37 हफ्ते से पहले पैदा हो रहे हर 10 में से एक बच्चे, जानिएं, क्यों चिंता का विषय बना प्री-टर्म बर्थ!

Premature Baby Delivery: प्रीमैच्योर बच्चों का जन्म केवल जन्म के समय नहीं, बल्कि आगे के जीवन पर भी असर डालता है.एक लंबी अवधि वाली स्टडी में पाया गया कि समय से पहले जन्मे बच्चों में फेफड़ों से जुड़े रोग, सीखने में कठिनाई, दृष्टि संबंधी समस्याएं और भावनात्मक चुनौतियां होने की आशंका अधिक रहती है.

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AISING CONCERN OF PREMATURE BIRTH PRETERM OF INFANTS

Premature Baby Born: दुनिया में हर साल लगभग 1.5 करोड़ बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं और यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने प्रीमैच्योरिटी को दुनिया की सबसे बड़ी नवजात स्वास्थ्य समस्याओं में गिना है. शोध बताते हैं कि देश में लगातार ऐसे प्रीमेच्यौर बच्चों के बर्थ दर की संख्या बढ़ रही है.

"बॉर्न टू सून: द ग्लोबल एक्शन रिपोर्ट" के अनुसार, हर 10 में से 1 बच्चा 37 हफ्ते से पहले पैदा होता है. यही वजह है कि लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 17 नवंबर को वर्ल्ड प्रीमैच्योरिटी डे मनाया जाता है.

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भारत अकेलादेश जहां हर साल लगभग 30 लाख प्रीमैच्योर बच्चे जन्म लेते हैं

गौरतलब है साल 2020 में भारत अकेला ऐसा देश है जहां हर साल लगभग 30 लाख प्रीमैच्योर बच्चे जन्म लेते हैं और ये संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा थी. कई अध्ययनों में पाया गया है कि गर्भावस्था के दौरान संक्रमण, उच्च रक्तचाप, गर्भकालीन मधुमेह, वायु प्रदूषण और माताओं का पोषण स्तर समय से पहले जन्म के प्रमुख कारक हैं.

दुनिया में लगभग 30 लाख प्रीमैच्योर जन्मों से जुड़ा पाया गया वायु प्रदूषण

साल 2019 में ‘द लैंसेट' में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन ने बताया कि वायु प्रदूषण दुनिया में लगभग 30 लाख प्रीमैच्योर जन्मों से जुड़ा पाया गया. वहीं, एक अन्य शोध में पता चला कि जिन महिलाओं को लगातार उच्च तनाव रहता है, उनमें प्रीमैच्योर डिलीवरी का जोखिम लगभग 40 फीसदी तक बढ़ जाता है.

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प्रीमैच्योर बच्चों का जन्म केवल जन्म के समय नहीं, बल्कि आगे के जीवन पर भी असर डालता है.एक लंबी अवधि वाली स्टडी में पाया गया कि समय से पहले जन्मे बच्चों में फेफड़ों से जुड़े रोग, सीखने में कठिनाई, दृष्टि संबंधी समस्याएं और भावनात्मक चुनौतियां होने की आशंका अधिक रहती है.

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सही देखभाल पर बच्चों जैसा हो सकता है बच्चों का विकास सामान्य

NICU में होने वाली प्रगति ने हाल के वर्षों में मृत्यु दर को काफी कम किया है. साल 2022 में यूरोप में किए गए एक बड़े स्टडी में दिखा कि आधुनिक NICU तकनीक- जैसे रेस्पिरेटरी सपोर्ट सिस्टम, माइक्रोसेंसर्स और AI-मॉनिटरिंग ने 28–32 हफ्तों में जन्में बच्चों की जीवित रहने की दर 20–25 फीसदी तक बढ़ा दी है.

भविष्य की तकनीकें भी शोधकर्ताओं के ध्यान का केंद्र बनी हुई हैं

कंगारू मदर केयर (केएमसी) पर कोलंबिया और भारत में हुई संयुक्त रिसर्च ने साबित किया कि स्किन-टू-स्किन संपर्क देने से प्रीमैच्योर बच्चों का तापमान बेहतर रहता है, संक्रमण कम होता है और मृत्यु का खतरा लगभग 40 फीसदी तक घट सकता है. यह दुनिया में सबसे सस्ती लेकिन सबसे प्रभावी तकनीकों में से एक है.

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अमेरिका के 'सीएचओपी फीटल रिसर्च सेंटर' ने 'आर्टिफिशियल वूंब' (पर परीक्षण किए हैं, जिनमें 23–24 हफ्तों के भ्रूण को विशेष तरल वातावरण में सुरक्षित रखने में सफलता मिली. आने वाले वर्षों में समय से पहले जन्मे बच्चों की जीवित रहने की संभावना अच्छी हो सकती है.

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भ्रूण को विशेष तरल वातावरण में सुरक्षित रखने में सफलता मिली

हालांकि यह तकनीक अभी प्रयोगशाला में है, लेकिन इसे नवजात चिकित्सा में संभावित क्रांति माना जा रहा है. वर्ल्ड प्रीमैच्योरिटी डे का उद्देश्य केवल जागरूकता बढ़ाना नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान, माता-पिता के समर्थन और बच्चों के लिए सुरक्षित चिकित्सा वातावरण को बढ़ावा देना है.

ये चार बातें मिलकर लाखों प्रीमैच्योर बच्चों की जान बचा सकती हैं

प्रीमैच्योरिटी बच्चों के जन्म को लेकर किए गए अध्ययनों से यही पता चलता है कि समय पर देखभाल, मां की सेहत, आधुनिक चिकित्सा और समाज की समझ ये चार बातें मिलकर लाखों प्रीमैच्योर बच्चों की जान बचा सकती हैं और उन्हें एक स्वस्थ जीवन दे सकती हैं.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)