिये जिम्मेदार संस्थान, सेवायें तथा सुविधायें प्रमाणित मापदण्डों के अनुरुप होंगी.

12.      सभी राष्ट्रों के कानून इस तरह के होंगे जिसमें कि बच्चों के लालन-पालन, संरक्षण सवंर्धन एवं शिक्षण की जिम्मेदारी समान रुप से माता पिता तथा कानूनी संरक्षक पर रहेगी.

13.      सभी राष्ट्र माता पिता एवं पालकों को आवश्यक सुविधायें एवं साधन उपलब्ध करायेंगे जिससे बच्चों का उचित लालन-पालन एवं शिक्षण हो सके. इस संबंध में राष्ट्रों से अपेक्षा की गयी है कि बच्चों के संरक्षण एवं सवंर्धन हेतु विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराने के कार्यक्रम बनायें.

14.      सभी राष्ट्रों से अपेक्षित है कि बालक-बालिकाओं को शारीरिक एवं मानसिक शोषण से बचायें तथा बच्चे उपेक्षित व्यवहार, र्दुव्यवहार,अपकार, शारीरिक या मानसिक हिंसा, शोषण तथा यौन शोषण से मुक्त हो.

15.      सभी राष्ट्रों से अपेक्षित है कि शारीरिक अथवा मानसिक रुप से निर्बल बच्चों को सम्मानपूर्ण एवं उचित स्तर का जीवन जीने के लिये पूर्ण मदद करें. इस हेतु समाज के व्यक्तियों एवं संस्थाओं से सहयोग प्राप्त किया जाये.

16.      ऐसे बच्चे जो मानसिक रुप से बीमार एवं विकलांग है, उनकी देखभाल के लिये सभी राष्ट्र विशेष साधन सुविधा उपलब्ध करायें. जहां तक संभव हो ऐसे शक्तिहीन या विकलांग बच्चों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा, शिक्षण तथा स्वयं का जीवन-यापन करने हेतु मदद दी जावे.

17.      बच्चे की बीमारियों एवं कुपोषण आदि की रोकथाम के लिये विशेष स्वास्थ्य सुविधाओं को जुटाने का प्रयत्न किया जायें. बच्चों को पोषक आहार, स्वच्छ पानी तथा प्रदूषण मुक्त वातावरण सुनिश्चित किया जाये. अनुबंधित राष्ट्रों का प्रयत्न होगा कि कानूनी एवं प्रशासनिक तौर पर ऐसे सभी कदम उठाये जायें जिससे गर्भ में ही बच्चे की मृत्यु कारित न हो एवं न ही जन्म प्राप्त होते ही उसकी मृत्यु हो.

18.      बच्चों के हित में शिक्षा का स्वरुप इस प्रकार हो कि उनका व्यक्तित्व शारिरिक एवं मानसिक रुप से पूर्ण विकसित हो सके.

19.      शिक्षण की व्यवस्था बच्चों के हित मे इस प्रकार की जावे कि बच्चे स्वस्थ एवं जिम्मेदार नागरिक के रुप मे समाज के लोगों के साथ सौहार्द, सहिष्णुता तथा मित्रता के साथ रह सकें तथा किसी भी तरह की संकीर्ण भावना, साम्प्रदायिक, जन्मगत तथा संकीर्ण विचारों से उनका जीवन अवरुद्ध न हो.

20.      शासन बच्चों के विकास हेतु खेल, आमोद-प्रमोद, विश्राम, छुट्टियां, उनका षिक्षण आदि उनकी दैहिक दशा एवं उनके उम्र के हिसाब से करेगा.

23.      बच्चों से किसी भी तरह का ऐसा कार्य या श्रम न लिया जाये जो उनके शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या नैतिक विकास में बाधा उत्पन्न करे.

24.      बच्चों को किसी भी तरह से नशीले पदार्थ एवं नशीले द्रव्यों से दूर रखा जावे तथा बच्चे इन पदार्थो के व्यवसाय में लिप्त न हो इसका विशेष ध्यान रखा जावे.

25.      शासन द्वारा बच्चों के खरीद फरोख्त एवं उनके व्यापार पर पूर्ण अंकुश लगाया जाये.

26.      ऐसे बच्चे जिन पर दण्डनीय कानून के उल्लंघन का आरोप हो, उनके साथ मानवीय एवं सहृदयतापूर्ण व्यवहार किया जाये जिससे वे आदर्श नागरिक के रुप में विकास करते हुए पुनः समाज में सम्मानपूर्वक पुर्नस्थापित हो सके.

27.      बच्चों को आपराधिक गतिविधियों से बचाने के लिये एवं अपराध सिद्ध होने पर उन्हैं निरुद्ध करने की व्यवस्था हेतु विशेष संस्थाएं एवं न्यायालय स्थापित किये जाये जिसमे उन्हैं अपराधी न मानकर उनके सर्वागींण विकास मे मदद देकर पुनः सामान्य जन जीवन में दाखिल होने के लिये मार्ग सुलभ हो। ऐसे बच्चों के लिये विशेष सम्प्रेक्षण गृह, पाठशालाएं और कामकाज सिखाने के लिये संस्थाएं स्थापित की जाये.

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