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World Powerlifting Championship: छत्तीसगढ़ के मोनू ने बढ़ाया भारत का मान, हासिल किया Silver Medal

Chhattisgarh in World Powerlifting Championship: मरवाही जिले के एक छोटे से गांव के रहने वाले मोनू ने सिडनी में भारत का नाम बढ़ाया है. उन्होंने विश्व पावरलिफ्टिंग चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता है. आइए थोड़ा नजदीक से उन्हें जानते है. 

World Powerlifting Championship: छत्तीसगढ़ के मोनू ने बढ़ाया भारत का मान, हासिल किया Silver Medal
World Powerlifting Championship: मोनू ने जीता सिल्वर पदक

India in World Powerlifting Championship: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के एक युवक ने प्रदेश का ही नहीं, बल्कि पूरे भारत का भी मान दुनिया में बढ़ाया है. गौरेला पेंड्रा मरवाही (Gaurella Pendra Marwahi) जिले के छोटे से गांव कोटमी कला में रहने वाले मोनू गोस्वामी (Monu Goswami) ने 11 से 13 अक्टूबर तक ऑस्ट्रेलिया, सिडनी में आयोजित विश्व पावरलिफ्टिंग चैंपियनशिप (World Powerlifting Championship) में रजत पदक जीतकर एक जरूरी उपलब्धि हासिल की है. गोस्वामी ने 105 किलोग्राम वर्ग में कुल 587.5 किलोग्राम वजन उठाकर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया. उनकी इस उपलब्धि ने उनके गृह राज्य को गौरवान्वित किया है. लेकिन, मोनू गोस्वामी इस पावरलिफ्टिंग प्रतियोगिता में शामिल होने से पहले प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए जनप्रतिनिधियों, शासन और प्रशासन से कोई सहयोग न मिलने से बहुत दुखी है. 

मामूली संसाधनों में किया देश का नाम रोशन

प्रतिभा कभी सुविधा या संपन्नता का मोहताज नहीं होता है. व्यक्ति दृढ़ इच्छा शक्ति कर ले, तो सीमित संसाधनों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा बनवाया जा सकता है. यह बात साबित तब होती है, जब छत्तीसगढ़ के छोटे से जिले गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का एक पावरलिफ्टर, जो मामूली संसाधनों के बावजूद विश्व पावरलिफ्टिंग प्रतियोगिता में रजत पदक हासिल करता है और न सिर्फ छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे भारत का नाम पावरलिफ्टिंग जैसी खेल प्रतिभा में विश्व स्तर पर ऊंचा करता है. 

सही समय पर नहीं मिली उचित मदद 

मोनू गोस्वामी को अपनी शानदार जीत के बाद भी मलाल है कि उनकी क्षमता और प्रतिभा पर सही समय में उचित मदद मिल जाती, तो निश्चित ही वह और बेहतर परिणाम ला सकते थे. अपार प्रतिभा और दृढ़ संकल्प के बावजूद, उचित सुविधाओं और उपकरणों की कमी के कारण गोस्वामी को रजत पदक से संतोष करना पड़ा. लेकिन, अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में शामिल होने जब उन्हें ऑस्ट्रेलिया की सिडनी जाना था, तो उनके पास वहां जाने के लिए पैसे तक नहीं थे. जब कहीं भी मदद नहीं मिली, तो वह बाजार से ब्याज पर पैसे लेकर इस पावरलिफ्टिंग प्रतियोगिता में शामिल होने जा सके. 

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जीम की होती है बहुत कम कमाई

मोनू सामान्य परिवार के रहने वाले व्यक्ति हैं, जो छोटे से गांव में एक जीम चलाते हैं. इसमें हर महीने मिलने वाले 8 से 10 हजार रुपये कमाते हैं और इसी कमाई में जीम के मकान का किराया देने के साथ अपनी पावरलिफ्टिंग की तैयारी करते हैं. मोनू ने बड़े ही भारी मन से कहा कि मुझे पावरलिफ्टिंग प्रतियोगिता में तैयारी करने के लिए जिस प्रकार के आहार की जरूरत है, वह भी मुझे नहीं मिल पाता. जिससे मैं अपनी क्षमता में और वृद्धि अगर करना चाहूं, तो मुझे काफी कठिनाई होती है. वर्तमान में SQUAT ,BECH PRESS ,DEADLIFT (SBD) के लिए जो सामान लगते हैं, वह बड़े जुगाड़ से बनाया है. जबकि अगर वह वास्तविक सामान मिल जाए, तो वह निश्चित ही स्वर्ण पदक प्राप्त कर लेगा. 

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